बिजली विभाग भी कर रहा है उपभोक्ताओं से मुनाफाखोरी

बिजली विभाग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मूलभूत सुविधाओं में शामिल बिजली में भी उपभोक्ता मुनाफाखोरी का शिकार हो रहे हैं। यह हम नहीं बल्कि बिजली विभाग के ही आंकड़ें कहते हैं। दरअसल प्रदेश का बिजली महकमा आम उपभोक्ताओं द्वारा खुद से उत्पादित सौर ऊर्जा की बिजली को जब बिजली विभाग को देता है, तब उससे इस महकमे द्वारा कम दर पर ली जाती है और उसे ही अधिक दामों पर दूसरे उपभोक्ता को दे दिया जाता है। यही नहीं अगर बिजली देने वाला उपभोक्ता भी दी गई बिजली का उपयोग करता है , तो उसे भी महंगी दर पर ही भुगतान करना होता है। सरकार बिजली लाइन से जो आपको बिजली आपूर्ति करती है, उसका बिल 7.15 रुपए प्रति यूनिट औसत दर से बनाकर दिया जाता है, जबकि उपभोक्ताओं की छतों पर लगे सोलर प्लांट से नेट मीटरिंग के माध्यम से जो बिजली लाइन में लेती है, उसके लिए महज 3.15 रुपए ही दिए जाते हैं। यदि आपकी मासिक बिजली खपत 300 यूनिट है और आप अपनी छत पर 03 किलोवॉट तक का सोलर प्लांट लगाकर 300 यूनिट बिजली उत्पादित कर बिजली लाइन में लौटाते हैं तो भी आपको करीब 1200 रुपए तो बिजली बिल देना ही पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि 300 यूनिट खपत पर आपका बिजली बिल कंपनी ने 7.15 रुपए प्रति यूनिट की दर से 2145 रुपए बनाया। आपके द्वारा बिजली लाइन में दी गई 300 यूनिट के लिए 3.15 रुपए प्रति यूनिट की दर से आपकी बिजली की कीमत महज 945 रुपए ही रह जाती है। दरअसल, बिजली कंपनियां अपने तमाम तरह के खर्चे भी बिजली की दर में समाहित कर लेती हैं। इनमें कई खर्च तो ऐसे हैं, जो फिजूल के होते हैं। यही नहीं बिजली की सप्लाई में होने वाले नुकसान का भी भार ईमानदार उपभोक्ताओं पर ही डाला जाता है, जबकि विभाग के कर्मचारियों की नाकामी की वजह से खुलेआम कई बस्तियों में बिजली चोरी की जाती है, लेकिन ऐसी बस्तियों में विभाग कार्रवाई तक नहीं करता है। इसके कई उदाहरण तो भोपाल में ही हैं।
उत्पादन लागत अलग-अलग
मध्य प्रदेश पावर जनरेशन कंपनी की अलग-अलग इकाइयों में बिजली उत्पादन की लागत अलग होती है। अब जिस इकाई में सस्ती बिजली बनती है, उसकी बजाए महंगी बिजली बनाने वाली इकाई को अधिक कोयला प्रबंधन द्वारा भेजा जाता है। इसके तहत रेलवे के कोल रैक कोल प्लांट के करीब स्थापित प्लांट में भेजने की जगह सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थापित प्लांट में भेजा जाता है, जिससे कोयला परिवहन महंगा हो जाता है, जिससे बिजली उत्पादन की लागत में वृद्धि हो जाती है। पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।

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