भ्रष्टाचार की जांच में फंसे हैं प्रदेश के दर्जनों आला अफसर

भ्रष्टाचार

आईएफएस की तुलना में आईएएस अफसरों की संख्या दोगुनी  

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दावा करती है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।  सचिवालय से लेकर प्रदेश के अधिकांश मलाईदार पदों पर, ऐसे आईएएस अधिकारी काबिज हैं, जिन के खिलाफ लोकायुक्त से लेकर ईओडब्ल्यू तक में भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। खास बात यह है कि यही वे अफसर हैं, जो न केवन नीति नियंता है , बल्कि उनके जिम्मे ही कानून का पालन कराना होता है। सरकार द्वारा दी गई अधिकृत जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश के कई दर्जनों आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों में जांच चल रही है। जांच के दायरे में आए अफसरों में सबसे ज्यादा संख्या आईएएस अफसरों की है।
राज्य के 63 आईएएस और 37 आईएफएस अफसरों की जांच हो रही है। अच्छी बात यह है कि भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों की जांच के दायरे में आने वाले आईपीएस अफसरों की संख्या महज आधा दर्जन ही है। खास बात यह है कि यह जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीते रोज मंगलवार को कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव के सवाल के लिखित जवाब में राज्य विधानसभा में दी है। जाटव ने अपने लिखित प्रश्न में पूछा था कि नवंबर 2021 तक की अवधि में कितने आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों की किस-किस एजेंसी द्वारा जांच की जा रही है और उनके खिलाफ क्या शिकायतें हैं। उत्तर में मुख्यमंत्री ने बताया कि भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नति एवं चयन की कार्यवाही नियमावली 1955 के तहत की जाती हैं। जिन अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति, निलंबन और आरोप पत्र की कार्रवाई प्रचलित रहती है, उनके संबंध में संनिष्ठा प्रमाण पत्र जारी नहीं किए जाते हैं। शिकायतों के आधार पर संनिष्ठा रोकने का प्रावधान नहीं है। विधानसभा को दी गई जानकारी के अनुसार लगभग छह सालों की अवधि में लोकायुक्त में 35 आईएएस, 19 आईएफएस और 3 आईपीएस के खिलाफ जांच चल रही है। वर्ष 2009 से 2021 की अवधि में ईओडब्ल्यू में 28 आईएएस, 18 आईएफएस और 3 आईपीएस के खिलाफ जांच की जा रही है। पुलिस मुख्यालय की स्थानीय विजिलेंस भी 13 आईपीएस अफसरों की जांच कर रही है। उसके अलावा 13 आईपीएस की जांच एक अन्य एजेंसी कर रही है। जांच के दायरे में आने वाले राज्य प्रशासनिक सेवा और राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों की संख्या भी बहुत है।
इन अफसरों के यहां डाले गए छापे
कनिष्ठ अभियंता राजेश कुमार तिवारी, लेखा वरिष्ठ अंगद प्रसाद शुक्ला, शाखा प्रबंधक प्रेमधारी सिंह, समिति प्रबंधक शुक्रमणि मिश्रा, तत्कालीन जनपद उपाध्यक्ष राकेश पांडेय, तत्कालीन संयुक्त संचालक राजेंद्र कुमार झारिया, जनपद पंचायत  सचिव कमलेंद्र सिंह, सहायक उप निरीक्षक हरिशंकर तिवारी, मुनींद्र कुमार दुबे,  संविदा शिक्षक पंकज श्रीवास्तव, रोजगार सहायक राजन सिंह यादव, खनिज अधिकारी प्रदीप खन्ना, उपयंत्री डीके जैन, प्रभारी जलकार्य विजय सक्सेना, भारत सिंह हाड़ा, अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. महेंद्र कुमार तेजा, बाबूलाल विश्वकर्मा, प्रभारी कार्यपालन यंत्री ऋषभ कुमार जैन, कादर फकरूद्दीन, सच्चिदानंद सिंह, नरेंद्र सिंह भदौरिया, चंद्रप्रकाश पाठक, ईना चौहान, शैलेंद्र सिंह जाट, लेखाधिकारी संतोष शर्मा तथा एसडीओ रविंद्र सिंह कुशवाह का नाम शामिल हैं। खास बात यह है कि इस साल एक सरपंच शुभा सिंह के घर पर भी छापे की कार्रवाई की गई है।
लोकायुक्त छापे की जद में आए ढाई दर्जन से अधिक कर्मचारी
विधानसभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक लिखित उत्तर में बताया कि बीते एक साल के दौरान लोकायुक्त पुलिस द्वारा 32 सरकारी कर्मचारियों के यहां छापे मारे हैं। इन लोगों के ठिकानों से भारी मात्रा में संपत्ति और नकद राशि जब्त की गई  है। बताया गया है कि इन सभी के मामलों की अभी जांच जारी है , जिसकी वजह से इन मामलों में न्यायालय में अभी चालान पेश नहीं किए गए हैं। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव के सवाल के लिखित जवाब में बताया कि इसी तरह से आर्थिक अपराध अंवेषण ब्यूरो ने भी 13 प्रकरणों में भ्रष्टाचार को लेकर मामले दर्ज किए हैं। इन मामलों में भी जांच की जा रही है।

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