चुनावी सौगातों ने किया… सरकार को हलाकान

  • मप्र पर बढ़ता जा रहा भारी भरकम कर्ज का बोझ
  • विनोद उपाध्याय
चुनावी सौगातों

मध्य प्रदेश पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। जानकारी के अनुसार चुनावी घोषणाओं को पूरा करने के लिए सरकार को बाजार से हर माह अरबों रूपए कर्ज लेने पड़ रहे है। मध्य प्रदेश सरकार लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से बाजार से लगातार कर्ज ले रही है। राज्य सरकार ने रिजर्व बैंक के मुंबई कार्यालय के माध्यम से अपनी गवर्नमेंट सिक्योरिटीज का विक्रय कर दो हिस्सों में कुल तीन हजार करोड़ रुपयों का नया कर्ज बाजार से लिया है। इसमें 1500 करोड़ रुपये का पहला कर्ज 16 वर्ष और 1500 करोड़ रुपये का दूसरा ऋण 17 साल में चुकाया जाएगा। दोनों ही कर्ज पर साल में दो कूपन रेट पर ब्याज का भुगतान भी किया जाएगा। वर्तमान वित्त वर्ष में मध्य प्रदेश सरकार अब तक कुल 24 हजार 500 करोड़ रुपयों का बाजार से कर्ज ले चुकी है और मंगलवार को लिए गए तीन हजार करोड़ रुपये के कर्ज को मिलाकर कुल कर्ज 27 हजार 500 करोड़ रुपये की हो गया है। इसके पहले भी जनवरी 2024 में ढाई हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया था। प्रदेश के पर मार्च 2023 की स्थिति में तीन लाख 31 हजार करोड़ रुपये से अधिक का ऋण है। वहीं अब तक के कुल कर्ज को मिलाकर मध्य प्रदेश सरकार पर कर्ज का कुल भार साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
लोन लेकर काम चला रही सरकार: वित्तीय संकट से जूझ रही मप्र सरकार लोन लेकर काम चला रही है। सरकार ने मंगलवार को बाजार से 3 हजार करोड़ रुपए का लोन लिया है। डॉ. मोहन यादव सरकार का यह तीसरा लोन है। यह राशि लाड़ली बहना योजना समेत विकास कार्यों में खर्च की जाएगी। सरकार पिछले 51 दिन में 7500 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है।
डॉ. मोहन यादव सरकार ने 2000 करोड़ रुपए का पहला लोन 20 दिसंबर को लिया था। इसके बाद 18 जनवरी को 2500 करोड़ रुपए और  6 फरवरी को 3000 हजार करोड़ का लोन लिया गया। अधिकारियों का कहना है कि लोन लेने के लिए केंद्र सरकार की सहमति ली जाती है। वित्तीय स्थिति के आधार पर राज्य सरकार कितनी सीमा तक लोन ले सकती है, इसकी लिमिट तय की गई है। उसी के दायरे में सरकार लोन ले रही है। जानकारी के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में सरकार नौ महीने (मई से जनवरी तक) में 29 हजार 500 करोड़ रुपए का लोन ले चुकी है। आचार संहिता लगने से पूर्व सरकार ने सितंबर में चार किस्तों में कुल 12 हजार करोड़ रुपए का लोन लिया था। यहां तक की विधानसभा चुनाव की आचार संहिता प्रभावशील रहते सरकार ने अक्टूबर व नवंबर में तीन किस्तों में 5 हजार करोड़ का लोन लिया था। नई सरकार बनने पर दिसंबर में 2 हजार करोड़ और जनवरी में 2500 करोड़ का लोन लिया गया। अब 3000 करोड़ का लोन सरकार ने लिया है। इसे मिलाकर चालू वित्त वर्ष में लोन की कुल राशि 32 हजार 500 करोड़ रुपए हो जाएगी।
योजनाओं से खाली हो रहा खजाना
प्रदेश पर कर्ज के साथ-साथ लगातार ब्याज भी बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में लगातार ऐसी योजनाओं की झड़ी लगी है, जिसके कारण सरकार का खजाना खाली ही होता जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में सरकार ने कई बड़ी घोषणाएं की हैं, जिनसे सरकार पर भार लगातार बढ़ता जा रहा है। इन योजनाओं में लाड़ली बहना योजना, किसान सम्मान निधि की राशि में बढ़ोतरी, मेधावी छात्र-छात्राओं को लैपटॉप वितरण, मेधावियों को स्कूटी वितरण शामिल हैं। इसके अलावा सरकारी कर्मचारियों पर भी लगातार सौगातों की बरसात हो रही है। पिछले कुछ महीनों में सरकार ने 23 हजार रोजगार सहायकों का वेतन दोगुना किया है, पंचायत सचिवों को 7वां वेतनमान दिया, कर्मचारियों का डीए चार प्रतिशत बढ़ाया, अतिथि शिक्षकों का मानदेय दोगुना किया, कॉलेज के अतिथि विद्वानों का मानदेय 20 हजार बढ़ाया गया, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया गया। इसके साथ ही लाड़ली बहना का बजट भी लगातार बढ़ता जा रहा है, क्योंकि योजना में लगातार प्रावधान किए जा रहे हैं।
साढ़े तीन लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज
प्रदेश सरकार पर 3 लाख 50 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज हो चुका है। बजट में कर्ज के लिए 3 लाख 85 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है। दरअसल, वित्तीय संकट को देखते हुए मप्र सरकार पिछले महीने 38 विभागों की 150 से ज्यादा योजनाओं पर वित्तीय रोक लगा चुकी है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आमतौर पर वित्त वर्ष के आखिरी महीनों (जनवरी से मार्च तक) सरकार ज्यादा लोन लेती है, लेकिन इस बार चुनाव से पूर्व की गई लोक लुभावन घोषणाओं को पूरा करने के लिए वित्त वर्ष के शुरुआती महीनों में ही सरकार को बड़ा लोन लेना पड़ा। मौजूदा बजट के मुताबिक सरकार की आमदनी 2.25 लाख करोड़ रुपए है, जबकि खर्च इससे करीब 54 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। सरकार की ओर से पिछले महीनों में की गई घोषणाओं पर बड़ी राशि खर्च होने के कारण सरकार का हर महीने का खर्च 10 प्रतिशत बढ़ गया है। सरकार का प्रति माह 20 हजार करोड़ का खर्च था, जो जून के बाद से बढ़कर 22 हजार करोड़ प्रति माह के पार पहुंच गया है।

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