पुलिस कप्तानों की मनमानी से नाराज हैं डीजीपी

विवेक जौहरी

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। पुलिस महकमे के मुखिया विवेक जौहरी इन दिनों अपने मातहत पुलिस कप्तानों के साथ ही कमांडेंट स्तर के अफसरों से बेहद नाराज हैं। यही वजह है कि उन्हें अब इन अफसरों को लिखित में चेतावनी देनी पड़ी है। दरअसल जिलों में और विभिन्न बटालियनों में विभाग की कमान संभालने वाले एसपी स्तर के यह अफसर अपने मातहत अफसरों की तारीफ करते हुए उन्हें लगातार नकद इनाम देते रहते हैं , लेकिन जैसे उनकी एसीआर का समय आता है, तब इन्ही कर्मचारियों का कामकाज खराब हो जाता है।  इसके चलते इन अफसरों द्वारा उनकी एसीआर में ‘ख’ लिख दिया जाता है। वार्षिक चरित्रावली (एसीआर) में इसे थर्ड ग्रेड माना जाता है। इसकी वजह से अधीनस्थ कर्मचारियों का प्रमोशन अटक जाता है। इसको लेकर डीजीपी ने नाराजगी जाहिर करते हुए इन अफसरों को चेताया है। इसके लिए डीजीपी की तरफ से इन अफसरों को एक परिपत्र भी लिखा गया है , जिसमें कई तरह के  निर्देश दिए गए हैं। डीजीपी इस तरह की कार्यप्रणाली से कितने नाराज हैं , इससे ही समझा जा सकता है कि उनके द्वारा जारी दिशा निर्देशों में उन्हें अपनी इस कार्यप्रणाली को सुधारने की नसीहत तक दी गई है। डीजीपी द्वारा इसे मातहतों के काम के मूल्यांकन और समन्वय में कमी के रूप में बताया गया है।  सभी पुलिस इकाइयों को भेजे गए परिपत्र में कहा गया है कि इसी तरह से एसीआर में कई अफसर इस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं, जिनसे भ्रम की स्थिति बन जाती है। एसीआर लिखते समय इस तरह के शब्दों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अब इनाम देने के मामले में कमांडेंट और एसपी को अधिक अधिकार भी प्रदान किए गए हैं। इसके तहत अब उन्हें साल में दो इनाम के बाद अपने आईजी से अनुमति नहीं लेनी होगी। इस परिपत्र में संबंधित अफसरों को चेतावनी देते हुए कहा गया है कि जो कर्मचारी सालभर अच्छा काम करते हैं, वे साल के अंत में कैसे खराब हो जाते हैं। दरअसल सामान्य तौर पर यह होता है कि अफसर जिस कर्मचारी पर मेहरबान होते हैं , उसे खूब इनाम देते हैं। इसी तरह से जिस पर नाराज होते हैं उसकी एसीआर खराब कर देते हैं। यही नहीं इस परिपत्र में डीजीपी ने लिखा, कुछ अधिकारी कुछ कर्मचारियों को सालभर सिर्फ सजा देते हैं, लेकिन इनाम नहीं देते हैं। डीजीपी के ताजा निर्देश में कहा गया है कि दोनों स्थितियों में मातहतों के कार्य का समुचित मूल्यांकन कर ही सजा और इनाम देना चाहिए। उनका कहना है कि कर्मचारियों का समग्र मूल्यांकन किए बगैर सजा और इनाम दिया जाना उचित नहीं है। खास बात  यह है कि उनके द्वारा कहा गया है कि किसी कर्मचारी को बार-बार इनाम और सजा देना, अफसरों की अगंभीरता और अपरिपवता को बताती है।


यह भी दिए निर्देश

  • किसी विशिष्ट कार्य पर ही इनाम देना चाहिए। इनाम के तौर पर सामान्यतया प्रशंसा पत्र दिया जाना चाहिए। नकद इनाम अपवाद स्वरूप दिया जाना चाहिए। इस संबंध में पुलिस रेगुलेशन के पैरा-85 में उल्लेख भी किया गया है।
  • पर्यवेक्षणकर्ता अधिकारी का यह दायित्व होगा कि वह अधीनस्थ इकाई में दिए जा रहे इनाम की मासिक समीक्षा करें और अविवेकपूर्ण व अतिरंजित राशि के इनामों को खुद पुनरीक्षण कर समाप्त करे। इसकी प्रत्येक माह समीक्षा कर पीएचक्यू भेजे जाने वाले प्रतिवेदन के साथ इसे भेजा जाना चाहिए।
    4 श्रेणी में लिखी जाती है एसीआर
  • दरअसल अधिकारी मातहतों की क+ (प्लस) से लेकर क, ख और ग श्रेणी में एसीआर लिखते हैं। ख और ग श्रेणी की एसीआर को निम्न स्तर का माना जाता है। यानी कर्मचारी का कार्य-व्यवहार विभाग के प्रति अच्छा नहीं है। डीजीपी का सवाल यह है कि जब किसी कर्मचारी को सालभर इनाम मिले हैं, तो उसने अच्छा काम किया है। फिर एसीआर ख श्रेणी क्यों? इसके ठीक इतर, किसी कर्मचारी से नाराज होकर अधिकारी सालभर उसे सिर्फ सजा देते हैं, इस पर डीजीपी ने रोक लगाते हुए समग्र मूल्यांकन करने के निर्देश दिए हैं।
  • निरीक्षक, उपनिरीक्षक तथा सूबेदारों को पारितोषिक जहां तक संभव हो, प्रशंसा पत्रों में दिया जाना चाहिए। उनकी पुस्तिका में इसे दर्ज किया जाना चाहिए। जांच अधिकारियों को बहुत बार सूचनाएं एकत्रित करने के लिए अपनी जेब से व्यय करना पड़ता है और ऐसे व्यय की उचित प्रतिपूर्ति धन के रूप में पारितोषिक से की जा सकती है। ऐसे अधिकारी की पद मर्यादा को ध्यान में रखकर नगद इनाम देना चाहिए।
  • इनाम के आदेश में अधिकारी ‘दिए गए कार्य, सौंपे गए कार्य  जैसी सामान्य और गैर पारदर्शी शब्दावली का उपयोग करते हैं, जो नहीं होना चाहिए। इनाम किसी कार्य विशेष के लिए दिया जाता है, उसका उल्लेख स्पष्ट तौर पर आदेश में होना चाहिए।

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