पूर्व में कांग्रेस का गढ़ रह चुकी हैं यह लोकसभा की सीटें
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। इस बार मध्यप्रदेश में विधानसभा के साथ ही लोकसभा की कुछ सीटों पर अभी से कांग्रेस ने फोकस करना शुरु कर दिया है। यह वे सीटें हैं जो आरक्षित श्रेणी में आती हैं। दरअसल प्रदेश में दलित और आदिवासी समुदाय कांग्रेस का पंरपरागत वोटबैंक रहा है। बीते कुछ सालों से इस वर्ग के मतदाताओं का कांग्रेस से मोहभंग होता चला गया जिससे उनके लिए आरक्षित सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि अब कांग्रेस ने इन सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए अपनी रणनीति बनानी शुरु कर दी है। इसके लिए पार्टी ने प्रदेश की सात सीटों का चयन किया है। इनमें दलित और आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को शामिल किया गया है।
इन सीटों के सहारे ही प्रदेश में कांग्रेस अपना दम दिखाना चाहती है। इसी रणनीति के तहत ही पार्टी ने अपनी कमान दलित वर्ग के मल्लिकार्जुन खडग़े को सौंपी है। उन्हें अध्यक्ष बनाने के बाद अब पार्टी ने दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षित 50 लोकसभा सीटों पर फोकस करना शुरु कर दिया है। इसके लिए मप्र की जिन सात सीटों को चिह्नित किया गया है उनमें भिंड, टीकमगढ़, देवास, उज्जैन, शहडोल, मंडला, रतलाम, खरगोन व बैतूल लोकसभा शामिल हैं। इनमें से एससी के लिए आरक्षित भिंड, टीकमगढ़ और एसटी के लिए आरक्षित खरगोन व बैतूल लोकसभा सीट भाजपा के मजबूत गढ़ के रुप में सामने आ चुकी हैं। इन सीटों पर भाजपा बीते कई चुनाव से लगातार जीत दर्ज करती आ रही है। इसी तरह से एससी के लिए आरक्षित देवास, उज्जैन और एसटी की शहडोल, मांडला व रतलाम सीट पर 2014 तथा 2019 में भी भाजपा ने लगातार जीत दर्ज की है। इन सीटों पर पार्टी द्वारा हाल ही में आरक्षित वर्ग से इतर जिलाध्यक्षों नियुक्ति की गई है।
सौंपी जा रही है जिम्मेदारी
कांग्रेस ने इसके लिए राजस्थान व छत्तीसगढ़ में इस तरह की सीटें चिन्हित कर उनके लिए प्रभारी भी नियुक्त कर दिए है, लेकिन मप्र में अभी इसका जिम्मा किसी को नहीं सौंपा गया है। माना जा रहा है कि मप्र में प्रदेश पदाधिकारियों की घोषणा होने का इंतजार किया जा रहा था। हाल ही में इनकी घोषणा होने से अब जल्द ही प्रदेश में भी प्रभारी बनाए जा सकते हैं। कांग्रेस ने गंगानगर में मनोज सहारण, बीकानेर में संजीव कुमार सहारण, भरतपुर में पुष्पेंद्र मीणा, करौली-धौलपुर में नटवर सिंह, दौसा में सुनील झाझरिया, उदयपुर में डॉ. विजय कुमार, बांसवाड़ा में मोहम्मद अय्यूब को जिम्मेदारी दी है। इसी तरह से सरगुजा के लिए अनुपम फिलीप, रायगढ में अमित शर्मा, कांकेर में नरेश ठाकुर और जांजगीर-चांपा में चौलेश्वर चन्द्राकर को जिम्मेदारी दी है।
कांग्रेस ने लगातार खोई अपनी जमीन
वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव से ही कांग्रेस का अपने परंपरागत वोटों को खोना शुरू हो गया था। वोटों की फिसलन हर चुनाव के बाद बढ़ती चली गई। इसका नतीजा यह हुआ कि कई आरक्षित सीटों पर भाजपा ने गहरी पैठ जमा ली। यही वजह है, करीब डेढ़ दर्जन आरक्षित सीटों पर कांग्रेस को बीते 4 चुनावों से जीत नहीं मिली है। अब पार्टी ने नए सिरे से रणनीति तैयार की है।
14 चुनाव, 10 भाजपा, 3 कांग्रेस जीती
भिंड सीट पर 1962 से 2014 तक 14 बार चुनाव हुआ। पहला चुनाव कांग्रेस के पूरनप्रसाद जीते थे। इसके बाद दो चुनाव 1967 में यशवंत सिंह कुशवाह, 1971 में ग्वालियर रियासत की राजमाता विजयाराजे सिंधिया जीती। 1977 का चुनाव बीएलडी से रघुवीर सिंह मछंड जीते। बीएलडी से यह सीट 1980 और 1984 के चुनाव में कांग्रेस के पास चली गई। कांग्रेस से कालीचरण शर्मा और कृष्ण सिंह जूदेव जीतकर संसद पहुंचे। कृष्ण सिंह जूदेव के बाद से भिंड सीट पर कोई कांग्रेसी जीत नहीं पाया। 1989 में हुए चुनाव में यह सीट भाजपा के नरसिंह राव दीक्षित ने ऐसी छीनी कि अब तक भाजपा के पास है। इसी तरह से 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आयी टीकमगढ़ सीट पर अब तक कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है। लगभग यही हाल कुछ अन्य सीटों का भी है। किस प्रदेश से कितनी सीटें
कांग्रेस ने इसके लिए राजस्थान की 7, मध्यप्रदेश की 10 और छत्तीसगढ़ की 4 सीटें तय की हैं। कांग्रेस यहां लीडरशिप डेवलपमेंट मिशन (एलडीएम) शुरू करने जा रही है। इसके लिए नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है। दरअसल, दलित, आदिवासी, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाता परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में दलित और आदिवासी वर्ग के मतदाता भी कांग्रेस से दूर हो गए। इसकी वजह से आरक्षित सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी अब नई रणनीति के साथ इन सीटों पर वापसी की कोशिश में जुटी हुई है। खरगे ने 50 आरक्षित सीटों पर लीडर तैयार करने का कार्यक्रम शुरू करने की मंजूरी भी प्रदान कर दी है।