देवास लोकसभा: बाहरी प्रत्याशियों का रहा दबदबा

देवास लोकसभा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की देवास लोकसभा ऐसी सीट है, जहां पर अधिकांश बार बाहरी प्रत्याशी को ही जीत मिलती रही है। इसकी वजह है दोनों प्रमुख दलों द्वारा बाहरी प्रत्याशियों को ही टिकट दिया जाना। इस बार इस सीट पर भाजपा ने जहां अपने मौजूदा सांसद महेंद्र  सिंह सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है तो वहीं, कांग्रेस ने राजेन्द्र मालवीय पर भरोसा जताया है। मालवीय पूर्व में दो विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें दोनों ही बार हार का सामना करना पड़ा है।  यह वो सीट है, जहां से फूलचंद वर्मा, थावरचंद गहलोत और मनोहर ऊंटवाल भी सांसद रह चुके हैं। मौजूदा सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी देवास विधानसभा क्षेत्र के निवासी जरूर हैं, लेकिन वे भी इंदौर और उससे बाहर ही रहे। अपवाद बापूलाल मालवीय थे। वे देवास के ही थे और सांसद भी चुने गए। देवास संसदीय सीट से मुंबई के बाबूराव पटेल और जगन्नाथ जोशी भी सांसद रहे। दोनों ही जनसंघ से जुड़े हुए थे। स्वतंत्रता के बाद देवास संसदीय सीट पर शुरू में कांग्रेस का दबदबा रहा, लेकिन वर्ष 1962 के बाद से ही इस सीट की तासीर बदलती गई। जनसंघ की विचारधारा मतदाताओं के दिलों में घर कर गई। ग्वालियर रियासत का हिस्सा होने की वजह से राजमाता विजयाराजे सिंधिया का प्रभाव भी यहां रहा। उनके समय में देवास और शाजापुर संघ का गढ़ हुआ करते था। पहले ग्वालियर रियासत में आने वाली सुसनेर विधानसभा इस सीट में शामिल थी। वर्ष 1962 के बाद केवल वर्ष 1984 में बापूलाल मालवीय व वर्ष 2009 में सज्जन सिंह वर्मा ही कांग्रेस से जीत पाए। वर्ष 1947 के बाद देवास लोकसभा क्षेत्र देश के उन 86 क्षेत्रों में शामिल रहा, जहां लोकसभा के लिए दो-दो प्रतिनिधियों का चुनाव होता था। यह व्यवस्था वर्ष 1957 तक रही। देवास संसदीय सीट पहले मध्य भारत क्षेत्र में थी और शाजापुर-राजगढ़ भी इसमें शामिल थे। बाद में इसका नाम शाजापुर-देवास संसदीय क्षेत्र हुआ और 2008 के बाद यह देवास संसदीय सीट हो गई। वर्ष 1951 में जब पहली बार आम चुनाव हुए। तब मध्य भारत के नाम से ही इस क्षेत्र की पहचान थी। पहले चुनाव में लोकसभा सीट को शाजापुर-राजगढ़ संसदीय क्षेत्र नाम दिया गया। शुजालपुर निवासी लीलाधर जोशी और शाजापुर के भागीरथ मालवीय सांसद चुने गए। वर्ष 1956 में मध्य प्रदेश का गठन होने के बाद 1957 में लोकसभा चुनाव हुए। 1967 से यह शाजापुर-देवास संसदीय सीट रही, जिसमें देवास का आधा हिस्सा जोड़ दिया गया। वर्तमान देवास सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है।
वर्मा ने हराया था गेहलोत को  
वर्ष 1990 के बाद देवास की राजनीति में यहां के पूर्व राजपरिवार का दखल बढ़ा। राजपरिवार के सदस्य पूर्व मंत्री स्व. तुकोजीराव पवार का राजनीति में पदार्पण भी इसी दौरान हुआ था। वर्ष 1991 में भाजपा के फूलचंद वर्मा चौथी बार सांसद तो बने लेकिन उनके तुकोजीराव पवार से राजनीतिक रिश्ते मधुर नहीं रहे। वर्ष 1996 में तुकोजीराव पवार के आग्रह पर थावरचंद गेहलोत को देवास संसदीय सीट से टिकट दिया गया। थावरचंद गेहलोत चुनाव जीत गए। वे 2009 तक सांसद रहे। थावरचंद गेहलोत को हराने के लिए कांग्रेस ने पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा को लोकसभा चुनाव लड़ाया। दांव कारगर रहा और सज्जन सिंह ने थावरचंद गहलोत को हरा दिया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने न्यायाधीश रहे महेंद्र सिंह सोलंकी को टिकट दिया तो उनके सामने कांग्रेस ने  पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की पसंद से कबीर भजन गायक पद्मश्री प्रहलाद सिंह टिपानिया को टिकट दिया। टिपानिया हार गए और उसके बाद से ही वे राजनीति से दूर होते गए। यह चुनाव बेहद रोचक रहा था। इसकी वजह थी, जब भी टिपानिया प्रचार के लिए जाते तो लोग उनसे भजन की मांग कर देते थे। वे आग्रह टाल भी नहीं पाते थे।  क्षेत्र के गांव-गांव में टिपानिया को पहले से सुना जाता रहा है। मतदाताओं के मन में उनकी छवि किसी साधु की तरह थी।
सभी विस सीटों पर भाजपा का कब्जा: देवास लोकसभा सीट को चार जिलों के हिस्सों को मिलाकर बनाया गया है और आठ अलग-अलग जिलों की विधानसभाओं को शामिल किया है। इनमें देवास जिले की देवास, सोनकच्छ और हाटपिपलिया, शाजापुर जिले की शाजापुर, सुजालपुर और कालापीपल, आगर मालवा जिले की आगर, सीहोर जिले की आष्टा विधानसभा को शामिल किया गया है। इन सभी विधानसभाओं पर बीजेपी काबिज है।
हार-जीत का बड़ा अंतर
देवास लोकसभा सीट पर जीतने और हारने वाले प्रत्याशियों के बीच मुकाबला कभी भी नजदीकी नहीं रहा। यहां जीत का अंतर बड़ा ही होता है। वोट प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो जीत का सबसे कम अंतर 1957 में 1.2 प्रतिशत रहा। इसके बाद जीत का अंतर हमेशा ज्यादा ही रहा। वर्ष 2014 के चुनाव में तो जीत का अंतर 24.5 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसी तरह वर्ष 2019 में भाजपा के महेंद्र सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रहलाद सिंह टिपानिया को 3.7 लाख से अधिक वोटों से हराया।
तीसरी बार चुनावी मैदान में राजेंद्र मालवीय
कांग्रेस नेताओं के मुताबिक दो बार राजेंद्र मालवीय विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें सबसे पहले टिकट इंदौर जिले के सांवेर से विधानसभा का मिला था। इसके बाद दूसरी बार उज्जैन जिले की तराना सीट से राजेंद्र मालवीय ने विधानसभा का चुनाव लड़ा , लेकिन दोनों ही चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार पार्टी ने उन पर बड़ा दांव खेला है। दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार बलाई समाज से हैं। भाजपा ने सांसद महेन्द्र सिंह सोलंकी पर फिर भरोसा जताया है, जो न्यायिक सेवा से राजनीति में उतरे। कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राधाकिशन मालवीय के बेटे राजेन्द्र मालवीय पर दांव लगाया है।

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