भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र देश का ऐसा प्रदेश है, जहां पर सर्वाधिक महंगी बिजली उपभोक्ताओं को मिल रही है। इसके बाद भी बिजली कंपनियों के आला अफसर इस उधेड़बुन में लगे रहते हैं, कि आगे किस तरह से कंपनियों का न केवल घाटा बरकरार रहे बल्कि किस तरह से उपभोक्ताओं को दी जाने वाली बिजली महंगी की जा सके। दरअसल यह पूरा खेल निजी बिजली उत्पादकों को फायदा पहुंचाने की रुचि के चलते खेला जाता है। इसकी वजह से लगातार उपभोक्ताओं की जेब कट रही है। खास बात यह है कि इस मामले में सरकार और शासन के सभी जिम्मेदार पूरी तरह से बिजली कंपनी के जिम्मेदार अफसरों के कारनामों पर आंखे बंद किए रहते हैं।
इस खेल के चलते ही प्रदेश सरकार के सभी बिजली उत्पादन प्लांटो में पूरी क्षमता से बिजली उत्पादन नहीं किया जाता है, जिसकी वजह से प्रदेश के थर्मल पावर प्लांट औसतन 70 फीसदी क्षमता से ही उत्पादन कर पाते हैं, इसकी वजह से न केवल उनका रखरखाव खर्च बढ़ जाता है, बल्कि बिजली उत्पादन खर्च में भी वृद्धि हो जाती है। इसके लिए सरकारी पावर प्लांट से बिजली उत्पादन कम करके निजी क्षेत्र से भरपूर खरीदी की जाती है।
हालत यह है कि प्रदेश की बिजली कंपनियां जो बिजली खरीदती हैं वह पावर ग्रिड तक आते -आते 45 पैसे प्रति यूनिट महंगी हो जाती है। इसके बाद यही बिजली जब कंपनियों के ग्रिड पर आती है तब इसी बिजली के दाम 4 रुपए प्रति यूनिट हो जाती है। यानि कि कंपनी के ग्रिड तक आते -आते बिजली के दाम में 65 पैसे की वृद्धि हो चुकी होती है। दरअसल बिजली कंपनियां जिस बिजली की खरीदी 3.15 और रुपए प्रति यूनिट बताती हैं वह उपभोक्ताओं तक आने के पहले ही 65 पैसे यूनिट महंगी हो चुकी होती है। इसके बाद उपभोक्ताओं तक आते -आते उसी बिजली के दाम 6 रुपए प्रति यूनिट तक हो जाते है।
नहीं दी जाती पूरी डिमांड निजी बिजली उत्पादकों को फायदा पहुंचाने के लिए कंपनी द्वारा सरकारी थर्मल व हाइडल पावर प्लांटों को बिजली की पूरी डिमांड नहीं दी जाती है, जिसकी वजह से वे पूरी क्षमता के साथ नहीं चलाए जाते हैं। इसकी वजह से औसतन सरकारी प्लांट क्षमता से महज 70 फीसदी तक ही संचालित हो पाते हैं। इसकी वजह से उनका पीएलएफ यानी प्लांट लोड फैक्टर बढ़ जाता है। इसकी वजह से उनका मेंटेनेंस भी बढ़ता है। इस वजह से सरकारी प्लांट की बिजली की लागत बढ़ती है तो निजी खरीदी बढ़ा दी जाती है।
समाधान यह
निजी सेक्टर से बिजली खरीदने की बजाय सरकारी सेक्टर की बिजली का ज्यादा उपयोग किया जाए। सरकारी थर्मल व हाइडल पावर प्लांट को पूरी क्षमता से चलाया जाए। जिससे बिजली उत्पादन लागत में कमी आने से उसके दामों में भी कमी आएगी और उसका सीधा लाभ उपभोक्ताओं को मिल सकेगा। इसके अलावा निजी पॉवर प्लांटों की जगह सरकारी पावर प्लांटों को बढ़ाने पर जोर दिया जाए।
कदम-कदम पर बढ़ जाते हैं दाम
मप्र ऐसा राज्य है जहां पर बिजली के दाम हर कदम पर बढ़ जाते हैं। इसका भार आम उपभोक्ता को ही उठाना पड़ता है। अगर बिजली के हर यूनिट पर एक पैसे का भी अंतर आता है तो वह राशि करोड़ों में पहुंच जाती है। यदि एक यूनिट के दाम में दो पैसे की भी वृद्धि होती है तो एक बिल में औसतन 300 रुपए की तक की वृद्धि हो जाती है। यही वजह है कि बिजली लगातार महंगी होती चली जाती है।
इस तरह से किया जाता है खेल
बिजली कंपनियों द्वारा जो अपना टैरिफ प्लान बताया जाता है, उसमें बाकायदा बिजली खरीदी की दर 3.15 प्रति यूनिट बताया जाता है। कंपनी के इसी डाटा के आधार पर ही नियामक आयोग आंकलन करता है। उसका आंकलन है कि निजी सेक्टर से बिजली की खरीद कर ट्रांसमिशन व अन्य चार्जेस जोड़कर बिजली उपभोक्ताओं को मिलती है। राज्य की सरहद पर यही बिजली जब स्टेट ग्रिड पर आती है तो इसकी कीमत करीब 3.50 रुपए और फिर वहां से कंपनी ग्रिड पर आते-आते इसमें ट्रांसमिशन चार्जेस जुड़ जाने से वह 4 रुपए प्रति यूनिट हो जाती है। इसके बाद यही बिजली उपभोक्ताओं के घर तक आते-आते कई तरह के चार्जेज जोड़ने से छह रुपए प्रति यूनिट हो जाती है।
28/07/2021
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