अहम और लक्ष्मी कृपा ने डुबोई लुटिया

अहम और लक्ष्मी कृपा
  • परिजनों का भी रहा छवि खराब करने में अहम योगदान

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में इस बार भी भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार कई मंत्रियों का हार का सामना करना पड़ा है। उनकी इस हार में सबसे बड़ी जो वजह रही है, उसमें उनका अहम और लक्ष्मी जी की कृपा का बड़ा रोल रहा है। खास बात यह है कि इन नेताओं की हार ऐसे समय हुई है, जब प्रदेश में भाजपा के पक्ष में अंडर करंट की स्थिति बनी हुई थी। इससे ही समझा जा सकता है, कि लोगों में उनके और उनके परिजनों को लेकर कितना गुस्सा बना हुआ है। सत्ता के मद में मदहोश कुछ नेताओं ने अपने इलाकों में परिजनों की मदद से राजशाही समय जैसे काम किए हैं, जिसकी परिणीति में जनता ने उन्हें अपने मत के माध्यम से जबाब देकर घर बिठा दिया है। वैसे तो इस बार भी एक दर्जन मंत्री हारे हैं, लेकिन चर्चा सर्वाधिक है, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया की। यह दोनों ऐसे मंत्री हैं, जिनकी कार्यशैली अपने इलाके में ही नहीं बल्कि, पूरे प्रदेश में चर्चित बनी हुई है। यही वजह रही कि इन मंत्रियों के इलाकों में पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान में चले नारा मोदी तुमसे बैर नहीं, लेकिन रानी की खैर नहीं। इस नारे को शिवराज से बैर नहीं, मंत्री तुम्हारी खैर नहीं के रूप में चरितार्थ होते देखा गया। प्रदेश में अभूतपूर्व विजय के बावजूद ग्वालियर चंबल में चुनावी समर में उतरे छह में से पांच दिग्गज मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है। हार का अंतर भी कोई छोटा-मोटा नहीं, बल्कि 50 हजार तक है। शामिल हैं। मंत्रियों के चुनाव हारने से एक बात तो स्पष्ट है कि स्थानीय मतदाता इनके कामकाज के तौर-तरीकों से बिल्कुल खुश नहीं थे। दतिया से प्रत्याशी नरोत्तम मिश्रा की बात की जाए तो, उनका शहर के साथ ही ग्रामीण इलाकों में बेहद तगड़ा विरोध था, जिसकी कई वजहें हैं। उनके गृहमंत्री बनते ही सबसे पहले उनके इलाके में राजनैतिक रंजिश के चलते जमकर आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए हैं। इसकी वजह से दर्जनों लोगों को बेवजह जेल तक जाना पड़ा है। यही नहीं उनके स्टाफ द्वारा भी काम के लिए जमकर अवैध वसूली की बातें लोग करते हैं। कहा तो यह भी गया है कि इस मामले में पूरे प्रदेश में कई लोग सक्रिय हैं, जो उनके नाम पर अवैध वसूली का काम करते हैं।  बताया गया है कि दतिया शहर और झांसी से लगे बसई से मिश्रा को जीत की आशा थी। यह वो क्षेत्र है, जहां से बीते चुनाव में उन्हें जीत मिली थी, लेकिन इस बार इन इलाकों ने भी उनका साथ नहीं दिया है। बसई में कानून व्यवस्था और जुआ-सट्टा से लोगों के परेशान होने की बात कई बार  सामने आ चुकी थी। विरोधियों का कहना है कि दतिया में उनके करीबियों का राज चलता था। उनकी कार्यशैली को लेकर गुस्सा किस कदर है, इसकी बानगी बीते रोज मतगणना समाप्त होने पर तब दिखी, जब भीड़ ने उनके बेटे सुकर्ण को न केवल दौड़ा दिया, बल्कि उनके साथ जमकर अभद्रता भी कर डाली।  

उधर, उनके स्टाफ पर गाहे -बगाहे काम के बदले रुपए मांगने के आरोप भी लगते रहे हैं। इसी तरह से दूसरे मंत्री और अटेर से भाजपा प्रत्याशी अरविंद भदौरिया को लेकर सामने आयी है। उनकी हार की जो प्रमुख वजह सामने आ रही है, उसमें दद्दा टैक्स और ब्राह्मण विरोध बताया जा रहा है। भदौरिया क्षेत्र की राजनीति में बड़ा नाम है। हालांकि, सहकारिता मंत्री रहते हुए उनके अपारदर्शी कार्यप्रणाली से लोग गुस्से में थे। उनके बड़े भाई दद्दा टैक्स के कारण बदनाम थे, जिसका असर चुनाव पर भी देखने को मिला। कांग्रेस ने यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी हेमंत कटारे को उतारा था। कटारे को भदौरिया से नाराज ब्राह्मणों का एकमुश्त वोट मिला, जिससे वह 20 हजार से अधिक के अंतराल से चुनाव जीत गए। इसी तरह सें पोहरी से भाजपा प्रत्याशी और राज्यमंत्री सुरेश राठखेड़ा का क्षेत्र में जमकर विरोध था। उनकी खराब छवि के चलते ही भाजपा उन्हें टिकट देने के पक्ष में नहीं थी, लेकिन श्रीमंत के दखल के बाद उन्हें टिकट देना पड़ा। उनका लेकर लोगों का गुस्सा चुनाव प्रचार के दौरान भी देखने को मिला, कहीं उनका अंगूठा चबा लिया गया तो कहीं खदेड़ कर भगा दिया गया। कई जगह वह रोए, लोगों के पैर पकड़ते हुए वीडियो भी जमकर वायरल हुए। इसी तरह से एक अन्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह को कांग्रेस के साहब सिंह गुर्जर से हार का सामना करना पड़ा। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खास  कुशवाह के बारे में कहा जाता है कि उनका व्यवहार लोगों को लेकर अच्छा नहीं था। ब्राह्मण बहुल कई गांवों में जबरदस्त विरोध था। काम नहीं होने से कार्यकर्ता भी बेहद नाराज था। इसी तरह से एक और मंत्री , जिन्हें हार का सामना करना पड़ा है वे हैं कमल पटेल । उनकी हार की वजह उनके बेटा और रिश्तेदार बने हैं। इलाके में उनका ही राज चलता था। मतदान के दिन का भी एक वाट्सअप का फोटो जमकर वायरल हो चुका है।  

एक तिहाई मंत्री हारे
इस बार चुनाव में भारी जीत के बाद भी कैबिनेट के एक तिहाई मंत्रियों को चुनाव मैदान में हार का सामना करना पड़ा। इनमें सात कैबिनेट मंत्री और पांच राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार शामिल है। प्रदेश में मौजूदा शिवराज सिंह सरकार में 33 मंत्री शामिल थे। इसमें से दो मंत्रियों को भाजपा ने विधानसभा चुनाव का टिकट ही नहीं दिया था। श्रीमती वशोधरा राजे सिंधिया ने पहले ही चुनाव न लड़ने की ऐलान कर दिया था। ऐसे में उनका टिकट काट दिया गया था, उसके बाद राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार ओपीएस भदौरिया को भी टिकट नहीं मिला था। इस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा कुल 31 मंत्री मैदान में थे। इनमें से केवल 19 ही चुनाव जीतने में कामयाब हुए। हारने वाले मंत्रियों में डॉ. नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल, महेंद्र सिंह सिसोदिया, अरविंद सिंह भदौरिया, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, गौरीशंकर बिसेन प्रेमसिंह पटेल। ये राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार भी हार गए, भारत सिंह कुशवाह, रामखेलावन पटेल, राम किशोर नानो कांवरे, सुरेश धाकड़ राहुल सिंह लोधी शामिल हैं।

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