प्रदेश में डीएसपी व निरीक्षकों की कमी से जूझ रहा ईओडब्ल्यू

ईओडब्ल्यू

-करेला व नीम चढ़ा की कहावत हो रही सिद्ध

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा प्रदेश हैं जिसमें शायद ही ऐसा कोई विभाग हो जिसके अफसरों पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप न लगते हों , लेकिन इसकी जांच का जिम्मा सम्हालने वाली प्रमुख सरकारी एजेंसी आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ यानि की ईओडब्ल्यू सरकारी अफसरशाही का शिकार हो रही है। हालात यह हैं कि एजेंसी को खुद ही निरीक्षक से लेकर डीएसपी स्तर तक के अफसरों की कमी से जूझना पड़ रहा है। इसके बाद भी हाल ही में गृह विभाग ने इस एजेंसी में पदस्थ कई अफसरों के एक साथ तबादले कर उन्हें हटा दिया है और नए अफसरों की पदस्थापना करना ही भूल गया। पहले से इस स्तर के अफसरों की कमी से परेशान एजेंसी में अफसरों की कमी और अधिक हो गई है। अब ऐसे में जांच एजेंसी किस तरह से अपने कामकाज में गति लाए यह कोई नहीं समझ पा रहा है। खास बात यह है कि यह हालात तब बने हैं, जबकि स्वयं मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि सरकार नीती भ्रष्टाचार के मामलों में जीरो टालरेंस की है और  अब भ्रष्ट पुलिस वालों पर इओडब्ल्यू के छापे पड़ेंगे। यही नहीं उनके द्वारा भ्रष्ट पुलिस अफसरों के खिलाफ गोपनीय तौर पर जानकारी जुटाने को भी कहा गया है। माना जा रहा है कि गृह और पुलिस महकमा शायद मुख्यमंत्री की मंशा से इत्तेफाक नहीं रखता है, अन्यथा तबादले करने के साथ ही इस एजेंसी में रिक्त चल रहे पदों को पहले ही भर दिया जाता । दरअसल यह प्रदेश की दूसरी ऐसी जांच एजेंसी हैं, जो आर्थिक अनियमितताएं, भ्रष्टाचार और घोटालों की जांच करने के लिए सबसे ताकतवर और अहम मानी जाती है। स्टाफ की कमी की वजह से जांच एजेंसी के हालात ऐसे बन गए हैं कि घोटालों की जांच पर लगभग ब्रेक ही लग गया है। अफसरों की नई पदस्थापना वाली फाइल में जब तक अंतिम फैसला नहीं होता है, तब तक हालात इसी तरह बने रहेंगे। इस एजेंसी के पास कई गंभीर व देश में चर्चित रह चुके मामलों की जांच है। इन मामलों की जांच कर रहे  उप पुलिस अधीक्षक और निरीक्षक स्तर के अफसरों को ईओडब्ल्यू से हटाकर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिया गया है। ईओडब्ल्यू में पदस्थ अधिकारियों को जब हटाया गया, तो विकल्प के तौर पर अफसरों की नई पदस्थापना नहीं की गई। यह बात सही है कि जिन अफसरों को हटाया गया है, वे लंबे समय से ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे। बहरहाल गृह विभाग और पीएचक्यू की जिम्मेदारी यह भी है कि अगर किसी अधिकारी को वहां से हटाया जा रहा है, तो विकल्प भी देना था।
ईओडब्ल्यू से तो थोक में अधिकारी हटाए गए हैं और उनकी जगह पर पदस्थापना एक की भी नहीं की गई है। इसी का फायदा उठाकर ईओडब्ल्यू के आला अधिकारी स्थानांतरित किए गए अधिकारियों को कार्यमुक्त नहीं कर रहे थे। बताते हैं कि गृह विभाग और पीएचक्यू के दबाव में ज्यादातर अफसरों को ईओडब्ल्यू से कार्यमुक्त कर दिया गया है। अब स्थिति यह है कि  ईओडब्ल्यू में अफसरों का टोटा है। करोड़ों रुपए के घोटाले की जांच लगभग ठप्प पड़ गई है। नई पदस्थापना नहीं होने से बड़े-बड़े घोटाले की जांच खासा प्रभावित हो रही है। ईओडब्ल्यू की सागर इकाई में दो महिला अधिकारी पूरी जिम्मेदारी संभाल रही हैं। कमोबेश इसी तरह की स्थिति भोपाल, इंदौर, रीवा, ग्वालियर और जबलपुर में भी है। ईओडब्ल्यू ने अधिकारियों का तबादला होने के बाद उनके एवज में पदस्थापना करने के लिए डीएसपी और इंस्पेक्टर स्तर के कुछ अफसरों के नाम भेजे हैं। नाम अफसरों के रिकॉर्ड के आधार पर भेजे गए हैं, लेकिन तकरीबन एक माह का वक्त गुजर जाने के बावजूद अभी तक पदस्थापना नहीं की गई है। बताते हैं कि नई पदस्थापना की फाइल एक टेबिल से दूसरे टेबिल में घूम रही है, लेकिन उस पर फैसला नहीं हो पा रहा है। इसका सीधा असर जांच एजेंसी की विवेचना पर पड़ रहा है।
इन गंभीर व बड़े मामलों की लंबित हैं जांचे
प्रदेश में ईओडब्ल्यू के पास अभी देश के सबसे चर्चित ई-टेंडर घोटाले से लेकर कन्यादान घोटाला, प्याज घोटाला, राशन घोटाला, जबलपुर चर्च के पूर्व बिशप पीसी सिंह, जबलपुर आरटीओ संतोष पाल की अनुपातहीन संपत्ति का मामला, महिला बाल विकास विभाग का आयरन फ्रेम घोटाला, बालाघाट के बिजली कंपनी के सहायक यंत्री दयाशंकर प्रजापति की अनुपातहीन संपत्ति का मामला, भोपाल के स्वास्थ्य विभाग के क्लर्क हीरो केसवानी के घर भारी मात्रा में मिली नगदी सहित कई मामलों की जांच है।

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