बाहरी नेताओं के हाथ चुनावी कमान

  • भाजपा की धारदार रणनीति
  • विनोद उपाध्याय
चुनावी कमान

विधानसभा चुनाव में भाजपा मप्र में दो मोर्चों पर काम कर रही है। पहले मोर्चे पर पार्टी के दिग्गज नेता तैनात हैं जो, चुनाव प्रचार कर भाजपा प्रत्याशी के लिए माहौल बना रहे हैं। वहीं दूसरे मोर्चे पर बाहरी नेता तैनात हैं जो पूरी चुनावी कमान संभाले हुए हैं। ये नेता स्थानीय स्तर पर समीकरणों को साध रहे हैं। दरअसल, भाजपा के थिंक टैंक की रणनीति कांग्रेस दिग्गजों को घर में ही घेरने की है। ताकि नेता अपनी सीटों को बचाने में ही उलझे रहें और उन्हें प्रदेश भर में चुनाव प्रचार का ज्यादा मौका ही न मिले। इसी रणनीति के चलते भाजपा ने अपने बड़े सूमराओं को भी मैदान में उतारा है। भाजपा की इस रणनीति से कांग्रेस उलझ गई है। गौरतलब है की इस समय मप्र में चुनाव अपने पूरे शबाब पर पहुंच गया है। प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह से लेकर भाजपा के बड़े नेता चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। वहीं कांग्रेस में अध्यक्ष मलिकार्जुन खडग़े , प्रियंका गांधी और राहुल गांधी तूफानी चुनाव प्रचार में लगे हैं। लेकिन इनके इतर भाजपा में एक लेयर ऐसी तैयार की गई है, जो स्थानीय स्तर पर चुनाव प्रबंधन कर रही है। ऐसे ढाई हजार से ज्यादा नेता प्रदेश में बाहर से बुलाए गए हैं। हर विधानसभा क्षेत्र में दस से पंद्रह नेता भाजपा का चुनाव प्रबंधन देख रहे हैं, स्थानीय नेताओं के साथ सामंजस्य के साथ काम कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस में चुनावी मैनेजमेंट स्थानीय नेताओं के हवाले किया गया है।
बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे दूसरे प्रदेश के नेता
गौरतलब है कि अभी तक मप्र के नेता दूसरे राज्यों के चुनाव में जाकर वहां बड़ी जिम्मेदारी संभालते थे। लेकिन इस बार भाजपा ने यही प्रयोग मप्र की 230 विधानसभा सीटों पर किया है। इन सीटों पर ढाई हजार बाहरी नेता चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे हैं। सवाल यही उठ रहा है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में बाहरी नेताओं को क्यों बुलाया गया है। क्या भाजपा के बड़े नेता अब यहां के नेतृत्व पर कम भरोसा करने लगे हैं। मामला कुछ भी हो लेकिन ये बाहरी नेता बड़ी जिम्मेदारी के साथ चुनाव प्रबंधन संभाल रहे हैं। इन नेताओं की अगुवाई में चुनाव प्रचार की रुखरेखा तैयार की जा रही है। राष्ट्रीय नेताओं के प्रचार का रोडमैप तैयार कर रहे हैं, जिससे उन्हें आसानी हो। नाराज नेताओं को मनाकर उन्हें काम पर लगाने का काम दिया गया है। बागी से समन्वय बिठाने की कोशिश की जा रही है। विधानसभा के जिले, मंडल से लेकर बूथ मैनेजमेंट की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। वहीं जातिगत आधार पर अलग समूहों की बैठकें की जा रही है।
चुनाव जिताने की जिम्मेदारी संगठन को
मिशन 2023 के लिए भाजपा की रणनीति की एक विशेषता यह है की पार्टी ने भले ही बाहरी नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन चुनाव जिताने की असल जिम्मेदारी स्थानीय संगठन की ही है। भाजपा का संगठन ही उसकी ताकत है, ये बात विपक्षी नेता भी जानते हैं। यही वजह है कि पीसीसी चीफ कमलनाथ कई बार कह चुके हैं कि मुकाबला भाजपा के संगठन से है। भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभाता है। वहीं कैडर बेस पाटी भाजपा से सीख लेते हुए इस बार कांग्रेस ने भी बड़े बदलाव किए हैं। पहली बार संगठन को मजबूत किया गया है। मंडलम, सेक्टर से लेकर बूथ स्तर तक भाजपा की ही तर्ज पर कांग्रेस ने भी नया संगठन खड़ा किया है।
सांसदों को उतारकर कांग्रेस की सांसे फुलाईं
मप्र में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा चुनावी अभियान में जुटी हुई है। इस अभियान के तहत भाजपा ने कांग्रेस को घेरने की भी तैयारी की है। इसके लिए भाजपा ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के लिए खास प्लान तैयार किया है। जिसके माध्यम से भाजपा इन नेताओं की उनके निर्वाचन क्षेत्रों में घेराबंदी करेगी। ताकि ये नेता अपने क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सके। इसके लिए भाजपा विशेष रणनीति पर काम कर रही हैं। भाजपा ने कुछ मुकाबले की सीटों पर अपने सांसदों को उतारकर कांग्रेस की सांसें फुला दी हैं। भाजपा की इस चाल के बाद कांग्रेस काफी समय तक तो इन सीटों पर उम्मीदवार ही घोषित नहीं कर पाई थी। इसके साथ ही बड़े नेताओं को घेरने की खास रणनीति के तहत भाजपा का प्रयास रहेगा कि यह नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर नहीं निकल पाए।
शाह के फॉर्मूले पर काम
गौरतलब है कि इस बार भाजपा की चुनावी कमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाथों में है। टिकट बांटने से लेकर चुनाव से जुड़े सारे काम शाह के मुताबिक ही किए गए हैं। अमित शाह यहां के नेताओं, पदाधिकारियों की प्रदेश में दर्जनों बैठकें कर चुके हैं। ये शाह का ही फॉर्मूला है जिसके तहत बिहार, गुजरात, महाराष्ट और उत्तर प्रदेश के नेताओं को मप्र के चुनाव में झोंका गया है। सबसे पहले इन राज्यों के 230 विधायकों को एक-एक सीट पर भेजकर उम्मीदवारों की खोज कराई गई। इसके बाद दूसरे चरण में 70 विधायकों को कमजोर विधानसभा क्षेत्रों में भेजा गया। अब ढाई हजार से ज्यादा नेताओं को प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनावी प्रबंधन के लिए लगाया गया है।

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