मध्यप्रदेश में अब महंगे विदेशी कोयला से नहीं बनेगी बिजली

विदेशी कोयला
  • अफसरशाही की मंशा पर सरकार ने फेरा पानी

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे की अफसरशाही के कई निर्णय आम आदमी के लिए बेहद भारी पड़ते हैं, जिसकी वजह से सरकार की भी किरकिरी होती है। ऐसे ही एक निर्णय की वजह से प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को बड़ा झटका लगना तय था, लेकिन सरकार द्वारा लगाए गए बीटो की वजह से अफसरशाही को बड़ा झटका लगा है तो आम जनता के लिए राहत का मार्ग खुल गया है। दरअसल सरकार ने करीब छह माह पहले शुरु की गई  विदेशी कोयले की खरीदी पर रोक लगा दी है। इसकी वजह से अब प्रदेश के उपभोक्ताओं को मंहगी बिजली खरीदने से राहत मिल गई है।
दरअसल जो विदेशी कोयला  खरीदा जाना था वह देश के कोयले से आठ गुना तक मंहगा था, जिसकी वजह से बिजली उपभोक्ताओं को करीब 75 पैसे प्रति युनिट तक अधिक दर से बिजली का बिल भरना पड़ सकता था। अब बिजली बनाने के लिए महंगे विदेशी कोयला खरीदने से तौबा कर लेने से फिलहाल बिजली के दामों में बढ़ोतरी नहीं होगी। मध्य प्रदेश ने देशी कोयले की उपलब्धता में ही बिजली उत्पादन को जारी रखने का निर्णय किया है जिसकी वजह से विदेशी कोयले की जरूरत नहीं रह गई है।  गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में जब कोयले की भारी कमी आ रही थी, तब सरकार ने विदेश से कोयला खरीदने के लिए ग्लोबल टेंडर जारी किया था।  केंद्र सरकार ने भी जितनी डिमांड थी, उसमें 10 फीसदी विदेशी कोयला खरीदने की शर्त लगा दी थी। ऐसे में 15 लाख टन कोयला विदेश से लिया जाना था। सामान्य तौर पर इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देशों से कोयला आयात होता है। इसकी गुणवत्ता का आंकलन उससे पैदा होने वाली ऊर्जा से होता है।  जितना बेहतर कोयला उतनी अधिक ऊर्जा पैदा करता है। गुणवत्ता वाले कोयले में राख कम बनती है। कंपनी का दावा था कि रबी सीजन में 17 हजार मेगावाट तक बिजली की मांग होगी इस वजह से बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया जा रहा था।  वैसे भी अब प्रदेश के जतलाशय पूरी क्षमता से भरे हैं, जिनसे बिजली बनाई जा सकती है।
कर दिया गया था टेंडर जारी
इसके बाद विदेश से करीब सात लाख मैट्रिक टन कोयले के आयात के लिए 976 करोड़ रुपए का टेंडर जारी किया था। इसकी वजह से विदेशी कोयले की खरीदी में जो खर्च आता, उसकी वसूली बिजली कंपनी प्रदेश के उपभोक्ताओं से ही बिजली बिल बढ़ाकर करती। यह वर्तमान दरों पर मिलने वाले देशी खदानों के कोयले से तकरीबन 8 गुना महंगी दरों पर टेंडर जारी हुआ था। अब इस मामले में प्रमुख सचिव संजय दुबे के बयान के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि मध्य प्रदेश में विदेशी कोयला नहीं खरीदा जाएगा और इससे प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिली है।
उपभोक्ताओं से लिया जाता है कोयला स्टॉक का पैसा
बिजली के टैरिफ निर्धारण में उपभोक्ताओं से 30 दिन के कोयला स्टॉक का पैसा लिया जाता है। मतलब बिजली घरों में उनकी क्षमता के अनुरूप 30 दिन का कोयला रखेंगे। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मानक के अनुसार पिट हेट (प्लांट और कोयला खदान की दूरी 25 किमी से कम) पर 17 दिन का स्टॉक और प्लांट और कोयला खदान की दूरी 25 किमी से अधिक होने पर 26 दिन का कोयला स्टॉक रखना चाहिए।
प्रदेश में यहां से होती है कोयले की सप्लाई
प्रदेश के बिजली घरों को वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड और साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड से कोल ब्लॉक आवंटित है। सारणी बिजली घर को डब्ल्यूसीएल के पाथाखेड़ा, कान्हान, पेंच, नागपुर, चंद्रपुर व वानी से रेल, सड़क व कन्वेयर बेल्ट से कोयले की सप्लाई होती है। अमरकंटक के बिजली घर को एसईसीएल के सोहागपुर कोल ब्लॉक से रेल के जरिए कोयला मिलता है। संजय गांधी बिरसिंहपुर बिजली घर को एसईसीएल के कोरिया, रीवा व कोरबा कोल ब्लॉक से रेल के जरिए कोयला मिलता है। वहीं सबसे बड़े प्लांट श्री सिंगाजी को एसईसीएल के विभिन्न ब्लॉक से कोयले की सप्लाई ट्रेन के माध्यम से होती है।
यह भी थीं परेशानियां
विदेशों से आने वाला कोयला न्यूनतम परिवहन समेत 15 हजार से 20 हजार रुपए मीट्रिक टन पड़ना था। मौजूदा कोयले की दर 4000 से 6000 हजार रुपए मीट्रिक टन हो जाएगी। इससे प्रति यूनिट बिजली उत्पादन की लागत 75 पैसे से 1 रुपए तक बढ़ जाएगी। विदेशी कोयला मिलाने से तकनीकी दिक्कत भी आने की बात कही जा रही थी। इसका कारण है कि प्रदेश के सरकारी बिजली घरों के बॉयलर की बनावट देश में उत्पादित कोयले के अनुसार है। देसी कोयले का ताप 3000 से 3500 किलो कैलोरी का है। जबकि, विदेशी कोयले का ताप 5000 से 5500 किलो कैलोरी है। देसी कोयले से 30 से 40 प्रतिशत राख निकलती है, जबकि विदेशी कोयले से 10प्रतिशत के लगभग राख निकलती है। अधिक कैलोरी के ताप से बिजली बनाने वाले बॉयलर को कैसे नियंत्रित करेंगे, ये बड़ा सवाल था, साथ ही लीकेज का खतरा बढ़ने की भी संभावना जताई जा रही थी।

Related Articles