-अफसरों की संपत्ति का हिसाब-किताब मांगा ईडी ने
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के भ्रष्ट अफसर अब प्रवर्तन निदेशालय के रडार पर हैं। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में जिन अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं, ईडी की सक्रियता ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। फिलहाल ईडी ने जल संसाधन विभाग से पांच अभियंताओं (इंजीनियरों) राजीव कुमार सुकलीकर, शरद श्रीवास्तव, शिरीष मिश्रा, अरविंद उपमन्यु और प्रमोद कुमार शर्मा की संपत्ति का ब्योरा मांगा है। ये 3333 करोड़ के निर्माण कार्यों में गड़बड़ी एवं मनी लांड्रिंग मामले में संदिग्ध हैं। उनकी चल एवं अचल संपत्ति के साथ नौकरी में आने से लेकर अब तक के वेतन का भी हिसाब मांगा गया है। इस कार्रवाई के साथ ही मप्र में ईडी की इंट्री हो गई है।
गौरतलब है की इन दिनों ईडी देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार छापामार कार्रवाई कर रहा है। मप्र के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री की उप सचिव सौम्या चौरसिया सहित खनन, अवैध वसूली और जमीन से जुड़े मामले में अधिकारियों के खिलाफ सर्वे की कार्रवाई कर चुकी है। ईडी ने संकेत दे दिया है कि भ्रष्टाचार करके करोड़पति या लखपति बनने वालों की खैर नहीं। आने वाले दिनों में भ्रष्टाचारियों की अवैध संपत्ति जब्त होने के साथ ही अन्य कानूनी कार्रवाई भी होनी तय है। इसके लिए ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त में लंबित मामलों की भी जांच की जाएगी। इनमें कई आईएएस और आईपीएस अफसर भी हैं।
280 अफसरों के खिलाफ जांच लंबित
प्रदेश में ईडी के प्रवेश ने दागी अफसरों की परेशानी बढ़ा दी है। गौरतलब है कि प्रदेश में ऐसे करीब 280 अफसर हैं, जिनके खिलाफ ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली है। लेकिन शासन की मंजूरी न मिलने के कारण इनके खिलाफ चार्जशीट ही पेश नहीं हो पा रही। कई बार पत्राचार के बावजूद संबंधित विभाग अभियोजन की स्वीकृति में आनाकानी कर रहे हैं। कुछ विभाग तो लोकायुक्त की चिट्ठी का जवाब तक नहीं दे रहे। प्रदेश में लोकायुक्त संगठन को ऐसे 280 अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने का इंतजार है। इजाजत नहीं मिलने की वजह से भ्रष्टाचार के 15 केस 9 साल से लंबित हैं। सबसे ज्यादा नगरीय आवास और विकास विभाग के लगभग 31 मामले लंबित हैं। सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 29-29 मामले लंबित हैं। वहीं राजस्व विभाग के 25 और स्वास्थ्य विभाग के 17 मामले लंबित हैं। अभियोजन स्वीकृति समय पर नहीं मिलने के कारण चार्जशीट पेश करने में देर हो रही है।
वैसे नियम के अनुसार अधिकतम 4 महीने में अभियोजन की स्वीकृति मिलनी चाहिए। आईएएस पवन जैन के खिलाफ केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग( डीओपीटी) की सलाह के बाद शासन ईओडब्ल्यू को केस चलाने की मंजूरी देगा। सामान्य प्रशासन विभाग पत्र लिखकर डीओपीटी से इस मामले में सलाह लेगी। ईओडब्ल्यू ने इंदौर से जुड़े 7 साल पुराने मामले में चालान पेश करने के लिए शासन से अभियोजन की स्वीकृति मांगी है। डीओपीटी से अभियोजन की स्वीकृति के बाद ही आगे की कार्रवाई हो सकेगी। तत्कालीन एसडीओ राजस्व पवन जैन पर रियल स्टेट के लोगों से सांठगांठ कर पर्यवेक्षण शुल्क जमा करने का आरोप है।
5 इंजीनियरों की संपत्ति का ब्यौरा मांगा
जल संसाधन विभाग में चल रही परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की शिकायतें बराबर सामने आती रहती हैं। जानकार बताते हैं कि ईडी लंबे समय से अगस्त 2018 से फरवरी 2019 के बीच सिंचाई परियोजना के दस्तावेजों को खंगाल रही थी। संस्था ने इस अवधि में स्वीकृत बांदा बांध, हनोता बांध, वर्धा बांध, अन्य चार परियोजनाओं के कार्यों और भुगतान, प्रेशर पाइप कार्य इकाई और बांधों की नींव को पतला करने की जानकारी चाही है। ईडी ने सभी के पैन नंबर, नौकरी में कहां-कहां किन पदों पर पदस्थ रहे इसका भी ब्योरा मांगा है। उल्लेखनीय है कि रतनगढ़, पेंच, पार्वती नदी से जुड़ी सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण के लिए ठेकेदार राजू मेंटाना को एडवांस 887 करोड़ रुपये भुगतान करने के मामले में भी राजीव कुमार सुकलीकर संदिग्ध हैं। शासन इस मामले की जांच वर्ष 2019 से कर रही है , पर अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं आई है। इस बीच सुकलीकर सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। वहीं प्रमोद कुमार शर्मा को हाल ही में सरकार ने नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में सदस्य सचिव नियुक्त किया है। अरविंद उपमन्यु सागर में मुख्य अभियंता के प्रभार में हैं तो शिरीष मिश्रा जल संसाधन मुख्यालय में मुख्य अभियंता (खरीद) हैं। ये निविदा से संबंधित काम देखते हैं।
मेंटाना पर मेहरबानी पड़ेगी भारी
जल संसाधन विभाग के अफसरों द्वारा मेंटाना कंस्ट्रक्शन कंपनी पर की गई मेहरबानी अब भारी पड़ने वाली है। गौरतलब है कि मप्र में सिंचाई संरचनाओं के निर्माण में वर्ष 2013 से सक्रिय मेंटाना कंस्ट्रक्शन कंपनी को जल संसाधन विभाग ने छिंदवाड़ा कांप्लेक्स का करीब दो हजार करोड़ का काम दिया था। पेंच व्यपवर्तन परियोजना सिवनी कैनाल के लिए 156 करोड़ रुपये सहित एक अन्य काम का ठेका दिया। इन कामों को शुरू करने के लिए कंपनी ने मशीनें खरीदने के लिए एडवांस राशि मांगी, तो विभाग ने 887 करोड़ रुपये एडवांस दे दिए। इसके बाद कंपनी ने काम ही नहीं किया। यह मामला विधायक दिनेश राय मुनमुन ने विधानसभा में उठाया था। उन्होंने विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया की भी घेराबंदी की थी। विधानसभा में मामला आने के बाद राजनीति गरमा गई और राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को जांच सौंपी गई थी। राजीव कुमार सुकलीकर से जब उनका पक्ष जानने के लिए मोबाइल पर बात की गई तो उन्होंने जवाब देने के बजाए फोन काट दिया।