
भोपाल/रवि खर/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत पांच सैकड़ा से ज्यादा कॉलेजों में पदोन्नति के नियम नहीं होने से प्रोफेसरों को इसके लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है। दरअसल पदोन्नति में आरक्षण का मामला पिछले पांच सालों से कोर्ट में लंबित है।
ऐसे में इस लंबी अवधि के दौरान हजारों प्रोफेसर पदोन्नति का लाभ लिए बिना ही रिटायर हो गए। बिडंबना रही कि इस दौरान सरकार सुप्रीम कोर्ट से सशर्त पदोन्नति के आदेश भी नहीं ले पाई। हालांकि भारत सरकार ने वर्ष 2018 में कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति देने का आदेश जारी किया था।
इस पर राज्य सरकार ने नियम भी बना लिए पर नियमों को लागू करना है या नहीं इस पर विधानसभा चुनाव के चलते तत्कालीन शिवराज सरकार कोई निर्णय नहीं कर पाई थी। उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने लेकिन यह सरकार भी इस मामले में कोई निर्णय नहीं ले पाई और सत्ता पलट गई। अब फिर प्रदेश में भाजपा की सरकार है, ऐसे में गेंद फिर शिवराज सरकार के पाले में है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पिछले कार्यकाल में रिटायरमेंट की आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। उस दौरान सरकार का तर्क था कि चूंकि पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में कर्मचारियों को पदोन्नति का नुकसान ना हो इसलिए आयु सीमा बढ़ाई जा रही है। यह अवधि भी मार्च 2020 समाप्त हो चुकी है। इसके बाद तीन सौ ज्यादा प्रोफेसर और सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
अधिकांश कॉलेजों में प्रभारी संभाले हैं व्यवस्था
बहरहाल प्रदेश के अधिकांश कॉलेज प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रहे हैं। ऐसे में जहां एक ओर कॉलेजों में पढ़ाई प्रभावित हो रही है, वहीं अन्य व्यवस्थाएं भी बाधित हो रही है। यही वजह है कि कॉलेजों में कई बड़े काम लंबित पड़े हैं। कॉलेजों में प्रभारी प्राचार्य को फाइनेंशियल पावर तो दिए हैं लेकिन उन्हें काम में कठिनाई होती है। उन्हें हर समय इस बात का डर लगा रहता है कि कब उन्हें प्रभारी प्राचार्य के पद से हटा दिया जाएगा। हालांकि विभाग द्वारा उसे सभी तरह की छूट दी गई है लेकिन फिर भी वे असमंजस की स्थिति में रहते हैं।
80 फीसद से अधिक पद हैं खाली: प्रदेश भर के कॉलेजों की स्थिति पर नजर डालें तो स्नातक प्राचार्य के 330 स्वीकृत पदों में से 80 फीसदी से ज्यादा पद खाली है। वहीं स्नातकोत्तर प्राचार्य के स्वीकृत पदों की भी यही स्थिति है। अधिकांश पद खाली है। दरअसल इसके पीछे बड़ी वजह लंबे समय से कॉलेजों में पदोन्नति नहीं होना है। ज्ञात हो कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कुछ कर्मचारियों की याचिका पर 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया है। इस पर पिछले पांच साल से लगातार सुनवाई चल रही है, लेकिन इस मामले में इतने आ गए हैं कि अब तक फैसला नहीं हो सका है और ना ही सरकार सशर्त पदोन्नति की अनुमति ले सकी है। बहरहाल शिवराज सरकार ने पिछले कार्यकाल यानी 2017 के आखिर में उच्च न्यायालय से सशर्त अनुमति लेकर पदोन्नति शुरू करने की कोशिशें शुरू कर दी थी, लेकिन अब तक इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में प्रोफेसर पदोन्नति के लाभ से वंचित है और ऐसी स्थिति में ही रिटायर भी होते जा रहे हैं।