- कम मतदान होने से गुणाभाग में उलझे प्रत्याशी
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकाय के पहले चरण में जिस तरह से मतदाताओं ने बेरुखी दिखाई है , उससे दोनों प्रमुख सियासी दलों यानि की भाजपा व कांग्रेस का गुणा भाग ही बिगड़ गया है। अब इन दोनों ही दलों के प्रत्याशी से लेकर संगठन तक को नए सिरे से आंकलन करना पड़ रहा है। उधर, कम मतदाता होने की वजह से कांग्रेस में उत्साह देखा जा रहा है। दरअसल माना जाता है कि अगर मतदान कम होता है तो विपक्ष को फायदा होता है और इस बार बीते चुनाव की तुलना में कम मतदान हुआ भी है। खास बात यह है की कम मतदान प्रदेश के चारों महानगरों में हुआ है। यह चारों शहर भाजपा के गढ़ माने जाते हैं। राजनैतिक दलों के साथ ही प्रशासन को उम्मीद थी कि बारिश नहीं हुई तो बड़ी संख्या में मतदाता घरों से निकलकर मतदान केन्द्रों तक पहुंचेंगे , लेकिन 11 नगर निगमों में मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव की तुलना में बढ़ा तो नहीं , बल्कि कम ही हो गया। बीते चुनाव की तुलना में इस बार सर्वाधिक कमी सिंगरौली में आयी है। वहां पर तो 12.28 प्रतिशत तक मतदान कम हुआ। इसी तरह से भोपाल में 4.4 प्रतिशत और ग्वालियर में 9.41 प्रतिशत कम मतदान हुआ है। कुल 133 निकायों के चुनावों में 61 फीसदी तक वोटिंग हुई। यह हाल सूबे में तब रहे हैं, जबकि भाजपा व कांग्रेस ने अपने विधायकों और सांसदों को सक्रिय रहने को कहा था। इसके उलट कई नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में जमकर मतदान हुआ है। कम मतदान होने की वजह से अगर चुनावी परिणाम विपरीत आए तो उन क्षेत्रों के विधायक व सांसद निशाने पर आ सकते हैं। अगर भोपाल की बात की जाए तो इस बार मतदान प्रतिशत 51.60 रहा। कम मतदान होने की वजह से माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस-भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होगी। अब तक का ट्रेंड बताता है कि महापौर के दोनों चुनाव जब कांग्रेस ने जीते तब वोटिंग का प्रतिशत 50 से कम था। इसमें एक बार प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और एक बार भाजपा की। विभा पटेल जब चुनी गई तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। और सुनील सूद जब चुने गए तब भाजपा के शैलेंद्र प्रधान बागी होकर मैदान में उतर गए थे। बीते निगम चुनाव में भोपाल में 56 प्रतिशत मतदान हुआ था और भाजपा के आलोक शर्मा महापौर चुने गए थे और परिषद में भी भाजपा को बहुमत मिला था। दरअसल भाजपा की सबसे अधिक टेंशन मतदान को लेकर बढ़ी हुई है। इसकी वजह है भोपाल शहर के अंदर जो पांच विधानसभा की सीटें आती हैं उनमें से तीन पर इस बार कांग्रेस के विधायक हैं। इन तीनों सीटों में से दो मुस्लिम बाहुल्य सीटें भी शामिल हैं। इसके अलावा भाजपा के कब्जे वाली नरेला सीट पर भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। सबसे ज्यादा 57.34 फीसदी वोट कांग्रेस के विधायक वाली उत्तर विधानसभा में पड़े। इस सीट पर राजधानी में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता हैं, जो पारंपरिक रुप से कांग्रेस के माने जाते हैं , जबकि सबसे कम 47.20 फीसदी वोट भाजपा के विधायक वाली गोविंदपुरा सीट पर ं पड़े। यह सीट भाजपा की पंरपरागत सीट है। मध्य विधानसभा के वार्डों में 47.75 फीसदी वोटिंग हुई। मतदान का कम प्रतिशत होने पर उम्मीदवार अपने अपने हिसाब से गणित लगा रहे है। कुछ का अनुमान है कि कम प्रतिशत होने से उन्हें फायदा मिलेगा, तो कुछ कह रहे है कि इससे नुकसान होने की उम्मीद बढ़ गई है।
कम मतदान की यह वजह
इस बार वोटिंग प्रतिशत गिरने के पीछे मतदाता पर्चियों में गड़बड़ी बड़ी वजह बताई जा रही है। पर्ची नहीं मिलने और पोलिंग बूथ बदलने की वजह से कइयों को घर लौटना पड़ा। पोलिंग बूथ बदलने से मतदाता परेशान होते रहे। कोलार के गेहूंखेड़ा इलाके के वोटर मनोज का केंद्र लालघाटी इलाके में पहुंच गया। हालात यह बने की वार्ड 83 के कई रहवासियों को वोट डालने के लिए वार्ड 81 और 82 का मतदान केंद्र मिला। मतदाता समीर केरकेट्टा ने बताया, उन्होंने अपना वोट वार्ड 83 में डाला, लेकिन माता-पिता का वार्ड चेंज हो गया। ऐसे ही कई और मतदाता रहे। नबीबाग और गोविंदपुरा में भी ऐसा ही हुआ। इस कारण मतदाताओं को परेशानी हो रही है।
इंदौर में भी बड़ी धडकनें
सूबे के सबसे बड़े शहर इंदौर में भी विधानसभावार आए वोटिंग के आंकड़ों ने सत्ताधारी दल बीजेपी की धड़कनें बढ़ा दी हैं। बीते चुनाव फरवरी 2015 में हुई 62.35 फीसदी वोटिंग से भी कम प्रतिशत रहा और 60.88 फीसदी वोटिंग प्रारंभिक तौर पर दर्ज की गई। यहां पर सबसे बड़ी चिंता की वजह है शहर की 6 विधानसभाओं में से सबसे ज्यादा मतदान कांग्रेस प्रत्याशी और विधायक संजय शुक्ला की विधानसभा में होना। इसके उलट बीजेपी को हमेशा 70 हजार की लीड दिलाने वाली विधानसभा दो में इस बार औसत से भी कम केवल 58.31 फीसदी मतदान हुआ है। लगभग यही हाल विधानसभा चार का रहा है। उधर कांग्रेस की मजबूत माने जाने वाली सीट राउ में मतदान अच्छा हुआ है। यहां से कांग्रेस के विधायक जीतू पटवारी हैं। बीता चुनाव यहां पर बीजेपी की मालिनी गौड़ 2.46 लाख वोट से कांग्रेस की अर्चना जायसवाल से जीती थीं, उस समय वोटिंग प्रतिशत 62.35 फीसदी रहा था। इस सीट पर सबसे कम मतों से जीत का रिकार्ड कृष्ण मुरारी मोघे के नाम पर है वे पकंज सिंघवी से महज 3292 वोट से जीते थे, उस समय मतदान 59.41 फीसदी हुआ था।
भोपाल में यह रही स्थिति
1999 में कांग्रेस की सरकार के समय प्रत्यक्ष प्रणाली से पहला महापौर का चुनाव भोपाल में हुआ था, तब 36.54 प्रतिशत मतदान हुआ था। उस चुनाव में कांग्रेस की विभा पटेल ने भाजपा की राजो मालवीय को लगभग 7500 वोट से पराजित किया था। इसके बाद 2004 में हुए चुनाव में 48.45 प्रतिशत मतदान हुआ था और उसमें भी कांग्रेस के सुनील सूद ने जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में भाजपा के पूर्व विधायक शैलेंद्र प्रधान ने बागी होकर करीब 20 हजार वोट पाए थे। इसके बाद 2009-10 में हुए चुनाव में भाजपा की कृष्णा गौर महापौर बनीं थीं। तब 53 फीसदी मतदान हुआ था। निगम का पिछला चुनाव 2015 में हुआ था , जिसमें भाजपा के आलोक शर्मा जीते थे, तब मतदान 56 फीसदी हुआ था और नगर निगम में कोलार इलाके को भी शामिल कर लिया गया था।
कांग्रेस-बीजेपी में सीधी टक्कर
वोटर मेयर के 8 और 85 पार्षदों के 380 कैंडिडेट्स की किस्मत का फैसला कर दिया है। मेयर की कुर्सी को लेकर कांग्रेस और बीजेपी में सीधी टक्कर रही, जबकि पार्षदों में आप के 59 कैंडिडेट्स भी मैदान में हैं। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी, सपाक्स, सपा, जदयू समेत कुल 12 पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में है।
इन दो वार्डों पर नजर
सबसे हाई प्रोफाइल वार्ड-24 पर सबकी निगाहें हैं। यहां पर सीएम शिवराज सिंह चौहान का बंगला है। इस वार्ड से पिछली दो बार से कांग्रेस पार्षद जीतता आ रहा है। वहीं, सबसे वीआईपी वार्ड-46 पर भी नजर टिकी हुई है। इसके चार इमली इलाके में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह समेत कई मंत्रियों और आईएएस-आईपीएस अफसर रहते हैं। इनके अलावा वार्ड-31 पर भी नजर रहेगी।