- घाटे में चल रहीं संस्थाओं को बंद करने की हो रही तैयारी
- विनोद उपाध्याय
करीब 20 साल पहले देश के बीमारू राज्यों में शामिल मप्र आज विकसित राज्यों की कतार में खड़ा है, लेकिन मप्र में विकास को गति देने की जिम्मेदारी जिन संस्थाओं (निगम-मंडलों) पर है वे अधिकारियों की भर्राशाही और लापरवाही के कारण घाटे की चपेट में आ गई हैं। इनका घाटा इतना बढ़ गया है कि सरकार इन्हें बंद करने की तैयारी कर रही है। गौरतलब है कि मप्र में सरकार ने विकासात्मक कार्यों के लिए निगम-मंडलों का गठन किया है। ये संस्थाएं अपने-अपने क्षेत्र के कार्यों की जिम्मेदारी संभालती हंै। इन सर्वेसर्वा आईएएस अधिकारी होते हैं। इन कंपनियों में पदस्थ रहे अफसरों ने पिछले डेढ़ दशक के दौरान अपनी मनमानी से काम किया है। जिसका असर यह हुआ है कि अधिकांश निगम-मंडल घाटे में चल रहे हैं।
मप्र में अधिकांश नगर निगम सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। जहां मप्र राज्य भूमि विकास निगम, मप्र लेदर डेवलपमेंट कार्पोरेशन, मप्र स्टेट टेक्सटाइल कार्पोरेशन लिमिटेड और मप्र राज्य उद्योग निगम लिमिटेड बंद हो चुके हैं। वहीं मप्र स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड, मप्र स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड, मप्र महिला वित्त एवं विकास निगम और मप्र स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड घोर घाटे में हैं। अब घाटे में चल रहे प्रदेश के निगम-मंडलों को सरकार बंद करने की तैयारी में है। ऐसे निगम, मंडल और बोर्ड जिनसे शासन को या प्रदेश के नागरिकों को लाभ नहीं मिल पा रहा है और इसके बावजूद वे संचालित होकर सरकार पर वित्तीय भार बढ़ा रहे हैं, उनकी जानकारी मांगी गई है। वहीं, भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक ने भी घाटे में चल रहे निगम-मंडलों के वित्तीय प्रबंधन से जुड़ी जानकारी मांगी है। इसी संदर्भ में वित्त विभाग ने सभी विभाग प्रमुखों को पत्र लिखकर ऐसे निगम- मंडलों की 12 बिंदुओं में जानकारी मांग ली है।
प्रदेश के लिए बोझ बन चुके हैं अधिकांश निगम मंडल
प्रदेश में सोशलिस्टिक पैटर्न ऑफ सोसायटी के आधार पर निगम-मंडलों की स्थापना की गई थी। इनकी स्थापना के पीछे मूल उद्देश्य यह था कि राज्य में सुव्यवस्था, विकास, रोजगार और आम लोगों को सुख सुविधाएं मिले। लेकिन निगम मंडल अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। प्रदेश में संचालित 23 निगम मंडलों में से मात्र 2 ही निगम मंडल ऐसे हैं, जो अपनी स्थापना से लेकर आज तक लाभ में चल रहे हैं। शेष 21 निगमों में से कुछ निगम पिछले पांच सालों में अच्छी स्थिति में आ पाए हैं तो कुछ निगम ऐसे भी हैं, जो स्थापना से लेकर आज तक सफेद हाथी बने हुए हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में कई निगमों के हालात इतने बदतर हैं कि अब उन्हें बंद करने के अतिरिक्त और कोई चारा सरकार के पास नहीं है। निगम मंडलों के गठन के समय प्रबंध संचालकों को दैनिक कार्य और व्यवसाय को सुचारु रुप से संचालित करने और अध्यक्ष एवं बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को निगम के नीति निर्धारण तथा महत्वपूर्ण निर्णय लेने का कार्य सौंपा गया था। देखा जाए तो यह व्यवस्था एक तरह से चैक-बैलेंस के लिए की गई थी, लेकिन धीरे-धीरे निगम मंडल के अध्यक्ष पद पर राजनीतिक लोगों का कब्जा होने लगा और इन लोगों ने संस्था के मूल उद्देश्यों के बजाय अपने राजनैतिक और व्यक्तिगत हितों को पूरा करने में रुचि ली साथ ही सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए निगमों के उत्पादों और सेवाओं को भी प्रभावित किया। इतना ही नहीं इन लोगों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए समर्थकों और रिश्तेदारों को अनावश्यक रूप से भर्ती कर लिया। ऐसे में जहां एक ओर निगमों पर अनावश्यक स्थापना व्यय बढ़ा वहीं दूसरी ओर निगमों में अयोग्य और अकुशल कर्मचारियों की भर्ती होने से उनकी व्यवसायिक कुशलता भी कम हो गई। जिसके चलते निगमों में अपेक्षाकृत लाभ की बजाए हानि हो रही है। हालांकि यह भी सही है कि निगम मंडलों की स्थापना लाभ कमाने के लिए नहीं, बल्कि वस्तुओं, सेवाओं आधारभूत संरचनाओं का निर्माण एवं विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को ध्यान में रखकर की गई थी, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि निगम मंडलों को लाभ नहीं कमाना चाहिए। यदि निगम मंडल लाभ कमाते हैं तो वो ज्यादा अच्छी तरह से जनहित में कार्य कर पाएंगे और राज्य सरकार पर भी किसी प्रकार का बोझ नहीं रहेगा। वर्ष 2004 में राज्य योजना मंडल के तत्कालीन उपाध्यक्ष सोमपाल ने राज्य शासन को सभी निगम मंडलों के क्रियाकलापों, प्रबंधन एवं उद्देश्यों की एक बार फिर से नए सिरे से समीक्षा करने के लिए लिखा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि जो निगम मंडल आवश्यक हैं उनका पुनर्गठन करने का प्रयास किया जाना चाहिए। जिससे वो अपने मौलिक उद्देश्यों की पूर्ति एवं पहले से बेहतर कार्य करने में सफल हो सकें। जिन निगम मंडलों के उद्देश्यों की पूर्ति हो चुकी है या वे अनावश्यक हो गए हैं उन्हें बन्द कर देना चाहिए। उन्होंने एक दर्जन से अधिक निगम मंडलों को अनुपयुक्त बताते हुए कुछ को बन्द करने और कुछ को एक-दूसरे में मर्ज करने की सलाह भी राज्य सरकार को दी थी, लेकिन निगम मंडल राजनीतिक लोगों के लिए पुनर्वास केन्द्र होने के कारण तत्कालीन उपाध्यक्ष सोमपाल की सलाह को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया।
40 उपक्रम निष्क्रिय
बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव की आचार संहिता समाप्त होने के बाद ऐसे निगम-मंडलों को सूचीबद्ध कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि 46 निगम, मंडल, प्राधिकरण और बोर्डों में सरकार नियुक्तियां भी निरस्त कर चुकी है। कैग ने 31 मार्च, 2022 की रिपोर्ट में बताया है कि मध्य प्रदेश में ऐसे 72 में से 40 उपक्रम निष्क्रिय रहे। राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के ये उपक्रम तीन से 32 साल तक निष्क्रिय रहे। कैग ने राज्य शासन को यह भी सुझाव दिया है कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के इन सभी उपक्रमों के कामकाज की समीक्षा करे और उनके वित्तीय प्रदर्शन में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए। ऐसे निष्क्रिय सरकारी उपक्रम जैसे निगम मंडल, बोर्ड की समीक्षा कर उनके पुनरूद्धार या उन्हें समाप्त करने के लिए उचित निर्णय लें। इनमें मप्र पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम, विद्युत वितरण कंपनियां, स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड, मप्र वन विकास निगम, मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी, मप्र सडक़ परिवहन निगम, वेयर हाउसिंग एंड लाजिस्टिक्स कार्पोरेशन, मप्र माइनिंग कार्पोरेशन सहित अन्य निगम मंडल और बोर्ड शामिल है। वहीं मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने शिवराज सरकार के दौरान बनाए गए विभिन्न बोर्ड और प्राधिकरणों की सूची भी तलब की है। बताया जा रहा है कि राज्य सरकार उन बोर्ड और प्राधिकरणों को भी बंद करने का निर्णय ले सकती है, जिनका पूर्ववर्ती शिवराज सरकार में गठन किया गया था। विधानसभा चुनाव के पहले रजक, वीर तेजाजी, परशुराम कल्याण, तेलघानी, विश्वकर्मा, स्वर्णकला, कुश, महाराणा प्रताप, जय मीनेश, मां पूरी बाई कीर, देवनारायण सहित अन्य कल्याण बोर्ड गठित किए थे। वित्त विभाग ने सभी विभागों को एक प्रोफार्मा भेजा है। इसमें उन्हें 12 बिंदुओं की जानकारी भरकर भेजना है। इनमें समस्त सांविधिक निगम, सरकारी कंपनियों की सूची मांगी है। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान एवं वर्ष के अंत तक निवेशित राशि बतानी होगी। शेयरों की संख्या और भुगतान के योग बताने होंगे। शेयर की श्रेणी का भी उल्लेखित करना होगा। यदि निगम हानि में चल रहा हो तो मार्च 2024 के अंत तक पूर्ण हानि का विवरण उसके कारणों सहित बताना होगा। 31 मार्च, 2023 की स्थिति में परीक्षित लेखा की प्रति उपलब्ध करानी होगी और संस्था के अतिरिक्त लाभ में आने की तिथि से वर्षवार निवेशित राशि बतानी होगी।