लेटलतीफी की वजह से मप्र के खाते से जा सकता है नर्मदा के हिस्से का पानी

नर्मदा

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार की आर्थिक तंगी और प्रशासनिक कुप्रंबधन अब प्रदेश का भारी पड़ना तय माना जा रहा है। इसकी वजह हैं नर्मदा से जुड़ी वे लघु सिंचाई परियोजनाएं जो या तो अभी आधी अधूरी पड़ी हैं या फिर जिन पर अब तक काम ही शुरू नहीं हो पाया है। इस बीच सरकार की नई घोषणाओं ने मुश्किल को और बढ़ा दिया है।
प्रदेश में हालात यह हैं कि बजट के अभाव में आठ परियोजनाओं के टेंडर तक नहीं कराए जा पा रहे हैं। उधर जो परियोजनाएं चल रही हैं उनमें भी ठेकेदारों ने बजट अभाव के चलते काम को बेहद मंद गति से करना शुरू कर दिया है। फिलहाल प्रदेश में कुल 21 सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। मालवा-निमाड़ अंचल में काम कर रही एक कंपनी को अभी 700 करोड़ रुपए लेना हैं, लेकिन शासन ने हाल ही में महज करीब 300 करोड़ रुपए का भुगतान किया है। नर्मदा का पानी सिंचाई, बिजली उत्पादन और पेयजल के रूप में इस्तेमाल होता है। लेकिन गुजरात के साथ नर्मदा नदी से पानी के बंटवारे में प्रदेश की दावेदारी कमजोर पड़ती जा रही है। राज्य सरकार अपने हिस्से के 18.25 एमएएफ (मिलियन एकड़ फिट) पानी का उपयोग अब तक नहीं कर पाई है। आधी-अधूरी परियोजनाओं के कारण मध्य प्रदेश नर्मदा नदी से वर्ष 2024 तक अपने हिस्से का 18.24 एमएएफ पानी नहीं ले पाएगा। दरअसल, दो एमएएफ पानी लेने के प्रोजेक्ट के टेंडर ही नहीं हो पाए हैं।  करीब एक दर्जन प्रोजेक्ट का काम लगभग 70 फीसदी अधूरा है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने पैसों के अभाव में आठ बड़े प्रोजेक्ट के लिए टेंडर रोक रखा है। इन प्रोजेक्ट की लागत करीब 27 हजार करोड़ के आसपास आएगी।  टेंडर जारी होने पर 150 करोड़ रुपए तत्काल लगेंगे। इन प्रोजेक्ट को पूरा होने में चार से पांच साल लग सकते हैं, क्योंकि वन पर्यावरण सहित तमाम तरह की अनुमतियां लेनी होंगी। इन प्रोजेक्ट के पूरे होने पर प्रदेश में करीब पांच लाख हेक्टेयर में सिंचाई होगी। भुगतान नहीं होने से ठेकेदारों ने काम की गति धीमी कर दी है। ठेकेदारों को हर माह  300 करोड़ का भुगतान हो रहा है, जबकि 800 करोड़ का भुगतान चाहिए। नर्मदा घाटी विकास विभाग का बजट ही 3500 करोड़ है।
तो करीब 3.7 एमएएफ पानी गुजरात को मिल जाएगा
पानी बंटवारे की तय समय सीमा के मुताबिक नर्मदा जल बंटवारा न्यायाधिकरण (नर्मदा वॉटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल) वर्ष 2024 में अपने 41 साल पुराने फैसले पर पुनर्विचार करेगा। तब तक अपने हिस्से का 18.25 एमएएफ पानी का उपयोग मध्य प्रदेश नहीं कर पाया, तो करीब 3.7 एमएएफ पानी गुजरात के खाते में चला जाएगा। नर्मदा जल बंटवारा न्यायाधिकरण ने वर्ष 1979 में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच नर्मदा के पानी का बंटवारा किया था। 10 साल के अध्ययन और दोनों राज्यों की सुनवाई के बाद न्यायाधिकरण ने मध्य प्रदेश को 18.25 एमएएफ पानी का उपयोग करने की अनुमति दी थी, पर 41 सालों में राज्य बंटवारे का पानी खर्च नहीं कर पाया। अब वर्ष 2024 में न्यायाधिकरण अपने फैसले पर पुनर्विचार करने वाला है। इसे देखते हुए राज्य सरकार अपने हिस्से के पानी का उपयोग करना चाहती है। इसके लिए पिछले पांच साल में 21 परियोजनाओं की घोषणा की गई। जिनमें से एक भी चालू नहीं हो पाई है। सूत्र बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर हो चुकी सरकार इन परियोजनाओं के लिए बजट नहीं दे पा रही है।
बड़ी कई परियोजनाएं शुरू नहीं
सभी परियोजनाओं से नर्मदा नदी से लगभग 25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंचित होना है। इसमें 13 लाख हेक्टेयर सिंचाई के लिए जल संसाधन विभाग के जरिए विभिन्न प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। जल संसाधन विभाग के भी कई निर्माण कार्य काफी पीछे चल रहे हैं। वहीं कई परियोजनाएं शुरू नहीं हो पाई हैं। इनमें चिकी वोरास बैराज नरसिंहपुर, शंकर पेंच नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, दूधी परियोजना नरसिंहपुर, अपर नर्मदा परियोजना डिंडौरी, हाडिया बैराज हरदा, राघवपुर बहुउद्देश्यीय डिंडौरी, बसानिया मंडला, होशंगाबाद बैराज होशंगाबाद, कुक्षी परियोजना धार और सांवेर उद्वहन इंदौर।

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