- आलाकमान ने दिग्गी-नाथ को दिया फ्री हैंड
- विनोद उपाध्याय
मप्र में कांग्रेस का एक मात्र लक्ष्य है सत्ता में वापसी। इसके लिए अब कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को चुनाव के लिए पूरी तरह फ्री हैंड दे दिया है। यानी अब ‘डीके’ यानी दिग्विजय और कमलनाथ का पूरा फोकस चुनावी रण पर रहेगा। अब ‘डीके’ अपनी टीम के साथ चुनावी मैदान संभालेंगे। वहीं प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला के हाथ में संगठन की जिम्मेदारी रहेगी। ताकि कांग्रेस के दिग्गज नेता अपना अधिक से अधिक समय जनता के बीच दे सकें।
गौरतलब है की मप्र विधानसभा चुनाव में भाजपा अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जंग लड़ रही है तो, कांग्रेस वापसी के लिए बेताब है। इसके लिए कांग्रेस ने कमलनाथ के चेहरे को आगे कर रखा है तो, दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रहकर सियासी तानाबाना बुन रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति का यह हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि मप्र का राजनीतिक मिजाज हिंदुत्व के रंग में चढ़ा हुआ है। यही वजह है कि कमलनाथ फ्रेंटफुट पर तो दिग्विजय बैक डोर से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का खेल खेल रहे हैं?
सुरजेवाला संभालेंगे संगठन
वहीं पार्टी की रणनीति के अनुसार विधानसभा चुनाव होने तक अब संगठन के काम से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ दूर रहेंगे। संगठन की कमान अब प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला के हाथ में रहेगी। सूत्रों का कहना है कि सुरजेवाला का जोर इस बात पर है कि प्रत्याशी कोई भी हो, चुनाव कांग्रेस संगठन लड़े। इसके लिए संगठन को तैयार किया जा रहा है। नेता समन्वय बनाकर काम करें और जिम्मेदारियों का निर्धारण भी आपसी सहमति के आधार पर हो ताकि सभी की पूरी क्षमता का उपयोग भाजपा को हराने में किया जा सके। उन्होंने पदाधिकारियों को भी स्पष्ट कर दिया। है कि कर्नाटक की तरह सत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी संगठन की होगी।
दिग्गी-नाथ रहेंगे अग्रिम मोर्चे पर
कमलनाथ व दिग्विजय सिंह चुनावी मैदान के अग्रिम मोर्चे पर रहेंगे। चुनाव प्रचार की कमान इन्हीं दोनों नेताओं के हाथों में होगी। प्रत्याशियों की घोषणा के साथ ही कमल नाथ की विधानसभा क्षेत्रों में सभाएं शुरू होंगी। वहीं, वरिष्ठ नेताओं को भी अलग-अलग अंचलों की जिम्मेदारी देकर भेजा जाएगा। वरिष्ठ विधायकों को आसपास के विधानसभा क्षेत्रों में भी ध्यान देना होगा। संगठन ने प्रचार अभियान की कार्ययोजना तैयार की है। जन आक्रोश यात्रा के बाद राष्ट्रीय नेताओं के दौरे भी शुरू हो जाएंगे। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार अभियान की जो कार्ययोजना बनाई है, उस पर काम शुरू हो गया है। इसके तहत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ को संगठन के कामों से मुक्त रखा जाएगा ताकि, वे चुनाव प्रबंधन से लेकर प्रचार पर अधिक ध्यान दे सकें। उनके विधानसभा क्षेत्रवार दौरे निर्धारित किए जा रहे हैं, जो प्रत्याशियों की घोषणा के साथ तेज हो जाएंगे। प्रत्याशी चयन को लेकर सितंबर के अंतिम और अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में बैठकें होंगी, जिसकी तैयारी कमल नाथ वरिष्ठ नेताओं से विचार-विमर्श करके कर रहे हैं। प्रयास यही किया जा रहा है कि वे कम से कम एक बार प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अवश्य पहुंचे इसलिए एक दिन में दो से तीन कार्यक्रम प्रस्तावित किए गए हैं। – इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भी कार्यक्रम होंगे। वे डेढ़ माह में उन 66 विधानसभा सीटों का दौरा कर चुके हैं, जहां पार्टी लगातार हार रही है। इन क्षेत्रों में प्रत्याशी चयन के बाद दिग्विजय फिर दौरा करेंगे। प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ ने स्पष्ट कर दिया है कि अब संगठन से जुड़े सभी काम प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला देखेंगे।
दोनों कांग्रेस की धुरी
बता दें कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ही मप्र में कांग्रेस के धुरी बने हुए हैं, लेकिन दोनों ही उम्र में लगभग बराबर हैं। 76 साल के दोनों कांग्रेस नेता अपनी स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं। दोनों ही राज्य के दूसरे नेताओं पर भारी पड़ते हैं। दोनों का गांधी परिवार के साथ अच्छा तालमेल है। पिछले साल जब कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष का चुनाव होना था, तब मल्लिकार्जुन खडग़ेे का नाम सामने आने से पहले तक दोनों नेताओं के नाम इस रेस में लिया जाता है, लेकिन पुराने सियासी योद्धाओं के बीच समानताएं यहीं खत्म नहीं होती हैं। कमलनाथ पांच साल बाद भी पीसीसी प्रमुख बने हुए हैं और पहले की तुलना में मध्य प्रदेश और मुद्दों से कहीं ज्यादा परिचित हैं। लेकिन वह सडक़ यात्रा से अभी भी बचते हैं। कांग्रेस विधायकों और नेताओं ने पहले कुछ सालों में अकसर शिकायत की थी, कि उन तक पहुंचना आसान नहीं था। माना जाता है कि उन्होंने उन्हें (नेताओं को) केवल मिनटों का समय दिया। वहीं, दिग्विजय पहले से ज्यादा फिट हैं और आज भी सडक़ मार्ग से लंबी दूरी तय करते हैं। उन्हें उन 66 विधानसभा सीटों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा गया है, जिस पर पार्टी बार-बार हारती रही है। इस तरह दिग्विजय उन्हीं 66 सीटों पर अपना फोकस कर रखा है और साथ ही वो असहमति के स्वरों को शांत करना और कैडर्स को फिर से सक्रिय करना शामिल है।