भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकायों में महापौर, परिषद और पालिका अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष हों या अप्रत्यक्ष, इसे लेकर भले ही अभी फैसला नहीं हुआ है , लेकिन सत्तारुढ़ दल भाजपा में इसको लेकर एक राय नही बन पा रही है। विधायक जहां अप्रत्यक्ष रुप से चुनाव चाहते हैं, वहीं सरकार व संगठन इन पदों पर जनता द्वारा सीधे चुनाव के पक्ष में है। इन मतभेदों के बीच कांग्रेस भी पूरी तरह से इन चुनावों की तैयारियों को लेकर एक्शन मोड में आ गई है। कांग्रेस में भी बैठकों के साथ ही प्रभारी बनाकर उन्हें तत्काल मैदानी दौरों पर रवाना होने के लिए कह दिया गया है। भाजपा में लगातार चुनाव तैयारियों को लेकर मंथन का दौर बीते कई दिनों से चल रहा है , लेकिन भाजपा विधायक चुनाव की प्रणाली को लेकर कदमताल करने को तैयार नही दिख रहे हैं। विधायकों को जब से पता चला की महापौर से लेकर अध्यक्ष तक के चुनाव प्रत्याक्ष प्रणाली से कराने की तैयारी की जा रही है तभी से पार्टी विधायक संगठन पर अप्रत्यक्ष तरीके से ही चुनाव कराने के लिए दबाव बना रहे हैं। इस विरोध की कई वजहें मानी जा रही है।
गौरतलब है कि मप्र में प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए ही महापौर और अध्यक्षों का चुनाव होता था लेकिन 2019 में कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में इसे बदल कर अप्रत्यक्ष निर्वाचन का नियम बनाया गया था। पार्टी सूत्रों के अनुसार विधायकों को लगता है कि सीधे चुनाव में निर्वाचित होकर नगर पालिका अध्यक्ष और महापौर विधानसभा टिकट के लिए दावेदारी करने लगते हैं, यही नहीं जिन शहरों में नगर निगम हैं, वहां महापौर और विधायक के बीच भी पटरी नहीं बैठती है। इसके बाद भी विधायक महापौर पर दबाव बनाने में सफल नही रहते हैं। इसके अलावा महापौर और अध्यक्षों के हारने पर उनकी लोकप्रियता और इलाके में पकड़ को लेकर भी सवाल खड़े होने लगते हैं। यही वजह है की ऐसे क्षेत्रों के विधायकों ने लामबंद होकर संगठन के सामने तर्क दिया है कि अप्रत्यक्ष चुनाव पार्टी के लिए फायदेमंद साबित रहेंगे। उनका तर्क है की इससे पार्षद स्तर के कार्यकर्ता को भी ऊपर आने का मौका मिलता है। विधायकों की इस बात को मंत्रियों ने भी समर्थन दिया है। यही वजह है की निकायों में प्रत्यक्ष निर्वाचन का अध्यादेश जस का तस बना हुआ है। फिलहाल निकायों में चुने हुए जनप्रतिनिधि न होने के कारण विधायक-मंत्री ही इन संस्थाओं को अप्रत्याक्ष रुप से चला रहे हैं। प्रशासक होने के कारण अधिकारी विधायकों की बात को पूरी तरह से तबज्जो देते हैं।
नाथ ने बताया विस चुनाव का काउंटडाउन
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। पंचायत चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, लेकिन हमें यह प्रयास करना चाहिए कि इसमें समन्वय स्थापित हो यह चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होकर मिशन-2023 की रूपरेखा तय करेंगे। इसलिए सभी विधायक आज से इन चुनावों के लिए जुट जाएं, क्योंकि 2023 का काउंटडाउन शुरू हो चुका है। हम जैसा बीज बोएंगे, वैसी ही फसल तैयार होगी। नाथ ने अपने आवास पर कांग्रेस विधायक दल की बैठक को संबोधित करते हुए कहा की हमें इस चुनाव के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना है। आज माहौल कांग्रेस के पक्ष में हैं। शिवराज सरकार में हर वर्ग परेशान है। प्रदेश में रोज आदिवासी व ओबीसी वर्ग के साथ दमन व उत्पीड़न की घटनाएं घट रही है।
नेमावर से लेकर सिवनी, मंडला, नीमच की घटना इसका उदाहरण है। यह सब भाजपा से जुड़े लोग कर रहे हैं। प्रदेश में जंगलराज की स्थिति है। प्रदेश में खरगोन, सेंधवा, राजगढ़, नीमच जिलों में सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की घटनाएं हो चुकी हैं, सरकार का कोई नियंत्रण नहीं बचा है। नाथ ने कहा, भाजपा की नीति आदिवासी और ओबीसी वर्ग विरोधी है, इसलिए उसने साजिश रचकर ओबीसी आरक्षण को खत्म कराने का प्रयास किया था हमारी सरकार अध्यक्षों, विधायकों, ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया था, लेकिन भाजपा सरकार ने न्यायालय में ठीक ढंग से पक्ष नहीं रखा था। आधी-अधूरी रिपोर्ट और आंकड़े पेश किए, ट्रिपल टेस्ट की प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया, जिसके चलते ओबीसी का आरक्षण कम हो गया। भाजपा की मंशा प्रदेश में बगैर ओबीसी आरक्षण के पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव कराने की थी, लेकिन उसमें वे सफल नहीं हो पाए हैं। इस सच्चाई को ओबीसी वर्ग को बताना होगा। उन्होंने कहा की भाजपा की रणनीति समाज बांटने की है। यही वजह है की बिजली , पानी संकट, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, खस्ताहाल कानून व्यवस्था जैसे मामलों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
जीत के फामूर्ला के लिए कांग्रेस में माथापच्ची
इन चुनावों में कांग्रेस जीत के लिए फार्मूला की तलाश में माथापच्ची कर रही है। कांग्रेस ने फिलहाल महंगाई, भ्रष्टाचार, बिजली कटौती, बेरोजगारी जैसे मामलों को लेकर मैदान में उतरने की रणनीति बनाई है। उधर पार्टी की जीत तय करने के लिए संगठन द्वारा विधायकों की क्षेत्रवार जिम्मेदारी तय की जा रही है। इसको लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के निवास पर पहले आदिवासी विधायकों और फिर सारे विधायकों की बैठक हो चुकी है। इसमें दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, अरुण यादव, अजय सिंह, विवेक तन्खा, राजमणि पटेल, भी शामिल रहे हैं। बैठक में तय किया कि जिन क्षेत्रों में विधायक नहीं है, वहां कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशी के साथ जिलाध्यक्ष की कमेटी बनाई जाएगी। युवा आदिवासियों को आगे लाया जाकर चुनाव मैदान में उतारा जाएगा।
एक बार पलट चुकी है भाजपा सरकार
2019 में कमलनाथ सरकार ने मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम में संशोधन कर महापौर, नगर पालिका एवं नगर परिषद के अध्यक्षों के सीधे निर्वाचन को खत्म कर दिया था। इसे शिव सरकार ने दिसंबर 2020 में अध्यादेश लाकर खारिज कर दिया था। लेकिन विधानसभा से विधेयक पारित नहीं होने के चलते यह अध्यादेश स्वत। समाप्त हो गया था। बीते दिनों सरकार ने फिर अध्यादेश का ड्राफ्ट तो तैयार किया लेकिन वह अब तक जस का तस पड़ा हुआ है।
आदिवासी इलाकों पर खास जोर
आदिवासी बेल्ट में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को लेकर सक्रियता बढ़ाने पर जोर दिया गया। इसमें युवाओं को जोड़कर बेरोजगारी और ग्राम विकास नहीं होने, बिजली, पानी, रोजगार के मुद्दे पर चुनाव में उतारने की बात की गई। नाथ ने आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के लोगों पर हुए अत्याचारों को ज्यादा से पंचायत ज्यादा सामने लाने को कहा है ।
22/05/2022
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