
- अभी बैंकों में विभागीय अधिकारी ही प्रशासक बन संभालेंगे कमान …
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सहकारी समितियों के चुनाव अभी भी नहीं होंगे। अभी तक विभिन्न कारणों से चलते टलते आ रहे चुनाव अब डिफाल्टर किसानों के कारण अधर में पड़ गए हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में में 50 लाख से ज्यादा किसान सवा चार हजार प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के संचालक मंडल का चुनाव करते हैं। इसके आधार पर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और राज्य सहकारी बैंक के संचालक मंडल का चुनाव होता है। विभागीय जानकारी के अनुसार, प्रदेश में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों से लेकर अपेक्स बैंक तक के चुनाव खटाई में पड़ गए हैं। इसके पीछे बड़ा कारण कमलनाथ सरकार में सभी किसानों का कर्ज माफी नहीं हो पाना है। लाखों किसान वर्तमान में डिफॉल्टर हैं और ये किसान चुनाव नहीं लड़ सकते। इसके चलते सरकार सहकारी चुनाव टाल रही है। वहीं राज्य सहकारी निर्वाचन पदाधिकारी ने सभी जिलों से मतदाता सूची मांगी है जिससे स्पष्ट हो सकेगा कि कितने किसान वोट कर सकते हैं। फिलहाल बैंकों में प्रशासक प्रथा लागू रहेगी।
एक दशक से अटके हैं पैक्स के चुनाव
प्रदेश में पैक्स के चुनाव एक दशक से से अधिक समय से अटके हैं। जिसके कारण करीब 30 जिला सहकारी बैंकों और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल तथा अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं हो सका है। सहकारी चुनाव को लेकर मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। अदालत के आदेश पर राज्य सरकार ने राज्य सहकारी निर्वाचन पदाधिकारी की नियुक्ति कर दी है। सहकारी निर्वाचन पदाधिकारी ने प्रदेश में सहकारी और अन्य संस्थाओं के चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़ाई। एक जानकारी के अनुसार हर माह करीब तीन हजार संस्थाओं और सहकारी समितियों के चुनाव कराए जा रहे हैं लेकिन पैक्स के चुनाव अटके हैं। प्रदेश में करीब साढ़े चार हजार प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां (पैक्स) हैं। सबसे पहले इन्हीं समितियों का चुनाव होता है। इसमें किसान ही चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन, जानकारी सामने आई है कि लाखों किसान डिफॉल्टर हैं। डिफॉल्टर किसान चुनाव नहीं लड़ सकता।
किसानों का कोर्ट जाने का डर
कमलनाथ सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने संबंधी आदेश जारी किया था। पहले चरण में 50 हजार रुपए तक का कर्ज माफ करने के लिए कांग्रेस सरकार ने दो हजार करोड़ का प्रावधान किया था। कृषि मंत्री कमल पटेल ने विधानसभा में बताया था कि 20 लाख 23 हजार 136 प्रकरणों में 7108 करोड़ रूपए का ऋण माफ हुआ है और 25 लाख से अधिक किसान कर्ज माफी का इंतजार कर रहे हैं। ये किसान पेक्स का चुनाव नहीं लड़ सकते। सरकार के ध्यान में लाया गया है कि पैक्स के चुनाव कराए गए तो कोई भी डिफॉल्टर किसान कर्ज माफी का फायदा नहीं मिलने को लेकर कोर्ट जा सकता है और ऐसे में चुनाव में रोक लगने की संभावना ज्यादा है। यही कारण है कि सरकार फिलहाल सहकारी चुनाव को आगे बढ़ाना चाहती है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने मार्च 2022 को विधानसभा में घोषणा करते हुए कहा कि डिफाल्टर किसानों का ब्याज सरकार भरेगी। उन्होंने कहा कि कई किसानों ने दो लाख के माफी के चक्कर में पैसा नहीं भरा, डिफॉल्टर हो गए। वहीं कमलनाथ का कहना है कि उन्होंने 27 लाख किसानों का कर्ज माफ कर दिया। दूसरे चरण में कर्ज माफ करने की कार्रवाई चल ही रही थी कि सरकार चली गई।
फरवरी 2018 में हो जाने थे चुना
राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी के निर्देश पर चुनाव के लिए सदस्यता सूची तैयार कराई जा रही है। सहकारी अधिनियम में पांच साल में सहकारी समितियों के संचालक मंडल का चुनाव कराने का प्रविधान है। नियमानुसार यह चुनाव फरवरी 2018 में हो जाने थे, लेकिन विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह चुनाव नहीं कराए गए थे। विधानसभा के बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई और चुनाव टल गए। इसके बाद कमलनाथ सरकार ने किसान ऋण माफी योजना लागू कर दी, जिसके कारण चुनाव नहीं हो पाए। मार्च 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद कोरोना महामारी के कारण चुनाव की स्थिति नहीं बनी। तब से ही सहकारी समितियों के चुनाव टलते आ रहे हैं। समितियों से ऋण लेने वाले किसान लगभग 56 लाख हैं। इनमें से चालीस लाख मतदान में हिस्सा लेने की पात्रता रखते हैं, क्योंकि डिफाल्टर किसानों को मतदान में हिस्सा लेने की पात्रता नहीं होती है। इनके नाम अलग करके सदस्यता सूची तैयार होगी। इसके आधार पर पहले समितियों के चुनाव कराए जाएंगे। इसमें से जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों के लिए प्रतिनिधि चुने जाएंगे, जो संचालक मंडल का चुनाव कराएंगे।