भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश बीते तीन सालों में ऐसा प्रदेश बन गया है, जहां पर सरकारों की उदासीनता की वजह से विभिन्न बेहद महत्वपूर्ण संस्थाओं के चुनाव तक नहीं कराए जा रहे हैं। प्रदेश में विकास से लेकर सरकारी योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने वाली इन संस्थाओं की कमान बीते करीब तीन सालों से अफसरों के हाथों में हैं। इनमें नगरीय निकायों से लेकर सहकारी संस्थाएं तक शामिल हैं। इसकी वजह से अब सरकार की मंशा पर तक सवाल खड़े होने लगे हैं। अगर सहकारिता क्षेत्र की बात की जाए तो प्रदेश में लगभग इन दिनों 40 हजार सहकारी संस्थाएं सक्रिय हैं। आम आदमी तक पहुंच के लिए यह संस्थाएं बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके बाद भी सरकार की रुचि इन संस्थाओं के चुनाव में नहीं है। यही वजह है कि सभी सहकारी समितियों, संस्थाओं और सहकारी बैंकों के संचालक मंडल आदि का चुनाव कराने के लिए गठित किए गए मप्र राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकार कार्यालय में इन दिनों निर्वाचन पदाधिकारी तक का पद खाली पड़ा हुआ है। सरकार बीते दो माह में इस पद पर किसी की नियुक्ति तक नहीं कर सकी है। इसकी वजह से इस क्षेत्र में निवार्चन की प्रक्रिया ही शुरू न ही हो सकती है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में कार्यरत चालीस हजार संस्थाओं में से हर साल लगभग आठ हजार संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। प्रदेश में पिछले तीन साल से कोरोना महामारी के बहाने अपेक्स बैंक सहित कई बड़ी सहकारी संस्थाओं और बैंकों के चुनाव ही नहीं कराए जा रहे हैं , जबकि इस बीच लोकसभा से लेकर विधानसभा तक के उपचुनाव कराए जा चुके हैं। चुनाव नहीं कराए जाने की वजह से सहकारी संस्थाओं में प्रशासक नियुक्त किए गए हैं। इसकी वजह से इन संस्थाओं पर भी अब पूरी तरह से अफसरशाही का कब्जा हो गया है। लगभग यही हाल सेवा सहकारी समितियों और जल उपभोक्ता संथाओं के भी हैं। इन संस्थाओं के भी चुनाव नहीं कराए जाने की वजह से (जहां चुनाव नहीं हुए) प्रशासक ही कामकाज देख रहे हैं। खास बात यह है कि सहकारिता क्षेत्र में जिन अफसरों को बतौर प्रशासक बनाया गया है उनमें से अधिकांश के पास 25 से 30 समितियों का काम होने की वजह से वे पूरी तरह से कामकाज पर ध्यान भी नहीं दे पा रहे हैं। इस अव्यवस्था की वजह से अब प्रदेश की ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत सहकारी व्यवस्थाएं चौपट होती जा रही हैं। इसके बाद भी सरकार की इस क्षेत्र की संस्थाओं में चुनाव कराने में रुचि नहीं दिखा रही है।
निर्वाचन पदाधिकारी के अभाव में नहीं हो सकता चुनाव
प्रदेश में हर सहकारी समिति, सहकारी बैंक, संस्थाओं और संघों का चुनाव मध्यप्रदेश राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी के देखरेख में ही कराए जाने का नियम है ,लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में बीते दो माह से यहां निर्वाचन पदाधिकारी का पद रिक्त पड़ा हुआ है। इसकी वजह से चुनाव संबंधी सभी कार्रवाई रुकी हुई हैं। बस काम के नाम पर महज फाइलें जरुर इधर से उधर हो रही हैं।
यह है सहकारी संस्थाओं की स्थिति
एक जानकारी के अनुसार प्रदेश में करीब 50 हजार सहकारी संस्थाएं हैं। इनमें दस हजार संस्थाएं परिसमापन में हैं। सबसे ज्यादा जल उपभोक्ता संस्था और सेवा सहकारी समितियां हैं। इसके अलावा 32 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अन्य राज्य स्तरीय सहकारी संस्थाएं हैं। इन संस्थाओं के हर पांच साल में चुनाव कराए जाते हैं। इस मान से हर साल करीब 8 हजार संस्थाएं चुनाव प्रक्रिया में आ जाती हैं।
इन सहकारी संस्थाओं को है चुनाव का इंतजार
अपेक्स बैंक, राज्य लघु वन सहकारी संघ, राज्य सहकारी आवास संघ, राज्य उपभोक्ता संघ, औद्योगिक संघ, राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित, राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ, राज्य सहकारी बीज उत्पादक एवं विपणन संघ मर्यादित, मत्स्य महासंघ, पावरलूम बुनकर संघ, हथकरघा बुनकर संघ जबलपुर, जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक, प्राथमिक सहकारी संस्थाएं, जल उपभोक्ता संस्थाएं।
27/01/2022
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