बीमारी के नाम पर लगा दिया करोड़ों का फटका

  • अफसर लगे हैं मामला दफन करने में…

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि जिसे जहां मौका मिल रहा है वह वहां पर सरकार के खजाने को चपत लगा रहा है। यही वजह है कि हर साल सैकड़ों लोग रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं ,तो कई के खिलाफ लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू द्वारा मामले भी दर्ज किए जा रहे हैं, लेकिन ऐसे मामलों में सरकार व शासन द्वारा कठोर कार्रवाई नहीं किए जाने से भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसकी वजह से सरकार के सुशासन पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। ऐसा ही नया मामला है बीमारी के नाम पर करोड़ों रुपए हड़पने का। यह मामला मंत्रालय से जुड़े कर्मचारियों का है। यहां पर कर्मचारियों ने फर्जी मेडिकल बिल लगाकर करीब तीस करोड़ रुपयों को सरकारी खजाने को फटका लगा दिया है। इनमें कई कर्मचारी तो ऐसे है जिनके द्वारा हर माह करीब 25-25 हजार रुपए तक के मेडिकल बिल लगाए गए हैं। हद तो यह है कि इस मामले की मंत्रालय में पदस्थ आला अफसरों व सरकार तक को भनक तक नहीं लगी है। जब इस मामले की एक के बाद एक शिकायतें हुई तो समूचा अमला मामले को दबाने में जुट गया है। यह पूरी गड़बड़ी 29 करोड़ 46 लाख 24 हजार 226 रुपए की बताई जा रही है। इस राशि को आहरण जनवरी 2020 से अक्टूबर 2022 के बीच मेडिकल बिल के नाम पर किया गया है। बताते हैं कि जो तीन शिकायतें की गई हैं, उनमें 250 कर्मचारियों के नाम हैं। दावा किया गया हि क सभी 250 कर्मचारी मेडिकल बिल के फर्जीवाड़े में शामिल हैं। अब इस मामले की जांच लेखाधिकारी के जरिए कराई जा रही है। बताते हैं कि जांच के नाम पर घोटाले से पर्दा उठाने की बजाय उसे दबाने के प्रयास किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना का अनुमोदन किया था, लेकिन इसे लागू ही नहीं किया गया है। इसकी वजह है कई कर्मचारी संगठनों का इसको लेकर विरोध करना। इसकी वजह है मेडिकल बिल के नाम पर भारी-भरकम राशि का आहरण कर अपनी जेब भरना मुश्किल हो जाएगा।
सरकार ने नहीं दी जानकारी
चौरई के कांग्रेस विधायक चौधरी सुजीत मेर सिंह इस मामले को राज्य विधानसभा  में भी उठा चुके हैं। उनके द्वारा उठाए गए प्रश्न  में पूछा गया था कि  एक वित्तीय वर्ष में 25,000 रुपये से अधिक की राशि का मेडिकल बिल लेने वाले कर्मचारियों की संख्या कितनी है? सरकार ने अपने उत्तर में कहा है कि  इस मामले की जानकारी एकत्रित की जा रही है। सूत्र बताते हैं कि इसका लाभ लेने वाले कर्मचारियों की संख्या लगभग 800 है। बताते हैं कि इतने कर्मचारियों का इलाज करने वाले डॉक्टरों की संख्या महज से तीन से चार है।
जल संसाधन में भी हो चुका है ऐसा ही घोटाला
एक दशक पहले लगभग इसी तरह का एक घोटाला जल संसाधन विभाग में भी हो चुका है। इस मामले में तत्कालीन प्रमुख अभियंता ने एफआईआर दर्ज कराई थी। जिस पर कार्रवाई करते हुए भोपाल क्राइम ब्रांच ने 19 कर्मचारियों के खिलाफ चालान पेश किया था। सुनवाई के बाद बड़ा अदालत ने कर्मचारियों को तीन-तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी। उसके बाद दस कर्मचारियों को सरकारी सेवा से बर्खास्त किया गया था। बचे हुए नौ कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए थे। लिहाजा उनकी पेंशन रोक दी गई थी। यह कार्रवाई कैबिनेट की मंजूरी के बाद की गई थी।

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