पुराने मुद्दों पर नई रणनीति से चुनाव

नई रणनीति
  • अपनाया जा रहा है हाईटेक तरीका

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में पांच साल बाद एक बार फिर चुनावी संग्राम चरम पर है। लेकिन इस बार के चुनाव में न कोई लहर है और न कोई मुद्दा। चुनावी माहौल देखकर कहा जा रहा है की इस बार पुराने मुद्दों पर ही वार-प्रहार हो रहा है। हालांकि मुद्दे भले ही पुराने हैं, लेकिन रणनीति जरूर नई है। इस बार भाजपा और कांग्रेस ने एक दूसरे को घेरने के लिए हाईटेक तरीका अपनाया है। इस चुनाव में इंटरनेट मीडिया का भरपूर उपयोग किया जा रहा है। इसलिए चुनाव बिना लहर और मुद्दे के भी आक्रामक तरीके से लड़ा जा रहा है।
गौरतलब है कि 17 नवंबर को पूरे प्रदेश में एक साथ मतदान होगा और इसके ठीक 16 दिन बाद 3 दिसंबर को नई सरकार का तय हो जाएगा। चुनाव की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दल अब पूर्ण निर्धारित रणनीति के तहत चुनाव मैदान में फिर उतरने को तैयार हैं। पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार चुनाव में ज्यादा कुछ नहीं बदला है। मुद्दे वही हैं, जो हर चुनाव में होते होता रहा है। इस बार भाजपा ने किसी नेता का चेहरा तय नहीं किया है। लेकिन इस बार सबसे ज्यादा बदलाव दिखाई दे रहा है, वह यह कि राजनीतिक दल ज्यादा हाईटेक हो गए हैं। जिसमें भाजपा तकनीकि रूप से ज्यादा दक्ष है। जबकि कांग्रेस भी चुनाव में हाईटेक होने की कोशिश कर रही है, लेकिन भाजपा के मुकाबले काफी पिछड़ी है। फिलहाल चुनाव जितना जमीन पर लड़ा जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा सोशल मीडिया पर लड़ा जा रहा है। विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दलों की मीडिया टीमें चौकस हैं। चुनाव के लिए भाजपा ने नया मीडिया सेंटर तैयार किया है। जहां से कांग्रेस पर चुनावी हमले तेज हो गए हैं। प्रदेश संवाद प्रमुख आशीष अग्रवाल पूरी टीम के साथ मोर्चा संभाले हुए हैं। विपक्ष के आरोपों का भाजपा की मीडिया टीम तत्काल पलटवार कर रही है। सोशल मीडिया पर वार लगातारी जारी है। वहीं इधर कांग्रेस में मीडिया टीम पिछले चुनावों से ज्यादा बेहतर स्थिति में है। कमलनाथ के मीडिया सलाहकार पीयूष बबेले ही अपनी टीम के जरिए सरकार पर हमले करवा रहे हैं। कांग्रेस में प्रवक्ताओं की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन बबेले भी पूरे तालमेल और सूझबूझ से टीम से काम ले रहे हैं।
घपले-घोटालों पर वार-प्रतिवार
इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर घपले-घोटाले का आरोप लगाकर वार-प्रतिवार कर रही हैं। कांग्रेस अवैध खनन, रोजगार जैसे मुद्दों को लेकर भाजपा की घेराबंदी करती आ रही थी। साथ नेताओं पर व्यक्तिगत आरोप भी लगाए जाते थे। लेकिन 15 महीने में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर भाजपा ज्यादा आक्रामक है। 2020 के उपचुनाव में भी भाजपा ने कांग्रेस की 15 महीने के सरकार की नाकामयाबियों को ही भुनाया था। इस बार कांग्रेस के पूर्व की केंद्र एवं राज्य सरकारों के समय के घपले-घोटालों को भी चुनाव में मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है। मप्र भाजपा का संगठन मजबूत संगठनों में माना जाता है। इस बार संगठन तकनीकी रूप से ज्यादा दक्ष दिखाई दे रहा है। बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं का पूरा डाटा भाजपा की तकनीकी टीम के पास है। भाजपा नेतृत्व एक साथ सभी बूथ एवं पन्ना प्रभारियों से सीधे संवाद कर सकता है। यानी तकनीकी रूप से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सीधे बूथ कार्यकर्ताओं से जुड़ चुका है। वहीं इधर कांग्रेस का संगठन भाजपा के मुकाबले कमजोर है। मप्र विधानसभा चुनाव में इस बार राजनीतिक दलों के बीच नए तरह का पोस्टरवार देखने को मिला है। कर्नाटक चुनाव परिणाम के कुछ दिन एक राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर पोस्टर लगाए गए थे। इस मामले में भाजपा की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज भी कराई गई, लेकिन अभी तक कोई आरोपी हाथ नहीं लगा है। वहीं इस घटना के कुछ दिन बाद राजधानी भोपाल में ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को लेकर भी पोस्टर दीवारों पर चस्पे मिले थे। जिसमें कमलनाथ को करप्शननाथ बताया गया। साथ ही एक क्यूआर कोड भी था। जिसके जरिए एक बेवसाइट पर पहुंचकर कमलनाथ से जुड़ी अन्य जानकारी मिलती है। यह वेबसाइट अभी भी सक्रिय है। जिसमें कमलनाथ के केंद्रीय मंत्री रहते भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए एक पूरी फिल्म अपलोड की गई है।
दोनों पार्टियों का संगठन चुस्त-दुरुस्त
इस बार के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का संगठन भी चुस्त-दुरूस्त नजर आ रहा है। कांग्रेस का इतिहास ही गुटबाजी का रहा है। गुटबाजी का परिणाम है कि कांग्रेस सरकार रहते 1962 के चुनाव में प्रदेशाध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को ही चुनाव हरवा दिया था। पिछले चुनावों में भी कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी सडक़ पर दिखाई देती रही है। इस बार कांग्रेस में गुटबाजी सड़क पर दिखाई नहीं दे रही है। हालांकि कुछ महीने पहले कमलनाथ के भावी मुख्यमंत्री पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने ऐतराज जताया था। हालांकि बाद में इन तीनों नेताओं के सुर भी बदले दिखाई दिए। अंदरूनी तौर पर टिकट चयन एवं अन्य मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी में खींचतान की खबरें आ रही है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर अभी गुटबाजी उभरकर सामने नहीं आई है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि प्रत्याशियों की घोषणा के बाद कांग्रेस में गुटबाजी उभर सकती है। पांच साल में भाजपा संगठन में चुनाव के दौरान बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछला चुनाव भाजपा ने प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह के नेतृत्व में लड़ा था। जबकि कि चुनाव प्रबंधन समिति की कमान पिछली बार भी केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के पास थी। इस बार भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जा रहा है। प्रबंधन प्रबंधन की कमान इस बार भी तोमर के पास ही है। खास बात यह है कि इस बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व को पिछले चुनावों की अपेक्षा ज्यादा समय दे रहा है। हर चुनावी निर्णयों में दिल्ली का दखल साफ दिखाई दे रहा है। प्रत्याशी चयन के लिए प्रदेश चुनाव समिति की घोषित बैठक नहीं होना भी, बड़ा बदलाव माना जा रहा है। वहीं कांग्रेस में पिछले चुनाव कमलनाथ के नेतृत्व में लड़ा और इस बार भी कमलनाथ के नेतृत्व में ही लड़ा जा रहा है। हालांकि इस बार मप्र कांग्रेस की चुनावी रणनीति में केंद्रीय नेतृत्व का दखल उतना दिखाई नहीं दे रहा है, जितना पिछले चुनावों में दिखता था। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पूरी तरह से पर्दे के पीछे रहकर काम कर रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने पार्टी के चुनावी बैनरों से भी खुद के फोटो हटवा दिए हैं। इसके बावजूद भी भाजपा दिग्विजय सिंह के कार्यकाल को चुनाव मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

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