- मोबाइल गेम्स से बच्चों में बढ़ी आत्महत्या की प्रवृति…
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। अगर आपके बच्चे के स्वभाव में एकाएक बदलाव आ रहा है और वह चिड़चिड़ा हो रहा है, तो आपको ध्यान देने की जरूरत है। दरअसल, ऑनलाइन गेमिंग बच्चों को आक्रामक बना रही है, साथ ही गेम खेलने के दौरान निकलने वाला डोपामिन हारमोन बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग का आदी बना रहा है। इससे बच्चों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ ही है। देश में 2 साल में 24 हजार से अधिक बच्चों ने आत्महत्या की है। इनमें सबसे अधिक मप्र के केस हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की बढ़ती आत्महत्या चिंता का विषय है।
पहले परीक्षा और परिणाम के डर से आत्महत्याओं के केस सामने आते थे, लेकिन अब बच्चे मोबाइल के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। मोबाइल में मनोरंजन के नाम पर उपलब्ध गेम्स हर परिवार के लिए हॉरर गेम्स बनते जा रहे हैं, जो बच्चों के माइंड को कैप्चर कर उनकी जिंदगी को छीन ले रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के 24,000 से अधिक बच्चों ने 2017 से लेकर 2019 तक यानी दो वर्षों में आत्महत्या कर ली है, हालांकि अभी इसमें गेम्स के कारण होने वाली आत्महत्या की कैटेगरी को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि बच्चों के बीच आत्महत्या का यह नया कारण पिछले दो साल में ही उभर कर आया है।
साल दर साल बढ़ रहे मामले
चिंता की बात यह है कि बच्चों के आत्महत्या के मामले साल दर साल बढ़ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2017-19 के बीच आत्महत्या से 14-18 साल की 13,325 लड़कियों सहित 24,568 बच्चों की मौत हुई। 2017 में, 14-18 वर्ष के आयु वर्ग के 8,029 बच्चों की आत्महत्या से मृत्यु हो गई। 2018 में यह संख्या बढ़कर 8,162 हो गई और फिर 2019 में बढ़कर 8,377 हो गई। इस आयु वर्ग के बच्चों में आत्महत्या से होने वाली मौतों की सबसे अधिक संख्या 3,115 मध्यप्रदेश में, इसके बाद पश्चिम बंगाल में 2,802, महाराष्ट्र में 2,527 और तमिलनाडु में 2,035 दर्ज की गई। अभी तक बच्चों की आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह परीक्षा में फेल होना है। आंकड़ों के मुताबिक 4,046 बच्चों की आत्महत्या के पीछे परीक्षा में फेल होने को कारण बताया गया। वहीं, 411 लड़कियों समेत 639 बच्चों की आत्महत्या के पीछे शादी से जुड़ा मामला बताया गया। करीब 3,315 बच्चों ने प्रेम प्रसंग से जुड़े कारणों से आत्महत्या कर ली, जबकि 2,567 बच्चों की आत्महत्या के पीछे बीमारी को कारण बताया गया है। 81 बच्चों की मौत का कारण शारीरिक शोषण बताया गया।
बच्चा क्या कर रहा है निगरानी जरूरी
चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट अंजली अग्रवाल के अनुसार अभी तक बच्चों में आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह परीक्षा थी, लेकिन पिछले डेढ़ साल में जब से कोरोना आया है और एग्जाम नहीं हुए, तब से पढ़ाई की वजह से संभवत: किसी भी बच्चे ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि अब मोबाइल गेम्स बड़ी वजह बनते जा रहे हैं। बच्चों का मन बहुत चंचल और कमजोर होता है इसलिए वो आसानी से भटक जाते हैं। बच्चों में सुसाइड की प्रवृत्ति को रोकने के लिए पैरेंट्स को ही सबसे पहले पहल करनी चाहिए। जहां तक मोबाइल की बात है तो वाकई में उन पर नजर रखना थोड़ा कठिन है, क्योंकि कोरोना के बाद अब हर बच्चे के हाथ में ऑनलाइन क्लास के नाम पर मोबाइल आ चुका है। ऐसे में पढ़ाई का बहाना बनाकर वे मोबाइल में क्या देख रहे हैं और क्या खेल रहे हैं, पता करना मुश्किल रहता है और बार-बार मोबाइल चेक करने पर वह चिड़चिड़े, गुस्सैल और आक्रमक भी हो जाते हैं। आजकल अधिकांश मोबाइल गेम पेमेंट वाले हैं, इसलिए समझदारी इसी में है कि आप उन्हें अपने मोबाइल का पासवर्ड न बताएं और उन्हें बल्कि अलग से मोबाइल दे दें। उनके मोबाइल में कभी भी ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधाएं प्रारंभ न करवाएं। बच्चों के अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्हें किसी न किसी काम में या एक्टिविटी में इन्वाल्व रखें। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ऑनलाइन गेमिंग, फैंटेसी स्पोर्ट्स आदि गेम्स की बड़ी संख्या में विज्ञापन टेलीविजन पर दिखाई देने और इसकी गंभीरता को समझते हुए एडवाइजरी भी जारी की है, जिसमें अब गेमिंग विज्ञापन के साथ चेतावनी इस गेम में वित्तीय जोखिम का एक तत्व शामिल है और इसकी लत लग सकती है। कृपया जिम्मेदारी से और अपने खुद के जोखिम पर ही इसे खेलें। दिखाई जाने लगी है। यानि की अब गेम्स कंपनी पर कोई जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि जो भी गेम आप खेल रहे हैं, वे अपनी जिम्मेदारी पर खेल रहे हैं, कंपनी इसके लिए जवाबदेह नहीं होगी।
11/09/2021
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