- 8 साल, 8 सीईओ, 1500 करोड़ खर्च, अभी भी पाइपलाइन में स्मार्ट सिटी
- गौरव चौहान
राजधानी को स्मार्ट सिटी बनाकर शहर को विदेशों की तर्ज पर हाईटेक सुविधाएं देने के दावे अब भी अधूरे हैं। आलम यह है की 8 साल में 8 सीईओ बदल चुके हैं और तकरीबन 1500 करोड़ रूपए से अधिक खर्च हो चुके हैं लेकिन स्मार्ट सिटी अभी भी पाइपलाइन में है। जबकि स्मार्ट सिटी का प्रोजेक्ट 5 साल में पूरा किया जाना था। भोपाल में स्मार्ट सिटी के पिछडऩे की वजह साल दर साल सीईओ का तबादला मुख्य वजह बताया जा रहा है। मिशन के पहले चरण में भोपाल, इंदौर और जबलपुर का चयन किया गया था। फिर दूसरे फेज में ग्वालियर, सागर, सतना और उज्जैन भी शामिल हो गए। टीटी नगर की 342 एकड़ जमीन मिली, यहां भी प्रोजेक्ट अधूरे राजधानी में स्मार्ट सिटी के पहले शिवाजी नगर में जमीन आवंटित की जा रही थी। इसका रहवासियों और जनप्रतिनिधियों ने काफी विरोध किया। ऐसे में मुख्यमंत्री के दखल के बाद टीटी नगर में स्मार्ट सिटी के लिए 342 एकड़ जमीन आवंटित की गई। यहां प्रोजेक्ट्स को आकार देने के लिए हजार से ज्यादा सरकारी मकानों को खाली कराने और तोडऩे में काफी समय लग गया। फिर टीटी नगर दशहरा मैदान के पास नाले पर बहुमंजिला इमारत के निर्माण को लेकर एनजीटी में याचिका लग गई। ट्रिब्यूनल ने कुछ महीने के लिए स्मार्ट सिटी के कार्यों पर रोक लगा दी। यह हटने के बाद दोबारा कार्य शुरू हुए तो फंड की कमी आने लगी। नतीजा, टीटी नगर स्थित स्मार्ट सिटी एरिया में ही कई प्रोजेक्ट अभी अधूरे हैं। स्मार्ट सिटी के तहत नवाब कालीन सदर मंजिल को को बेहतद निखार दिया गया, लेकिन टीटी नगर के एरिया बेस्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में आकर स्मार्ट सिटी उलझ गई। यहां से कैसे निकले, फिलहाल यही सबसे बड़ा सवाल है। मौजूदा स्थिति ये हैं कि केंद्र और राज्य सरकार से सीधे तौर पर मिले 1500 करोड़ रुपए तो खर्च हो गए।
कैसे पूरा हो काम
जानकारी के अनुसार, 2015 में शुरू हुए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को 2020 में पूरा किया जाना था। लेकिन स्मार्टसिटी का सपना आठ साल बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। आठ सालों में आठ सीईओ आए गए। अब आठवें सीइओ के तौर पर गत दिनों किरोड़ी लाल मीना का नाम तय हुआ है। कोई 15 दिन काम किया तो कोई साल भर भी नहीं टिका। बीते छह माह से तो बिना सीईओ के ही स्मार्ट सिटी चल रही है। भोपाल स्मार्टसिटी में बीते 8 साल में 8 सीईओ बदल दिए गए। पहले सीईओ चंद्रमौली शुक्ला थे। इनके समय में शुरुआती योजनाओं पर काम हुआ। इसके बाद संजय कुमार, दीपक सिंह, आदित्य सिंह, अंकित अस्थाना, गौरव बैनल, फ्रैंक नोबल को प्रभार, रोशन सिंह और अब किरोड़ी लाल मीना सीईओ बने। सीईओ बदलने की अनुमति केंद्र से नहीं लेने पर भारत सरकार ने मुख्य सचिव को पत्र के माध्यम से आपत्ति भी की थी।
इनपर नहीं दिया ध्यान
अंडरग्राउंड वायरिंग करना थी, ताकि शहर से तारों का मकडज़ाल खत्म हो सके। भोपाल की नेचुरल ब्यूटी को बनाए रखने के लिए ग्रीन प्रोजेक्ट लाने थे। भोपाल प्लस एप से मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं को कारगर ढंग से लागू करना था, ताकि लोग इसकी सहूलियत को समझ सकें। स्ट्रीट लाइटें बंद, फुटपाथ उखड़े, 5 करोड़ का डस्टबिन प्रोजेक्ट भी बंद हो गया। टीटी नगर एरिया बेस्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत 342 एकड़ में करीब 4000 हरे-ेभरे पेड़ों को काट दिया गया। इसमें 45 साल पुराने पेड़ भी थे। मौजूदा स्थिति ये हैं कि यहां सडक़ों का काम भी 60 फीसदी ही हो पाया। प्लॉट महज तीन बिके हैं। कमाई की पूरी योजना इन प्लॉट्स को बेचकर ही तैयार की जा रही है। यहां से 850 पेड़ों की शिफ्टिंग की, लेकिन कलियासोत के जंगल में इन्हें बेतरतीब लगाकर खत्म कर दिया गया। यहां एक पेड़ की शिफ्टिंग पर 12 हजार रुपए से 15 हजार रुपए तक की राशि खर्च की गई है।
दिखाने के लिए ये बड़े प्रोजेक्ट
सदर मंजिल रिनोवेशन प्रोजेक्ट के तहत करीब 21 करोड़ रुपए खर्च किए। इसे हेरिटेज लुक दिया गया। केबल स्टेब्रिज के लिए जब निगम के पास राशि खत्म हो गई तो स्मार्ट सिटी की मद से 34 करोड़ रुपए खर्च कर इसे पूरा कराया गया। टीटी नगर में करीब 3000 हजार आवास के लिए छह बहुमंजिला इमारतें बनाई गई। यहां सरकारी कर्मचारियों के लिए फ्लेट बनाए हैं। यहां अटल पथ और स्मार्ट रोड शहर की सबसे महंगी सडक़ें बनाई है, लेकिन ये शुरुआत में ही टूटने लगीं। प्रतिकिमी 20 करोड़ रुपए के बड़े खर्च की सडक़ों पर डामर के पैबंद लगाने पड़ रहे हैं। 750 करोड़ रुपए का कंट्रोल कमांड सेंटर बनाया गया। यहां से पूरे शहर की व्यवस्था बनाने और निगरानी रखना थी, लेकिन कुछ नहीं हो पा रहा। इंटेलिजेंस ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम से कैमरों की मदद से ट्रैफिक को सुचारू संचालित कराना था, स्थिति ये हैं कि हर चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस को ही काम करना पड़ रहा है।
विकास कार्यों की स्थिति
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत भोपाल में जो काम कराए गए हैं, उनकी स्थिति भी चिंताजनक है। सात खूबियों वाले स्मार्ट पोल से मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी, इलेक्ट्रिक व्हीकल चार्जिंग, फायर अलार्म सिस्टम को काम करना था। अभी सिर्फ विज्ञापन के बोर्ड लटक रहे हैं। प्लेस मेकिंग कि तहत शहर के क्षेत्रों को विकसित करना था। न्यू मार्केट की दो गलियां, लिंक रोड किनारे स्पेस डेवलपमेंट, एमपी नगर में स्मार्ट स्ट्रीट और अन्य काम किए। लिंक रोड किनारे पार्क खराब है। एमपी नगर में स्मार्ट स्ट्रीट तीन करोड़ रुपए खर्च के बावजूद टूट फूट। हरियाली और जल स्त्रोतों के संरक्षण के लिए ग्रीन व ब्यू मास्टर प्लान बनना था। बैठकों का भी कोई नतीजा नहीं निकला। नर्मदापुरम रोड किनारे स्मार्ट सिटी ने तीन करोड़ से सायकिल ट्रेक बनाया। माय बाइक प्रोजेक्ट लांच हुआ। न साइकिलें चल रही हैं और न ट्रेक बचा। एबीडी-28 सडक़ें अधूरी हैं। टीटी नगर के 342 एकड़ में सरकारी आवास तोडक़र एरिया बेस्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में बिना हितग्राहियों से बातचीत किए काम शुरू हुआ। नतीजतन शिकायतों की वजह से यहां बनने वाली छोटी बड़ी 28 सडक़ें अब तक अधूरी हैं।