ट्रेन में ब्रेक लगते ही बनने लगेगी बिजली

भोपाल मेट्रो ट्रेन
  • मेट्रो में खास तकनीक का इस्तेमाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। किसी भी वाहन के ब्रेक लगने पर ऊर्जा की खपत होती है पर भोपाल मेट्रो ट्रेन में ऐसा नहीं होगा। मेट्रो ट्रेन में ब्रेक लगते ही बिजली का बनना शुरू हो जाएगा और इससे कुल बिजली की खपत का 45 फीसदी रीजेनरेट किया जाएगा। मप्र मेट्रो रेल कारपोरेशन  मेट्रो और लिफ्ट के रुकने से पैदा हुई ऊर्जा का इस्तेमाल अपने कार्यों के लिए करेगा। जानकारी के अनुसार मेट्रो कोच और स्टेशन पर लगी लिफ्ट के रुकते समय ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा वापस मेट्रो की इलेक्ट्रिक सप्लाई की लाइन में जा सके, इसके लिए मेट्रो के कोच में ही पहियों के पास से उपकरण लगाए जा रहे हैं। मेट्रो कोच अपनी यात्रा के दौरान जितनी बार भी रुकेगा तो ब्रेक लगने से उत्पन्न हुई ऊर्जा को पहिए के पास लगे उपकरण इसे वापस लाइन में भेज देंगे। पूरे ट्रैक पर बहुत सारी मेट्रो एक साथ चलती रहेंगी। इनके रुकने से पैदा ऊर्जा बिजली के रूप में वापस इलेक्ट्रिक लाइन में पहुंचेगी और इसका उपयोग दूसरी ट्रेनों के संचालन में होगा। मेट्रो रेल कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि थर्ड रेल तकनीक में रेलवे ट्रैक पर सिरेमिक इंसुलेटर लगाए जाते हैं, ताकि कोई इसके संपर्क में आ भी जाए तो उस पर करंट का प्रभाव न पड़े। जबकि मेट्रो में करंट के लिए ट्रेन में धातु (मेटल) का एक कान्टैक्ट ब्लाक होता है, जिसे कलक्टर शूज (कान्टैक्ट शूज) कहा जाता है। यह कलक्टर शूज उसी तरह से इंसुलेटर के संपर्क में रहता है, जैसे आम ट्रेनों के इंजन का पेंटो ओएचई से रगड़ता रहता है। कलेक्टर शूज के साथ एक सहूलियत और होती है कि इसका संपर्क इंसुलेटर के ऊपर, नीचे या फिर बराबर में कहीं से भी किया जा सकता है। इसे कंडक्टर रेल भी कहते हैं। इसी में करंट प्रवाहित होता है। देश में बेंगलुरु, कानपुर और नागपुर में पावर सप्लाई के लिए थर्ड रेल का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। वहां यह मेट्रो की दाहिनी पटरी के समानांतर बिछाई गई है।
कोच व लिफ्ट में लग रहे सिस्टम
मेट्रो कोच और स्टेशन पर लगी लिफ्ट के रुकते समय ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह ऊर्जा वापस मेट्रो की इलेक्ट्रिक सप्लाई की लाइन में जा सके, इसके लिए मेट्रो के कोच में ही पहियों के पास से उपकरण लगाए जा रहे हैं। मेट्रो कोच अपनी यात्रा के दौरान जितनी बार भी रुकेगा तो ब्रेक लगने से उत्पन्न हुई ऊर्जा को पहिए के पास लगे उपकरण इसे वापस लाइन में भेज देंगे। पूरे ट्रैक पर बहुत सारी मेट्रो एक साथ चलती रहेंगी। इनके रुकने से पैदा ऊर्जा बिजली के रूप में वापस इलेक्ट्रिक लाइन में पहुंचेगी और इसका उपयोग दूसरी ट्रेनों के संचालन में होगा। गौरतलब है कि राजधानी में मेट्रो का ट्रायल रन पूरा हो गया है। अब इसके कमर्शियल रन की तैयारी की जा रही है। इस दौरान थर्ड रेल तकनीक का भी प्रयोग किया जा रहा है। यानी अब मेट्रो पटरियों में प्रवाहित होने वाले करंट से दौड़ेगी। इसके ब्रेक से ऊर्जा का उत्पादन होगा, जिससे मेट्रो के संचालन में 45 प्रतिशत तक बिजली की बचत होगी।
रीजेनरेटिव ब्रेकिंग तकनीक से वापस होगी बिजली
ट्रेन में ब्रेक लगाने के दौरान बहुत सारी ऊर्जा निकलती है जो गर्मी के रूप में यूं ही बेकार हो जाती है। इस ऊर्जा को ही रीजनरेटिव ब्रेकिंग सिस्टम से संरक्षित किया जाता है। इसके तहत डीसी ट्रैक्शन मोटर ब्रेक लगने पर जेनरेटर की तरह काम करने लगता है। यह सिस्टम 15 से 100 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ रही ट्रेन में काम करता है। इंजन की गति के मुताबिक हर बार ब्रेक लगने पर 30 से 50 किलोवाट तक ऊर्जा का उत्पादन होता है। इस प्रणाली से यह ऊर्जा वापस थर्ड रेल में चली जाएगी। भोपाल मैट्रो के निदेशक (सिस्टम ) शोभित टंडन का कहना है कि अभी तक इस ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं हो पाता था। ऐसा इसलिए क्योंकि थर्ड रेल सिस्टम में ट्रेन की ब्रेकिंग से जो ऊर्जा पैदा होती है, वह डीसी फार्म में होती है। जबकि बाकी मेट्रो तंत्र अल्टरनेटिंग करंट (एसी) करंट पर चलता है। इंजीनियरों ने इस कमी को दूर करते हुए खास इन्वर्टर की व्यवस्था की है, जो ट्रेन की ब्रेकिंग से पैदा होने वाले केवी 750 वोल्ट डीसी करेंट को 33 एसी करंट में बदलकर फिर से सिस्टम में भेज देगी।
आधुनिक प्रणाली का उपयोग
भोपाल मेट्रो का संचालन आधुनिक, सुरक्षित और हाईटेक तकनीक से होगा। अनअटेंडेंट आब्जेक्ट आइडेंटिफिकेशन सिस्टम की सहायता से मेट्रो और प्लेटफार्म पर संचालन के दौरान हर वस्तु पर सुरक्षाकर्मी बारीक नजर रखेंगे। ऐसा कोई भी सामान जिसका कोई दावेदार नहीं होगा। उसे तुरंत ही प्लेटफार्म से हटाया जाएगा। डीरेलमेंट डिटेक्शन सिस्टम के जरिये ट्रैक पर किसी तरह की बाधा होने पर या मेट्रो ट्रेन के डीरेलमेंट होने पर तुरंत जानकारी मिलेगी। ऐसे में ट्रेन को समय पर रोका जा सकेगा। वहीं मेट्रो के संचालन का सिस्टम पूरी तरह से साइबर सिक्योरिटी से लैस होगा। ऐसे में इसे हैक करना लगभग नामुमकिन होगा। साथ ही इससे यह सुनिश्चित होगा कि हर ट्रेन का संचालन सही रास्ते पर है। मेट्रो कई आधुनिक सुरक्षा प्रणालियों से लैस होगी, जिसमें अनअटेंडेंट आब्जेक्ट आइडेंटिफिकेशन सिस्टम और डीरेलमेंट डिटेक्शन सिस्टम के जरिये यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। इसके अलावा साइबर सिक्योरिटी सिस्टम का भी इस्तेमाल किया जाएगा।

Related Articles