नक्सल मुक्त होगा दंडकारण्य

नक्सल

मप्र, छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सरकारों की रणनीति

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दिशा-निर्देश और मप्र के बालाघाट से मिले फीडबैक के बाद छह राज्यों की सरकारों ने दंडकारण्य को नक्सल मुक्त बनाने का अभियान शुरू कर दिया है। इसी का परिणाम है कि मप्र में 43 लाख रुपए के दो नक्सलियों के साथ ही छत्तीसगढ़ में इस साल अब तक 80 नक्सली मारे गए हैं। वहीं छह राज्यों ने हार्डकोर नक्सलियों की सूची बनाई है। जिसमें मप्र, छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला खूंखार नक्सली मांडवी हिडमा सहित 17 नक्सली सुरक्षा बलों के टारगेट पर हैं

विनोद कुमार उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
2 अप्रैल को बालाघाट के जंगल में मप्र पुलिस ने नक्सल विरोधी अभियान के तहत सर्च अभियान के दौरान एक महिला नक्सली सहित 43 लाख रुपए के दो नक्सलियों को मुठभेड़ में ढेर कर दिया। मारे गए नक्सलियों से एक एके-47 एवं एक 12 बोर राइफल बरामद की गई। वहीं बालाघाट में नक्सल गतिविधियों की शुरुआत से आज तक के इतिहास में पहली बार नक्सलियों से बीजीएल शेल बरामद किए गए। इनसे दो बीजीएल शेल, वायरलेस सेट, दो रेडियो भी बरामद किए गए। नक्सलियों से यह मुठभेड़ लांजी थाना क्षेत्र के पितकोना-केरझरी के जंगल में हुई। एनकाउंटर में मारी गई महिला नक्सली कान्हा-भोरमदेव डिवीजन के विस्तार प्लाटून-02 की डिविजनल कमेटी की सदस्य थी। वहीं दूसरा नक्सली मलाजखंड एरिया कमेटी का सदस्य था। दोनों ही नक्सली मप्र, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में कई नक्सली वारदातों को अंजाम दे चुके थे। दरअसल, मप्र ही नहीं बल्कि छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। जिन क्षेत्रों में अभियान चलाया जा रहा है उसमें दंडकारण्य वह क्षेत्र है जहां नक्सलवाद की जड़ें गहरी है। अत: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सबसे पहला फोकस है कि दंडकारण्य को नक्सल मुक्त किया जाए। दंडक वन अथवा दंडकारण्य रामायण में वर्णित एक वन का नाम है। कथा के अनुसार दंडकारण्य विंध्याचल पर्वत से गोदावरी तक फैला हुआ प्रसिद्ध वन है और यहां वनवास के समय श्रीरामचंद्र बहुत दिनों तक रहे थे। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दंडकारण्य पूर्वी मध्य भारत का एक भौतिक क्षेत्र है। करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाडिय़ां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और मप्र राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है। वर्तमान समय में यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ बन गया है। सुरक्षा एजेंसियों ने एक्सक्लूसिव जानकारी दी है कि नक्सली टीसीओसी यानी टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैम्पेन इन महीनों (अप्रैल से जून) में चला रहे हैं। जिसमें उनका मकसद होता है कि ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बलों पर हमला कर इस दौरान नुकसान पहुंचाए। सूत्रों ने ये बताया है कि नक्सली केवल छत्तीसगढ़ गढ़ के साउथ बस्तर में ही टीसीओसी चलाने का प्लान नही बनाया है, बल्कि उन्होंने काफी सालों बाद नए ट्राई जंक्शन के नजदीक सुरक्षा बलों पर हमला करने का प्लान तैयार किया है।

हिंसा में 52 फीसदी की गिरावट
वहीं छत्तीसगढ़ में इस साल अब तक 80 नक्सली मारे गए हैं। 125 से अधिक गिरफ्तार किए गए हैं, जबकि 150 ने सरेंडर किया है। दो दिन पहले ही सुरक्षा बलों के साथ भीषण मुठभेड़ में 29 नक्सली मारे गए थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2004-14 की तुलना में 2014-23 में देश में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसा में 52 फीसदी की गिरावट आई है। इसके साथ ही मरने वालों की संख्या 6035 से 1868 यानी 69 फीसदी हो गई है। छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के साथ ही नक्सलियों के खिलाफ सक्रिय अभियान चलाए गए हैं। पिछले साल नक्सल प्रभावित राज्यों में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने माओवादियों के खिलाफ सक्रिय अभियान चलाने का निर्देश दिया था। एक विशेष समिति का गठन भी किया गया था। इसमें पुलिस महानिदेशक, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, बीएसफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और खुफिया ब्यूरो के महानिदेशक आदि शामिल किए गए थे। वहीं छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सुरक्षाकर्मियों ने राज्य में अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ में 29 नक्सलियों को मार गिराया। इसमें शंकर राव जैसा कुख्यात नक्सल कमांडर भी शामिल था। नक्सलियों के साथ मुठभेड़ के इतिहास में उनके मारे जाने की ये सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है। इस मुठभेड़ में तीन सुरक्षाकर्मी भी घायल हो गए थे। सुरक्षा बलों ने यहां से एके-47, इंसास रायफल और एलएमजी के साथ बड़ी मात्रा में हथियार भी जब्त किए थे। सुरक्षा बलों ने साल 2014 से माओवादी बहुल इलाकों में शिविर लगाना शुरू किया था। साल 2019 के बाद 250 से अधिक शिविर स्थापित किए गए हैं। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2014-23 की तुलना में साल 2004-14 में नक्सली हिंसा की घटनाएं 14862 से घटकर 7128 हो गई हैं। इस दौरान सुरक्षाकर्मियों की मौत की संख्या साल 2004-14 के मुकाबले 2014-23 में 72 फीसदी कम हो गया है। ये संख्या 1750 से घटकर 485 हो गई है। वहीं आम लोगों के मौतों की संख्या 68 फीसदी घटकर 4285 से 1383 हो गई है। साल 2010 में हिंसा वाले जिलों की संख्या 96 थी। साल 2022 में यह 53 फीसदी घटकर 45 हो गई। इसके साथ ही हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या साल 2010 में 465 से घटकर साल 2022 में 176 हो गई। पिछले पांच वर्षों में उन 90 जिलों में 5000 से अधिक डाकघर स्थापित किए गए, जहां माओवादी की सक्रियता है। अक्सर उनका मूवमेंट देखा जाता है।

4 महीने में ताबड़तोड़ कार्रवाई
केंद्र सरकार से मिली हरी झंडी के बाद मप्र, छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में पिछले 4 महीने के दौरान नक्सल विरोधी अभियान चल रहा है। इस अभियान के तहत 2 अप्रैल को बालाघाट में तीन राज्यों के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सक्रिय रहने वाले दो हार्डकोर वर्दीधारी नक्सलियों को ढेर कर दिया। मारे गए नक्सलियों के पास से एक एके-47 और 12 बोर की राइफल के साथ ही दैनिक उपयोग की सामग्री बरामद की गई है। मुठभेड़ में मारी गई महिला नक्सली सजंती उर्फ क्रांति पति सुरेंदर (38) निवासी ग्राम रेगाड़म थाना भेज्जी जिला सुकमा (छग) पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में कुल मिलाकर 29 लाख रुपए और रघु उर्फ शेर सिंह, उर्फ सोमजी पन्द्रे निवासी दडेकसा जिला बालाघाट पर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में कुल मिलाकर 14 लाख रुपए का इनाम घोषित था। मारे गए नक्सली महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सक्रिय थे। इससे पहले 14 दिसंबर को 14 लाख का ईनामी हार्ड कोर नक्सली मडक़ाम हिड्मा उर्फ चैतु निवासी ग्राम पोमरा, थाना मिरतुर, जिला बीजापुर (छत्तीगढ़) को मार गिराया गया था। मप्र में पिछले 5 वर्षों में 17 नक्सलियों को मार गिराया गया है, जिनमें 2 डीवीसीएम नक्सल कमांडर और 15 एसीएम रैंक के नक्सली शामिल थे, जिन पर कुल 2.62 करोड़ रुपए का इनाम घोषित था। वर्ष 2022 में कुल 06 इनामी नक्सली मारे गए हैं तथा एक वर्ष में सर्वाधिक नक्सली मारे जाने का रिकार्ड है। 2023 में कुल 4 इनामी नक्सली मारे गए। दरअसल, जब-जब छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नक्सलियों पर सख्ती होती है तो वे मप्र के बालाघाट के जंगलों में अपना कैंप लगा लेते हैं। पुलिस को पिछले एक साल से सूचना मिल रही है नक्सली मप्र में अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं। मप्र में नक्सली घटनाओं, गतिविधियों और भौगोलिक दृष्टि से शासन ने 8 जिलों को नक्सल प्रभावित माना है। इनमें बालाघाट, सीधी, सिंगरौली, मंडला, डिंडौरी, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया शामिल हैं। इनमें बालाघाट के बाद सिंगरौली ही सर्वाधिक नक्सल प्रभावित माना गया है।

हिडमा के लिए बिछाया जाल…मारे गए 29 नक्सली
मप्र, छग, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला खूंखार नक्सली मांडवी हिडमा सुरक्षा बलों के टारगेट पर है। पांच राज्यों के सुरक्षा बलों के बीच खतरे का पर्याय बने मांडवी हिडमा का सफाया करने के लिए विशेष प्लान बनाया गया है। इसी के तहत सुरक्षा बलों ने जाल बिछाया था, जिसमें 29 नक्सली फंस गए, जिन्हें सुरक्षाबलों ने घेरकर मार गिराया। इस मुठभेड़ में नक्सली कमांडर शंकर राव भी मारा गया। 2024 की शुरुआत के बाद से, माओवादियों के गढ़ बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बलों के साथ अलग-अलग मुठभेड़ में 79 नक्सली मारे गए हैं। सुरक्षा बलों के सूत्रों ने जानकारी दी है कि छग के सुकमा में मांडवी हिडमा के गांव के नजदीक सुरक्षा बलों ने अपना बड़ा कैंप बना लिया है। यह कैंप गृह मंत्रालय के आदेश पर फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस योजना के तहत बनाया गया है। वहीं मप्र के बालाघाट, मंडला आदि क्षेत्रों में सतर्कता बढ़ा दी गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सुकमा जिले के माड़ इलाके में मोस्टवांटेड नक्सली हिडमा का गांव है। यहां पर सुरक्षाबलों का जाना एक तरीके से अबूझ पहेली जैसा है। लेकिन एरिया डोमिनेशन की रणनीति पर काम करते हुए सुरक्षाबलों ने हिडमा के गांव पुरवर्ती में जाकर कैम्प बना दिया है। अब ये कैम्प यानी फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस बनने से इस पूरे इलाके में जल्द ही पक्की सडक़ों का जाल बिछेगा। सुरक्षा महकमे के सूत्रों ने बताया है कि पीएलजीए-1 के कमांडरों ने हिडमा को भी ढेर करने का प्लान तैयार कर लिया है। बता दें कि छत्तीसगढ़ के कुछ जिले हैं, जहां पर मु_ीभर नक्सली बचे हैं। सूत्रों के अनुसार गृह मंत्रालय का प्लान ये है कि अगले 3 साल के भीतर पूरे बस्तर को नक्सल मुक्त कर दिया जाए। घने जंगल जो कि छत्तीसगढ़ का दंडकारण्य का इलाका कहलाता है। इस इलाके तक पहुंचना काफी मुश्किल है। ऐसे में यहां सुरक्षा बलों की धमक कायम रखना जरूरी है। इस बात को ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालय के आदेश पर लगातार फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस इन इलाकों में बनाए जा रहे है। इसका मकसद साफ है कि यहां पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी रहे और नक्सली यहां से भाग खड़े हों। वहीं आशंका जताई जा रही है कि छग में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के चलते हिडमा सहित अन्य नक्सली मप्र के बालाघाट, मंडला का रूख कर सकते हैं। इसलिए इन जिलों में सुरक्षा बलों के साथ ही गुप्तचरों को सतर्क कर दिया गया है।

टारगेट टॉप 17 नक्सली
सूत्रों के मुताबिक इस लिस्ट में सिर्फ हिडमा ही नहीं कई दूसरे नक्सली लीडर भी शामिल हैं। लिस्ट में मुप्पला लक्मना राव को सुरक्षा बलों ने टॉप लिस्ट में शामिल किया है। टॉप 17 में जो नक्सली शामिल किए गए हैं उनमें हिडमा ने 90 के दशक में नक्सली हिंसा का रास्ता चुना और तबसे कई निर्दोष लोगों की जान ले चुका है। वह माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीजीएलए) बटालियन-1 का हेड है और ऐसे घातक हमले करता रहता है। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य के इलाके में जो भी बड़े नक्सली हमले हुये हैं उसमें ज्यादातर जगहों पर एनआईए और दूसरी एजेंसियों का 25 लाख का वांछित हिडमा का ही नाम सामने आता रहा है। साउथ सुकमा के पुरवर्ती गांव में जन्में हिडमा को हिडमालू उर्फ संतोष के नाम से भी जाना जाता है। साल 2001 में वो नक्सलियों से जुड़ा था। हिडमा को ऐसा नक्सल कमांडर मानते हैं जिसने पूरे क्षेत्र में अपना सूचना तंत्र फैला रखा है। हिडमा, बस्तर क्षेत्र के मुरिया जनजाति से आता है। उसके गांव में आज तक पुलिस का पहुंचना नामुमकिन माना जाता था, पर अब सुरक्षा बलों ने हिडमा के गांव मे अपना कैम्प खोल लिया है। हिडमा के बारे में जानकर ये भी कहते है कि हिडमा को गोरिल्ला युद्ध में ट्रेनिंग विदेश में मिली है और वो एके-47 चलाने का सबसे पुराना विशेषज्ञ है जो इसके कुछ ही मिनटों में फायरिंग कर सकता है। हिडमा ने पहले ही खुद को एक ऐसे कमांडर के तौर पर कायम कर लिया है जिसके पास रणनीति की कमी नहीं है। एनआईए के दस्तावेजों के मुताबिक हिडमा की उम्र इस समय 51 साल की है। सुरक्षा एजेंसियां इस समय इसकी गहन तलाश कर रही है।

  • मुप्पला लक्मना राव: यह छत्तीसगढ़ के माड़ एरिया में अपनी गतिविधि चलाता है।
  • नम्बला केशव राव: छत्तीसगढ़ के माड़ एरिया में अपनी गतिविधियों की अंजाम देता है।
  • मल्लराजी रेड्डी: यह नक्सली छत्तीसगढ़, आन्ध्र प्रदेश और ओडिशा के बॉर्डर पर अपनी गतिविधियों को चलाता है।
  • मल्लजुला वेणुगोपाल: यह इस नक्सली की गतिविधिया छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के जंगलों में अपनी गतिविधियों को चलाता है।
  • मिसिर बेसरा: झारखंड में अपनी नक्सली गतिविधियों को चलाता है। झारखंड से भागकर कहीं और छुपा हुआ है।
  • चन्दरी यादव: यह नक्सली झारखंड में अपनी गतिविधियों को सुरक्षा बलों के खिलाफ चलाता है। छत्तीसगढ़ के जंगलों में जाकर छिपा हुआ है।
  • थीपानी थिरुपति: इसका एरिया छत्तीसगढ़ है जहां से ये अपनी नक्सली गतिविधियों को अंजाम देता है।
  • अक्की राज, हरगोपाल: यह नक्सली कमांडर खतरनाक है आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा के बॉर्डर पर सक्रिय है।
  • कदारत सत्यनारायण रेड्डी: यह नक्सली कमांडर छत्तीसगढ़ के बॉर्डर पर सक्रिय है।
  • पलूरी प्रसाद राव: यह खतरनाक नक्सली कमांडर छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में अपनी गतिविधियों को चलाता है।
  • मॉडेम बालकृष्ण: यह ओडि़सा में अपनी गतिविधियों को चलाता है।
  • रमन्ना: यह नक्सली कमांडर छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों को हमेशा निशाना बनाने की कोशिश में रहता है।
  • सुधाकर: यह झारखंड में नक्सली कमांडर है।
  • परवेज: खतरनाक नक्सली कमांडर है।
  • असीम मंडल: यह झारखंड और पश्चिम बंगाल में अपनी गतिविधियों को फैलाता है।
  • हरी भूषण: यह छत्तीसगढ़ में अपनी नक्सली हिंसा को बढ़ाता है।
  • हिडमा: छत्तीसगढ़ में पीएलजी 1 का खतरनाक कमांडर है, जो टॉप 17 नक्सलियों में सबसे खतरनाक है।

अभियान चला कर किया जा रहा नक्सलियों का सफाया
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में आए दिन फॉरवर्ड ऑपरेशन बेस एफओबी स्थापित किए जा रहे हैं। नतीजा ये हो रहा है कि नक्सली अपने पुराने ठिकाने छोडक़र घने जंगल की तरफ भागने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 25 से ज्यादा एफओबी यानी फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस बनाये गयें है। एफओबी आसपास के क्षेत्रों में अभियान चला कर नक्सलियों का सफाया कर रही है एफओबी नक्सलियों के खिलाफ उनके ठिकानों के करीब आक्रामक अभियानों को अंजाम देने के लिए ‘लॉन्च पैड’ के रूप में काम कर रही है। इसी रणनीति के तहत बस्तर में लगातर बड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में दंडकारण्य के इलाके में जो भी बड़े नक्सली हमले हुए हैं, उसमें ज्यादातर जगहों पर एनआईए और दूसरी एजेंसियों का 25 लाख के वांछित हिडमा का ही नाम सामने आता रहा है। साउथ सुकमा के पुरवर्ती गांव में जन्में हिडमा को हिडमालू और संतोष के नाम से भी जाना जाता है। साल 2001 में वो नक्सलियों से जुड़ा था। हिडमा को ऐसा नक्सल कमांडर मानते हैं, जिसने पूरे क्षेत्र में अपना सूचना तंत्र फैला रखा है। हिडमा, बस्तर क्षेत्र के मुरिया जनजाति से आता है। उसके गांव में आज तक पुलिस नहीं पहुंच सकी है। लेकिन अब सुरक्षा बलों ने हिडमा के गांव मे अपना कैम्प खोल लिया है। हिडमा के बारे में जानकर ये भी कहते है कि हिडमा को गोरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग विदेश में मिली है और वो एके-47 का सबसे पुराना जानकर है। जो इसके कुछ ही मिनटों में फायरिंग कर सकता है। हिडमा ने पहले ही खुद को एक ऐसे कमांडर के तौर पर कायम कर लिया है, जिसके पास रणनीति की कमी नहीं है। एनआईए के दस्तावेजों के मुताबिक हिडमा की उम्र इस समय 51 साल की है। एनआईए जिसकी गहन तलाश कर रही है। सुरक्षा बलों की रिपोर्ट को मानें तो नक्सली पीएलजीए बीएन-1 का कमांडर मांडवी उर्फ हिडमा सुरक्षा बलों के छीने हथियार और बीजीएल/रॉकेट लॉन्चर से हमले की फिराक में है। उधर सूत्रों की माने तो हिडमा को पकडऩे और मारने का पूरा प्लान तैयार है। सुरक्षा बलों के इसी डर की वजह से नक्सली कमांडर हिडमा डीप फॉरेस्ट एरिया में छिपता फिर रहा है। पर अब नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों ने पिन पॉइंटेड ऑपरेशन का बड़ा प्लान तैयार किया है, जिसमें आने वाले दिनों में हिडमा मारा जाएगा। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सिक्योरिटी फोर्स छत्तीसगढ़, मप्र, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित करीब गांवों का थर्मल इमेजिंग करवा रही है। यह इलाके नक्सलियों से प्रभावित हैं, जहां हिडमा के छिपे होने की आशंका है। इसके साथ ही इन इलाकों में नक्सलियों के बेस बने हुए हैं, सिक्योरिटी फोर्स इस काम में एनटीआरओ की मदद ले सकती हैं, जिससे इन इलाकों की मैपिंग की जा सके इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जब भी सिक्योरिटी फोर्सेज इन इलाकों में ऑपरेशन के लिए निकलेंगे तो उन्हें सारे रास्तों की जानकारी भी होगी साथ में ही नक्सलियों के खिलाफ बेहतर ऑपरेशन कोऑर्डिनेट करने में मदद मिलेगी।

सुरक्षा बलों ने बदली है स्ट्रेटेजी
नक्सलियों का खात्मा करने के लिए सुरक्षा बलों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। सुरक्षा के लिहाज से बहुत सारी जानकारी हम नहीं दे सकते हैं लेकिन नक्सलियों के गढ़ में घुसने के बजाय अब पिन पॉइंटेड इंटेलिजेंस इन्फॉर्मेशन के हिसाब से ऑपरेशन किया जा रहे हैं। इसके साथ ही टेक्निकल गैजेट्स का भी सहारा लिया जा रहा है। सुरक्षा बलों को ग्राउंड पर एनटीआरओ की भी मदद मिल रही है जो रियल टाइम पिक्चर और वीडियो नक्सलियों के मूवमेंट की दे रही है। हाल फिलहाल में सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की गढ़ की मैपिंग भी की है और बचे हुए नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन की एक अलग स्ट्रेटजी तैयार की है जिसमें आने वाले समय में और बड़ी सफलताएं मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। दरअसल, नक्सलियों के खिलाफ त्रिआयामी रणनीति के तहत कार्रवाई की गई। इसमें नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए कुशल रणनीति, राज्य और केंद्र सरकार के बीच बेहतर समन्वय और विकास के माध्यम से जनभागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सैन्य बलों का बनोबल ऊंचा रखने के लिए जरूरी कदम तो उठाए ही, उन्हें बेहतर हथियार और आधुनिक तकनीक भी उपलब्ध कराई। साथ ही, नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ लगातार बैठकें कीं। राज्य की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए केंद्र ने अनेक विकास कार्यों को गति दी, जिससे नक्सली इलाकों में तेजी से सडक़ों, बुनियादी ढांचों का विकास और संचार सुलभ हुआ है। नक्सलियों पर अंकुश लगाने की केंद्र की इच्छाशक्ति को इसी से समझा जा सकता है कि जब सरकार पूरी तरह आश्वस्त हो गई कि वाम-अतिवाद कोई सामाजिक-आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि इसके विशुद्ध राजनैतिक कारक हैं और यह लोकतंत्र के विरुद्ध सीधी, किंतु छद्म लड़ाई है। इसके बाद ही सरकार ने उन पर नकेल कसने की पहल की।

अपनाई गई आक्रामक नीति
नक्सल दखल को कम करने के लिए उनके ‘सुरक्षा वैक्यूम तथा कोर एरिया’ को कम करने की जरूरत महसूस की गई, क्योंकि भौगोलिक और प्राकृतिक कारणों से कोर एरिया नक्सलियों की ताकत होते हैं। इसलिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की घेराबंदी करते हुए लगातार सुरक्षाबलों के नए शिविर स्थापित किए गए। जरूरत पडऩे पर शिविरों के स्थान भी बदले गए। चार नए ज्वाइंट टास्क फोर्स शिविर के साथ सीआरपीएफ की अनेक जवानों को पुन: तैनात किया गया। कुछ जवानों को अन्य राज्यों से निकाल कर उन परिक्षेत्रों में प्रतिस्थापित किया गया, जो माओवादी कोर एरिया माने जाते हैं। इसके अलावा, प्रतिरोधात्मक या रक्षात्मक नीति की जगह आक्रामक नीति अपनाई गई। सुरक्षाबलों ने नए तरीकों और योजनाओं से चुनौती देकर माओवादी थिंक टैंक को चौंका दिया है। सैन्य बलों की विशेषज्ञता और नॉलेज शेयरिंग की सहायता से केंद्रीय तथा राज्यों पुलिस बलों में विशेष ऑपरेशन दलों का गठन किया गया। माओवादी क्षेत्र कठिन होने तथा बार-बार उनके द्वारा आम लोगों को ढाल बनाने वाले गुरिल्ला तरीकों से निपटने के लिए सरकार ने सैन्य बलों को हवाई सुविधा भी मुहैया करा रही है। आपरेशन में मदद और घायलों को निकालने के लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकाप्टर तैनात किए गए हैं। सरकार आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर नक्सलियों का दमन कर रही है। इसके लिए लोकेशन, फोन, मोबाइल, साइंटिफिक कॉल लॉग्स, सोशल मीडिया विश्लेषण आदि के लिए विभिन्न तकनीकी और फॉरेंसिक संस्थाओं से सहयोग लिया जा रहा है। इस प्रकार, केंद्र सरकार माओवाद की जड़ पर प्रहार कर रही है, जो राज्य सरकार के साथ समन्वयन के बिना संभव नहीं था। केंद्र सरकार बिना भेदभाव के राज्यों को मनोवांछित सुविधाएं व तकनीक दे रही है, नक्सल प्रभावित राज्यों को सीआरपीएफ, हेलीकॉप्टर, प्रशिक्षण तथा राज्य पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के लिए धन, उपकरण, हथियार और खुफिया जानकारी उपलब्ध करा रही है। सरकार द्वारा उठाए गए ये कदम किस तरह नक्सलियों की कमर तोड़ रहे हैं, उसे समझने के लिए 2022 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के निकट माओवादी थिंक टैंक दिलिप तेलतुम्बडे को धराशायी करने से लेकर कांकेर की घटनाओं को समग्रता से देखना होगा। मोटे तौर पर समझा जाए तो आंध्र प्रदेश के नक्सलियों के दो गढ़ हैं। पहला, आंध्र प्रदेश का मैदानी क्षेत्र, जिसमें निजामाबाद, करीमनगर, वारंगल, मेडक, हैदराबाद, नलगोंडा जिले शामिल हैं। दूसरा क्षेत्र है दंडकारण्य, जिसमें सीमांध्र्र/तेलंगाना के आदिलाबाद, खम्मम, पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम, ओडिशा का कोरापुट, महाराष्ट्र के भण्डारा, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, छत्तीसगढ़ के बस्तर, राजनांदगांव तथा मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला जिले शामिल हैं। नक्सल प्रभावित दंडकारण्य कुल 1,88,978 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। नक्सली गुटों ने आपस में हाथ मिलाने के बाद अबूझमाड़ क्षेत्र को अपना ठिकाना बनाया है। गुरिल्ला जोन और गुरिल्ला बेस के बीच केवल शाब्दिक अंतर नहीं है। गुरिल्ला जोन को माओवाद प्रभावित इलाका कह सकते हैं यानी वह क्षेत्र जहां नियंत्रण के लिए संघर्ष हो रहा है। मध्य माड़ इलाके को छोडक़र बस्तर संभाग के बहुतायत सघन वन क्षेत्र गुरिल्ला जोन के अंतर्गत आते हैं, जो नक्सलियों का आधार क्षेत्र है। यहां सुरक्षाबल आसानी से नहीं घुस सकते हैं। यहां नक्सलियों की एक समानांतर सरकार है, जिसे वे ‘जनताना सरकार’ कहते हैं। लेकिन धीरे-धीरे उनका यह प्रभाव क्षेत्र भी दरकने लगा है और बस्तर नक्सलियों का आखिरी गढ़ बच गया है। यदि अबूझमाड़, बीजापुर और सुकमा के अंदरूनी इलाकों में सिमटे नक्सलियों के आधार क्षेत्र को समाप्त कर दिया जाए, तो नक्सली संगठनों के लिए दूसरा आधार क्षेत्र बनाना कभी संभव नहीं हो सकेगा। इसलिए वे अपने इस गढ़ को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक देंगे। यह लड़ाई केवल बंदूक से नहीं लड़ी जा सकती, क्योंकि शहरी नक्सली इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि सलवा जुड़ूम की लड़ाई हम जमीन पर नहीं हारे, बल्कि दिल्ली के पावर पाइंट प्रेजेंटेशनों से हार गए। विवेचना का प्रश्न है कि जो लोग सलवा जुड़ूम के सशस्त्र संघर्ष के खिलाफ थे, वही माओवादियों के समर्थन में क्यों मुखर रहते हैं? इतना ही नहीं, नक्सली कैडर हमेशा मिलता रहे, इसके लिए शहरी नक्सलियों द्वारा हजारों साल से सह संबद्ध 30 से अधिक वनवासी जनजातियों को फांकों में बांटने की कोशिश हो रही है। यही प्रयास आदिम भाषा-बोली के साथ भी किया जा रहा है। आदिम देवगुडिय़ां-मातागुडिय़ां और घोटुल अब वीरान हो गए हैं। गायता, माझी, ओझा सब महत्वहीन हो गए हैं और समाज में अपनी परंपरागत जगह खोने लगे हैं।

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