- कई बिना कलेक्टर बने रिटायर, तो कईयों को कुछ समय के लिए मिली कलेक्टरी
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। देश के सबसे पढ़े-लिखे तबके यानी ब्यूरोक्रेट्स में हमेशा से भेदभाव दिखता है। खासकर पुरुष और महिला तथा डायरेक्ट और प्रमोटी आईएएस के बीच भेदभाव प्रशासनिक जमावट में साफ नजर आता है। महिला आईएएस और प्रमोटी आईएएस को कलेक्टरी देने में भेदभाव दिखाई देता है। इस भेदभाव का असर है कि कई अफसर बिना कलेक्टर बने ही रिटायर हो गए हैं।
मप्र बनने के 68 साल बाद भी प्रदेश की एक भी महिला आईएएस अधिकारी भोपाल, इंदौर और जबलपुर की कलेक्टर नहीं बन सकी। हालांकि इस श्रेणी में ग्वालियर का भी नाम था लेकिन इस साल मार्च में 2011 बैच की आईएएस रुचिका चौहान को कलेक्टर बनाया गया है। महिला अधिकारियों को उन जिलों की कमान दी जा रही है, जो आबादी के मान से दूसरे या तीसरे दर्जे के शहर हैं। महिला अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर चली आ रही यह परंपरा अभी भी जारी है। जबकि, मप्र उन चुनिंदा राज्यों में से एक है, जहां कई शीर्ष पदों पर महिलाएं रह चुकी हैं।
राज्य सरकार ने अभी तक सीधी भर्ती के 2014 बैच के आईएएस अफसरों को जिलों में कलेक्टरी दी है और इस बार 2015 बैच के अफसरों का नंबर कलेक्टर बनने में लगेगा। इनमें संस्कृक्ति जैन, अदिति गर्ग, पर्थ जैसवाल, रोशन कुमार सिंह, मृणाल मीना, हर्ष सिंह, हर्षल पंचौली, हिमांशु चंद्रा, नीतू रावत, अर्पित वर्मा, बाला गुरु के, गुनचा सनोबर तथा रानी सहाय आदि अफसरों को कलेक्टर बनाया जाएगा।
कलेक्टरी देने में दोहरा मापदंड
मप्र में महिला आईएएस अफसरों के साथ हमेशा से कलेक्टर बनाने में भेदभाव किया जाता रहा है। कई महिला आईएएस को सिर्फ एक ही जिले की कलेक्टरी दी गई, तो कुछ बिना कलेक्टर बने ही सचिव, आयुक्त के पद पर प्रमोट हो गई। महिला आईएएस के सीनियर होने के जूनियर बावजूद पुरुष अफसर को कलेक्टर बना दिया जाता है। ऐसा आईएएस शिल्पा गुप्ता, जेपी आईरिन सिंथिया, उर्मिल सुरेंद्र शुक्ला, नेहा मारव्या, सुफिया फारूखी, शैलबाला अंजना मार्टिन सहित कई महिला अफसरों के साथ हो चुका है। प्रदेश में सीधी भर्ती के आईएएस अफसरों पर सरकार कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहती है अथवा जीएडी कार्मिक की कमान संभालने वाले अफसर नहीं चाहते हैं कि प्रमोशन से आईएएस बने अधिकारियों को कलेक्टर बनने का अवसर मिले। कुछ मामलों में तो सीधी भर्ती की महिला आईएएस के साथ भी भेदभाव देखने को मिला है। उन्हें केवल एक जिले की कलेक्टरी देकर अन्य विभागों में पदस्थ कर दिया जाता है। यदि हम 2008 वैच के आईएएस की बात करें तो, इनमें शिल्पा गुप्ता, जेपी आईरिन सिंथिया, उर्मिला सुरेंद्र शुक्ला को तो किसी भी जिले में कलेक्टर नहीं बनाया और वे अब आयुक्त पुरातत्व की जिम्मेदारी संभाल रहीं हैं। इसके अलावा सूफिया फारूकी वली को मंडला का कलेक्टर बनाया गया। इसके बाद से उनकी पोस्टिंग मनरेगा सहित अन्य विभागों में की गई। शैलबाला अंजना मार्टिन को तो सिर्फ 3 महीने के लिए कलेक्टरी मिली। वंदना वैद्य और अनुभा श्रीवास्तव को भी एक-एक जिले में कलेक्टर बनाया गया।
ये अभी भी कलेक्टरी पाने से वंचित
2011 बैच की नेहा मारव्या को सिर्फ 5 महीने के लिए जिला पंचायत शिवपुरी का सीईओ बनाया गया। इसके बाद उनकी पोस्टिंग मंत्रालय से बाहर नहीं हुई। जबकि उनसे जूनियर अफसरों को दो से तीन बार तक कलेक्टरी मिल गई। वहीं, 2010 बैच की सपना निगम, प्रीति जैन, उषा परमार, हरीसिंह मीना, सरिता बाला प्रजापति, गिरीश शर्मा, वीरेंद्र कुमार अभी तक कलेक्टर नहीं बन सके हैं, जबकि इनसे जूनियर 2014 बैच तक के अफसरों को कलेक्टर बना दिया गया है। 2012 बैच के आईएएस डॉ. पंकज जैन, केदार सिंह, संतोष कुमार वर्मा, दिनेश कुमार मोर्य, विवेक श्रोत्रिय, राजेश ओगरे, भारती ओगरे, 2013 बैच की सीधी भर्ती की उमा महेश्वरी, शिवम वर्मा, प्रमोटी मीनाक्षी सिंह, अमर बहादुर सिंह, मनीषा सेठिया, नीरज वशिष्ठ, रुही खान, पवन कुमार जैन, 2014 बैच की रानी बाटड, दिलीप कुमार कापसे, विनय निगम कलेक्टर नहीं बन सके, लेकिन इनसे जूनियर सुधीर कोचर को कलेक्टर बना दिया है।
बड़े शहरों में कलेक्टरी देने में परहेज
प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में उमा भारती, राज्यपाल के तौर पर सरला ग्रेवाल और मुख्य सचिव की जिम्मेदारी निर्मला बुच संभाल चुकी हैं। वर्तमान में वीरा राणा मुख्य सचिव है, लेकिन महिला आईएएस अफसरों को बड़े शहरों की कलेक्टरी देने में हमेशा से परहेज किया जाता रहा है। कुछ जिले तो ऐसे हैं, जहां अधिकतर समय महिला कलेक्टर ही रही हैं। इनमें दतिया, सिहोर, खंडवा, बड़वानी, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, मंडला, कटनी, डिंडोरी, शाजापुर जिले में हर तीसरी पोस्टिंग महिला अधिकारी की हुई है।