मैदानी खाली पदों से दोगुने डीआईजी अफसर जमे हैं पुलिस मुख्यालय में

पुलिस मुख्यालय

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। बीते कुछ समय से मध्यप्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का माहौल दिख रहा है। फिर चाहे किसी भी सेवा के अफसरों की पदस्थापना का मामला हो। इनमें आईएएस से लेकर राज्य सेवा के अफसर तक शामिल हैं। अगर इन अफसरों की पदस्थापना के यह हाल हैं तो अन्य छोटे कर्मचारियों व अधिकारियों के मामलों की हालत समझी जा सकती है। अगर अखिल भारतीय पुलिस सेवा के अफसरों की बात की जाए तो प्रदेश में अभी चार पद डीआईजी के रिक्त चल रहे हैं। इसी हफ्ते एक पद और रिक्त होने जा रहा है। इस स्तर के अफसरों की प्रशासन द्वारा रिक्त पदों पर पदस्थापना ही लंबे समय से नहीं की जा रही है।
इसकी वजह से हालत यह है कि प्रदेश में इस स्तर के अफसर मैदान में नौकरी करने की जगह बगैर काम के पुलिस मुख्यालय में पदस्थ हैं। इसकी वजह से रेंजों में डीआईजी के रिक्त पदों का काम प्रभार देकर चलाया जा रहा है। प्रदेश में फिलहाल चार रेंजों में डीआईजी के पद रिक्त बने हुए हैं जबकि पुलिस मुख्यालय में इससे दोगुने डीआईजी पदस्थ हैं। खास बात यह है कि पुलिस मुख्यायाल में पदस्थ इन अफसरों के पास कोई भी काम नहीं है। यह अफसर बगैर काम के वेतन भत्ते और अन्य सरकारी सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं। इसके बाद भी सरकार खाली पड़े पदों पद इन अफसरों की तैनाती करने को तैयार नहीं दिख रही है। दरअसल पुलिस मुख्यालय में इतने अधिक अफसर पदस्थ हैं कि अधिकांश अफसरों के पास नाम मात्र का ही काम है। इसी तरह से पीएचक्यू में एडीजी स्तर के करीब आधा सैकड़ा अफसर पदस्थ हैं। इनमें से कई के पास तो नाम के लिए काम है। मध्यप्रदेश में डीआईजी रेंज का जो नया पद रिक्त हो रहा है।वह है सागर डीआईजी का पद। यह पद डीआईजी सागर आरएस डेहरिया के 31 अगस्त को सेवानिवृत्त होने से होने से हो रहा है। इसी तरह से बीते दो माह से जबलपुर डीआईजी का पद रिक्त चल रहा है। यह पद मनोहर सिंह वर्मा के सेवानिवृत्त होने की वजह से रिक्त हुआ है। इसी तरह से शहडोल रेंज भी बीते साल नवंबर से डीआईजी की पदस्थापना की राह देख रही है।  यहां पर पीएस उइके सेवानिवृत्त हुए थे। छिंदवाड़ा रेंज भी बीते आठ माह से रिक्त है। इस रेंज के तत्कालीन डीआईजी अनिल माहेश्वरी का जनवरी 2021 में तबादला कर दिया गया था। इसके बाद इसी साल फरवरी 2021 के पहले सप्ताह में उज्जैन डीआईजी मनीष कपूरिया की पदस्थापना इंदौर शहर में कर दिए जाने से यह पद भी रिक्त चल रहा है। हद तो यह हो गई इन सभी पदों पर अब तक किसी भी अधिकारी की पदस्थापना नहीं की गई है। अगले साल जनवरी 2022 में डीआईजी गौरव राजपूत आईजी बन जाएंगे, उनकी जगह ललित शाक्यवार एसपी से डीआईजी पद पर पदोन्नत हो जाएंगे। इस वजह से अगले साल भी आठ डीआईजी रैंक के अफसर पदस्थापना के लिए मौजूद रहेंगे। इस मामले में तो कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है, बल्कि इसके उलट पीएचक्यू द्वारा कुछ समय पहले डीआईजी के पद कम कर एडीजी के पदों की वृद्धि के प्रयास कर दिए। इससे स्पष्ट है कि पुलिस मुख्यालय द्वारा डीआईजी और आईजी अथवा एडीजी के काम को तकरीबन एक समान मान लिया गया है। दरअसल पुलिस मुख्यालय में ऐसा कोई काम नही है कि डीआईजी के न होने से प्रभावित होता हो। अगर रेंज के कामकाज को देखा जाए तो पुलिस मुख्यालय की तुलना में अधिक काम डीआईजी के पास ेहोता है।  इसमें डीआईजी के पास सबसे महत्वपूर्ण काम मैदानी पुलिसकर्मियों की पदोन्नति का होता है। इसकी वजह है हवलदार से एएसआई के पद पर पदोन्नति का अधिकार डीआईजी के पास है। यही वजह है कि जब प्रदेश में बीते कई माह से हवलदार को एएसआई का उच्च पद का प्रभार देना शुरू किया तो उस समय आनन- फानन में पीएचक्यू ने रेंज व पीएचक्यू के डीआईजी को प्रभार देने का कदम उठाया था। इसके लिए बाकायदा प्रभार देने के आदेश जारी किए गए थे, लेकिन उसमें नई पदस्थापना का कोई उल्लेख तक नहीं किया गया। इस पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। इससे यह तो तय हो गया है कि शासन व प्रशासन के अलावा सरकार की रुचि इस तरह के पदों को भरने में क्यों नही है। दरअसल डीआईजी रैंक का पद मैदानी स्तर पर चार्मफुल नहीं माना जाता है , जिसकी वजह से कोई भी डीआईजी रैंक का अफसर मैदानी पदस्थापना नही चाहता है। आला अफसर भी उनकी मंशा का पूरा ख्याल रखते हैं। इसकी वजह से भले ही पद रिक्त बने रहें, लेकिन उनकी पदस्थापना नहीं की जा रही है।  
यह डीआईजी पदस्थ हैं पीएचक्यू में
वर्तमान में जो आठ डीआईजी रैंक के अफसर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ हैं उनमें  गौरव राजपूत, कुमार सौरभ, डॉ. आशीष, एमएल छारी, आरआर सिंह परिहार, मिथिलेश शुक्ला, एन. चैत्रा, कृष्णा बेनी देशावतु शामिल हैं। यह सभी अफसर पूर्व में एसपी रहते लगातार कई जिलों में पदस्थ रह चुके हैं। दरअसल आईजी के पद बेहद महत्वपूर्ण होने के साथ ही चार्मफुल होता है जिसकी वजह से इस पद पर रहते मैदानी पदस्थापना के लिए पूरा जोर लगाने वाले अफसर डीआईजी बनते ही मुख्यालय में पदस्थ होने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं।

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