दैवेभो को बना दिया आउटसोर्स कंपनी का कर्मचारी

दैवेभो
  • मप्र वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के अफसरों का खेल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने कॉपोरेशन में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को आउटसोर्स कंपनी का कर्मचारी बनाकर करोड़ों रूपए का घालमेल किया है। अफसरों ने कंपनी के साथ मिलकर जहां दैवेभो कर्मचारियों को धोखा दिया है, वहीं सरकार को भी करोड़ों रूपए की चपत लगाई है। कर्मचारियों को जब अपने साथ हुई इस ठगी का पता चला तो उन्होंने कंपनी के खिलाफ श्रम आयुक्त और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। लेकिन स्थिति जस की तस है।
दरअसल, मप्र वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन में 10 साल से काम कर रहे 2200 दैनिक वेतन भोगियों को नियमित करने की बजाय उन्हें, आउटसोर्स कंपनी का कर्मचारी बना दिया गया है। इसका खामियाजा ये हुआ कि 8 से 9 हजार कमाने वाले कर्मचारियों का वेतन बढ़ने की जगह 8400 रुपए के साथ ही ईपीएफ के 1040 रुपए फिक्स कर दिए गए हैं।  इस संबंध में कर्मचारी नेता अशोक पांडे और अनिल बाजपेयी का कहना है कि पूरे मामले में कर्मचारी कॉर्पोरेशन को पहले ही आउटसोर्स न करने के लिए पत्राचार करते रहे हैं, इसके बाद भी कर्मचारियों को आउटसोर्स कर दिया गया। इससे कर्मचारियों को कई शासकीय सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा और उनके अधिकारों का हनन होगा। आरबी एसोसिएट्स के निदेशक मयूर जैन का कहना है कि इस पूरे मामले में मैं आपको कोई भी जानकारी नहीं दे सकूंगा। मुख्यालय से ही आप भर्ती कर्मचारी और उन्हें दिए जाने वाले वेतन की जानकारी ले सकते हैं। हमें जो भुगतान किया जा रहा है, उसकी जानकारी भी मैं नहीं दे सकूंगा, क्योंकि हर माह मिलने वाले भुगतान की राशि बदलती रहती है।
प्रति कर्मचारी 3560 रुपए का कमीशन
दरअसल, यह पूरा खेल मिलीभगत से हुआ है। मप्र वेयरहाउसिंग एंड लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन के अफसरों ने कर्मचारियों को जिस निजी कंपनी आरबी एसोसिएट्स के हवाले कर दिया है। उसे प्रति कर्मचारी 13000 रुपए का भुगतान किया जा रहा है। यानी प्रति कर्मचारी 3560 रुपए का कमीशन। इस हिसाब से बीते 15 माह में कंपनी कर्मचारियों की मेहनत की कमाई में से 11 करोड़ 74 लाख रुपए कमीशन के निकाल चुकी है। जिस आरबी एसोसिएट्स को कर्मचारियों का जिम्मा दिया गया है, उसके साथ हुए एग्रीमेंट में कहीं भी कमीशन और वेतन का जिक्र तक नहीं है। यानी वेतन- ईपीएफ का निर्धारण आरबी एसोसिएट्स के कर्ताधर्ताओं ने अपने हिसाब से कर लिया है। एग्रीमेंट में 24 प्रतिशत ईपीएफ (कर्मचारी और नियोक्ता का मिलाकर) का उल्लेख है। लेकिन कर्मचारी कह रहे हैं कि उनका ईपीएफ खाते में उतना जमा नहीं किया जा रहा है। इतना ही नहीं एग्रीमेंट में एक पॉइंट ये भी लिखा है कि कर्मचारी का काम संतोषजनक नहीं हुआ तो उसे कार्यमुक्त कर दिया जाएगा। यानी उसकी नौकरी पर हमेशा ही तलवार लटकी रहेगी। इधर, कर्मचारी नेता कह रहे हैं कि नियमतिकरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं। उनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2006 को उमा देवी बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में निर्णय दिया था कि ऐसे कर्मचारियों को नियमित किया जाना चाहिए। पद न होने की दशा में कर्मचारी को स्थाई कर्मी के पद पर पदोन्नत किया जाना चाहिए। ताकि वे दिहाड़ी मजदूर की श्रेणी से बाहर निकलें और उन्हें शासन की सुविधाएं मिल सकें। बाद में पद होने पर उन्हें नियमित किया जाए।
नई भर्ती और ज्यादा सैलरी दिखाकर ठगी…
श्रमिकों को ईपीएफ, मेडिकल सहित अन्य सुविधाओं का लोभ दिया गया। इस तरह उनकी भर्ती एमपी नगर स्थित आरबी एसोसिएट्स के माध्यम से कराई गई। इस दौरान श्रमिकों की नई भर्ती ज्यादा सैलरी दिखाकर की गई। हालांकि उन्हें वेतन पुराना ही दिया गया। इस तरह निजी कंपनी से सांठगांठ कर हर लाखों रुपए की कमाई की गई। पहले कर्मचारियों को 8 से 9 हजार रुपए वेतन हर महीने प्राप्त होता था। वर्तमान में आउटसोर्स कंपनी द्वारा 8400 रुपए वेतन हर महीने दिया जा रहा है। इसके अलावा 1040 रुपए ईपीएफ खाते में जमा कराए जा रहे हैं। हर कर्मचारी को पिछले एक साल में हर महीने 9440 रुपए दिए गए। जबकि निगम द्वारा आउटसोर्स कंपनी को प्रति श्रमिक हर माह 13000 रुपए दिए गए। कंपनी को प्रति श्रमिक 3560 रुपए और 2200 श्रमिकों पर हर महीने 78 लाख 32 हजार की कमाई हुई। कंपनी ने 15 महीने के ठेके में 11 करोड़ 74 लाख 80 हजार रुपए कमा लिए। कर्मचारियों का तर्क है कि जब शासन द्वारा ईपीएफ और अन्य सुविधाएं दी जा सकती हैं तो निजी कंपनी को ठेका क्यों दिया जा रहा है? इससे उन्हें मिलने वाला लाभ कंपनी को मिल रहा है। विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि हमारे पास नियमित कर्मचारियों के पद कुछ ही हैं। इस पर कुछ श्रमिकों की भर्ती कराई गई है। बचे हुए श्रमिकों को आउटसोर्स कराया गया है। एजेंसी उन्हें वर्दी, ईपीएफ और अन्य सुविधाएं दे रही है। श्रमिकों को आउटसोर्स कराने के बजाय स्थाईकर्मी प्रमोट किए जाता, तो उन्हें लाभ मिलता? ज्यादातर कर्मचारी प्रमोट होने की पात्रता नहीं रखते हैं। इसलिए उन्हें आउटसोर्स किया जा रहा है। क्योंकि इससे उन्हें ईपीएफ और मेडिकल की सुविधाओं का लाभ मिलेगा।

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