- भाजपा के मंत्रियों व विधायकों का मामला
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे के मंत्रियों व विधायकों को लेकर संगठन बीते एक साल से परफॉर्मेंस का आंकलन करने में लगा हुआ है। इसके बाद भी आंकलन है की पूरा नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह से अब तो राजनैतिक विश£ेषकों का मानना है कि कहीं इस मामले में देर नहीं हो जाए। दरअसल अब तो कार्यकर्ताओं से लेकर आमजन तक को भी लगने लगा है कि यह सिर्फ बातें हैं बातों का क्या। इसकी वजह है अब तक किसी भी तरह का कोई कदम नहीं उठाया जाना। वैसे भी अब प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में महज सात माह का समय रह गया है। ऐसे में कार्यकर्ताओं से लेकर जनता तक में निराशा का भाव बढ़ता ही जा रहा है। न तो कार्यकर्ताओं को सत्ता में भागीदारी मिल सकी है और न ही आम जनता को सुशासन का अनुभव हो पा रहा है। ऐसे में संगठन व सरकार द्वारा हर कभी मंत्रियों व विधायकों के साथ होने वाली समीक्षा बैठकों और विचार मंथनों पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। लगातार जारी इस तरह की कवायद के बाद भी न तो प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार हो सका है और न ही मैदानी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को पार्टी के सत्ता में होने का अहसास हो पा रहा है। जनता के तो ठीक कार्यकर्ता अपने ही व्यक्तिगत काम तक नहीं करा पा रहे हैं। तमाम सर्वे से लेकर पार्टी के आंकलन में अब तक करीब आधे विधायक और अधिकांश मंत्री पार्टी की मंशा पर खरे नहीं उतरे हैं , फिर भी उन्हें महज नसीहत का ही डोज पिलाया जा रहा है। ऐसे में एक बार फिर से केन्द्र स्तर पर अब प्रदेश में सत्ता-संगठन के विभिन्न नेताओं और मैदानी कार्यकताओं के साथ विचार मंथन कर मंत्री-विधायकों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट तैयार करने की कवायद कर रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल और प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव स्वयं प्रदेश के विभिन्न जिलों में घूम कर जनप्रतिनिधियों की सक्रियता और जनता के बीच उनकी साख का आंकलन कर चुके हैं। दो दिन पहले भी रविवार को मंत्रियों की बैठक के दौरान भी सभी से निर्धारित फार्मेट में उनकी सक्रियता का ब्यौरा मांगा गया था। पहले यह बैठक सीएम हाउस में होना थी, लेकिन बाद में बैठक भाजपा मुख्यालय में बुला ली गई थी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि टिकट वितरण में नेताओं की सक्रियता का यह रिपोर्ट कार्ड मुख्य भूमिका निभाएगा। प्रदेश में संगठन की ओर से कार्यकताओं की नाराजी दूर करने के लिए कई महीने पहले भाजपा दफ्तर में एक दिन मंत्रियों को बैठने के लिए कहा गया था। इसी तरह प्रभार के जिलों में भी मंत्रियों के प्रवास बढ़ाने और रात्रि विश्राम का फरमान जारी हुआ था ,लेकिन इस पर अब तक कोई अमल ही नहीं किया गया। मंत्रियों की बैठक में यह मुद्दा जब उठा तो ज्यादातर मंत्री बगलें झांकने लगे।दरअसल संगठन नकारात्मक फीडबैक कम करने के लिए ही यह व्यवस्था की थी। प्रदेश के सभी जिलों में विकास यात्राओं का जो फीडबैक सामने आ रहा है उसे भी जनप्रतिनिधियों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट से जोड़कर देखा जाएगा। फिलहाल यह बात तो तय है कि इस बार सरकार को लेकर एंटीइन्कमवेंसी बहुत अधिक है और इसे कम करने के उपाय नहीं किए गए तो पार्टी को चुनाव में नुकसान होना तय माना जा रहा है। इसके बाद भी सत्ता व संगठन का फोकस चिंतन मनन बैठकों पर ही बना हुआ है, जबकि इस मामले में मैदानी स्तर पर काम किया जाना चाहिए।
संगठन के काम काज की ली जा रही कैफियत
भाजपा संगठन की ओर से बूथ स्तर पर चलाई गई 51 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने की मुहिम, बूथ डिजिटलाइजेशन और सशक्तिकरण की प्रगति रिपोर्ट भी ली जा रही है। मैदानी स्तर पर इन कार्यक्रमों का परीक्षण भी कराया जा रहा है। बूथ कमेटियों को इसका फीडबैक देने को भी कहा गया है। बताया जाता है कि पिछले चुनाव के दौरान अलग-अलग सीटों पर पार्टी के पक्ष में कितने फीसदी मतदान हुआ इसका रिकॉर्ड भी देखा जा रहा है। मैदानी सर्वे रिपोट्र्स और पार्टी के अपने आकलन के बाद ही पार्टी टिकट को लेकर कोई फॉमूर्ला तय करेगी।
निराशा के भाव की वजह
अब चुनाव में महज सात माह का समय रह गया है, ऐसे में अगर सत्ता में भागीदारी दी भी जाती है, तो जब तक काम- काज समझ में आएगा, तब तक चुनावी आचार संहिता लग जाएगी। इसकी वजह से कार्यकर्ताओं व नेताओं में अब उत्साह समाप्त हो गया है। यही नहीं जिस तेजी से पूर्व नौकरशाहों को उपकृत करने में सरकार दरियादिली दिखाती रही है, वह भी पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा की वजह है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि काश ऐसी ही चिंता कार्यकर्ताओं के बारे में की जाती तो अच्छा होता।
अफसरशाही भी पड़ रही भारी
प्रदेश में सरकार को लेकर एंटीइन्कमबैंसी की बड़ी वजह अफसरशाही को भी माना जा रहा है। अफसरान नेताओं व भाजपा कार्यकर्ताओं की सुनते नही हैं। वे अपने हिसाब से ही काम करते हैं, जिसकी वजह से आमजन को सरकार के प्रयासों के बाद भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आमजन की सरकारी दफ्तरों में सुनवाई होती नही है और वे जब भाजपा कार्यकर्ताओं से सम्पर्क करते हैं तो वे भी असहाय नजर आने लगते हैं।
गुजरात फॉर्मूले पर काम जारी
राष्ट्रीय कार्यसमिति में गुजरात फॉर्मूला की चर्चा और कड़े फैसले लेने की बात सामने आ चुकी है। इसके बाद हाल ही में छत्तीसगढ़ के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर वहां 40-45 फीसदी लोगों के टिकट काटने की पैरवी कर चुके हैं। मप्र के संदर्भ में भी पार्टी हाईकमान चुनाव जीतने के फॉर्मूला पर होमवर्क कर रही है। पब्लिक में साख और सर्वे के हिसाब से जीत की संभावनाओं के आधार पर ही निर्णय होंगे पर कमजोर सीटों के बारे में पार्टी ने अभी अपनी पॉलिसी उजागर नहीं की है।