पृथक विंध्य और बुंदेलखंड के बीच उठी सिंध प्रदेश की मांग

सिंध प्रदेश
  • तीन दर्जन से अधिक बुद्धजीवियों ने छेड़ रखी है मुहिम

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में पहले से पृथक विंध्य और बुंदेलखंड की मांग उठी हुई है, इस बीच अब एक और नए प्रदेश सिंध की मांग उठना शुरु हो गई है। इस नए प्रदेश की मांग को लेकर बाकायदा सिंधी समाज के तीन दर्जन बुद्धजीवियों ने मुहिम छेड़ रखी है। इसके लिए उनके द्वारा तमाम तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं। इन अभियानों के दौरान उनके द्वारा अपने -अपने हिसाब से तर्क भी दिए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।  गौरतलब है कि बीते साल मार्च में भेल दशहरा मैदान पर सिंधी समागम का आयोजन किया गया था, जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत, आरएसएस समर्थक सिंधियों की सामाजिक संस्था भारतीय सिंधु सभा के अध्यक्ष लधाराम नागवानी एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित देश विदेश की कई नामी हस्तियां शामिल हुई थीं। इसमें शामिल सिधियों के एकमात्र महामंडलेश्वर हंसराम महाराज ने सिंधियों के तीर्थ स्थल को विकसित करने के लिए केंद्र सरकार से 8 हजार एकड़ जमीन गंगा अथवा नर्मदा किनारे देने की मांग करते हुए उसके विकास के लिए 21 हजार करोड़ रूपए की भी मांग की थी। फिलहाल  सिंधी समाज इसे पर्याप्त नहीं मानता, उसका कहना है कि आजादी के 76 साल बाद अब भारत देश में ही पृथक सिंध प्रदेश का गठन किया जाए। इसके लिए अब समाज के लोगों से समर्थन में फार्म भरवाए जा रहे हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट एवं सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने की योजना है। इस समाज के लोगों का कहना है कि विभाजन के समय सिंधियों ने बहुत पीड़ा झेली है। इसकी वजह से सिंधी कला, साहित्य भाषा एवं संस्कृति को भी नुकसान हुआ है। उनका कहना है कि  पृथक प्रदेश होने से राजनीतिक अधिकारों का भी संरक्षण होगा। विधानसभा, लोकसभा व राज्यसभा में प्रतिनिधित्व होने से समाज अपने अधिकारों की लड़ाई भी लड़ने में सक्षम हो सकेगा। उनका कहना है कि इस मामले में विभाजन के बाद तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं की नासमझी के कारण सिंधी समाज को आजादी के  76 साल बाद भी पूरा हक नहीं मिल सका है।
यह दिया जा रहा है तर्क
इस मामले में देश के सिंधी बुद्धिजीवियों का कहना है कि विभाजन से पहले हम सिंध में एक समृद्ध समुदाय थे। हालांकि, धार्मिक उत्पीड़न की चिंताओं और भारत से मुस्लिम शरणार्थियों की आमद के कारण, हमें भारत में आने को मजबूर होना पड़ा। स्थायी मातृभूमि के बिना एक नई भूमि पर अपना आर्थिक आधार स्थापित करना हमारे लिए चुनौतीपूर्ण था। परिणामस्वरूप, हमें उन राज्यों में बसना पड़ा जो, उस सिंधी संस्कृति से काफी भिन्न थे। उनका दावा है कि भारत में एक करोड़ एवं दुनिया के अलग अलग मुल्कों में भी लगभग एक करोड़ सिंधी हिन्दू निवास करते है। सिंधी भारत की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं जो लगभग 20 प्रतिशत है। भारत में एकत्र किए गए कुल आयकर का एक बड़ा हिस्सा लगभग 24 प्रतिशत सिंधियों का है। इसके अलावा सिंधी भारत में चैरिटी फंड में 62 प्रतिशत का अहम योगदान दे रहे हैं।
बंजर भूमि देने की मांग
इन बुद्धिजीवियों का कहना है कि हालांकि कई चुनौतियां हैं, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हमारे देश में अप्रयुक्त और बंजर भूमि के विशाल क्षेत्र हैं, जिन्हें अलग-अलग क्षेत्रों के रूप में नामित किया जा सकता है। भारत का सबसे छोटा राज्य गोवा, 3700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है और इसकी आबादी लगभग 15 लाख है। सिक्किम, भारत का सबसे कम आबादी वाला राज्य है, इसकी आबादी 60 हजार है। विभाजन के 76 वर्षों की व्यापक अवधि के दौरान, सरकार देश के एक हिस्से को सिंध राज्य के रूप में नामित करने में असमर्थ रही है।  

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