- राजभवन और सीएम ऑफिस पहुंचा मामला …
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। साल 2005 में जब सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून लागू हुआ था तो इसे भ्रष्टाचार से लड़ने के सशक्त हथियार के रूप में देखा गया। यह कानून यकीनन कई बदलाव लेकर आया लेकिन सरकारी पेचीदगियों के कारण यह कानून विवादों में पड़ता जा रहा है। ऐसा ही एक विवाद है जुर्माने के अलग-अलग प्रावधान। यानी आरटीआई के तहत तय समय में जानकारी नहीं देने वाले जिम्मेदार अफसर को जुर्माना अपनी जेब से भरना होता है, जबकि सूचना आयुक्त सरकार के खजाने से जुर्माना भर रहे हैं। अब यह मामला राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है। गौरतलब है कि सूचना का अधिकार कानून आमजन को सूचना प्राप्त करने के लिए सशक्त अधिकार है। इसके तहत तय समय में जानकारी नहीं देने वाले जिम्मेदार अफसर पर जुर्माने का प्रावधान है। यह जुर्माना भी संबंधित अफसर को जेब से भरना होता है, लेकिन सूचना आयुक्तों ने अपने लिए खजाने का रास्ता निकाल लिया है। हाल ही में कोर्ट ने आयुक्तों पर जुर्माना लगाया तो सूचना आयोग ने यह राशि सरकारी खजाने से जमा की। एक कानून में जुर्माने के अलग-अलग रास्ते निकालने से सवाल खड़े हो रहे हैं।
कई मामले हाईकोर्ट पहुंच
दरअसल, राज्य सूचना आयोग में पिछले कुछ वर्षों में हुए फैसलों के खिलाफ कई मामले हाईकोर्ट पहुंचे हैं। असल में जिन पर जुर्माना लगाया गया, उन अफसरों ने आयोग के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट में कई मामले खारिज हुए तो कुछ फैसलों पर कोर्ट ने सवाल उठाए। ऐसे ही दो मामलों पर हाईकोर्ट जुर्माना लगा चुका है।
आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे ने राज्यपाल को शिकायत की है। उन्होंने मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने मुख्य सूचना आयुक्त पर विधि विरुद्ध आदेशों पर दिसंबर 2021 और जून 2022 में 2 प्रकरणों में 2-2 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। इससे मप्र सूचना आयोग का नाम धूमिल हुआ। सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू होने बाद देशभर में अब तक किसी भी मुख्य सूचना आयुक्त पर ऐसी कार्रवाई नहीं हुई। मुख्य सूचना आयुक्त ने इन दोनों प्रकरणों में सरकारी खजाने से जुर्माना जमा करने का निर्देश कार्यालय को दिया है।
एक्ट में जुर्माना भरने के प्रावधान का उल्लेख नहीं
आरटीआई एक्ट में समय में जानकारी न देने वाले संबंधित अधिकारी के खिलाफ जुर्माना का प्रावधान तो है, लेकिन एक्ट में यह प्रावधान नहीं है कि यदि सूचना आयोग गलत फैसला देता है या कोर्ट सूचना आयोग पर जुर्माना लगाता है तो जुर्माना कौन और कैसे भरा जाएगा। हालांकि हाईकोर्ट ने मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त पर जुर्माना लगाया है, इसलिए यह कहा जा रहा है कि अफसरों की तरह संबंधित आयुक्त को जेब से जुर्माना राशि भरना चाहिए, लेकिन एक्ट में स्पष्ट उल्लेख नहीं होने से इसकी अलग-अलग व्याख्या की जा रही है। पूर्व सूचना आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी का कहना है कि आयोग के फैसले को कोई कोर्ट में चुनौती देता है तो कोर्ट को अधिकार है कि वह निर्णय का परीक्षण कर सकता है, सुनवाई कर सकता है। आयोग का निर्णय गलत है तो कोर्ट कार्रवाई भी कर सकता है। आरटीआई में जानकारी न देने पर सूचना आयोग ने एक अफसर सुधीर कोचर पर जुमार्ना लगाया था। इनके बचाव में अफसर आ गए। सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जब मामला तत्कालीन सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह की जानकारी में आया तो उन्होंने कोर्ट जाने के निर्णय पर ऐतराज जताया था। इसके बाद याचिका वापस ली। असल में यह जुर्माना अफसर को जेब से भरना था, यदि आयोग के आदेश को चुनौती भी देना है तो संबंधित ही चुनौती दे सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीश छवानी का कहना है कि आरटीआई एक्ट में प्रावधान है कि यदि संबंधित अफसर को जुर्माना भरनी है तो सूचना आयुक्त को भी जुर्माने की राशि जेब से भरना चाहिए। जुर्माना लगने का तात्पर्य यही है कि उन्होंने जिम्मेदारी का निर्वहन ढंग से नहीं किया है।