भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस की प्रदेश में रही कमलनाथ सरकार के कई कदम और दांव भाजपा पर भारी पड़ रहे हैं। इनमें मामला चाहे शुद्व के लिए युद्ध का अभियान हो या फिर भू माफिया के खिलाफ शुरू की ताबड़तोड़ कार्रवाई। इसके अलावा तत्कालीन नाथ सरकार द्वारा मप्र में पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में की गई वृद्धि का फैसला तो सबसे अधिक भारी पड़ रहा है। यह मामला ऐसा हो चुका है कि सरकार को न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते।
इस वर्ग की जनसंख्या को देखते हुए भाजपा अब तक पूरी तरह से उसके साथ खड़ी हुई दिख रही है, लेकिन अब उसके सामने सवर्ण अंसतोष का संकट खड़ा होता दिख रहा है। इस वजह से अब प्रदेश में भाजपा को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
वैसे भी इस समय मध्यमवर्गीय लोग हैरान परेशान होने की वजह से सरकार से नाराज चल रहा है। भाजपा के सवर्ण नेताओं को इस मामले के बाद से अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। यह बात अलग है कि भाजपा के पास पिछड़ा वर्ग के कई बेहद दिग्गज नेता मौजूद हैं, लेकिन इसके बाद भी उसके द्वारा लगातार इस वर्ग को साधने की कवायद जारी है। इसकी वजह से अब पार्टी के सवर्ण नेताओं में छटपटाहट दिखना शुरू हो गई है। इसकी वजह से अब प्रदेश भाजपा को एक तरफ ओबीसी आरक्षण के मामले में जहां कांग्रेस को काउंटर करना पड़ रहा है, तो वहीं अब पार्टी में बढ़ रहे असंतोष को थामने की भी चुनौती से भी दो चार होना पड़ रहा है। फिलहाल ओबीसी आरक्षण का ऐसा मामला है जिसमें इस वर्ग को कांग्रेस व भाजपा दोनों का ही साथ मिल रहा है। इसके लिए दोनों ही दलों द्वारा बड़े- बड़े वकीलों को अदालत में खड़ा किया जा रहा है।
पहले रह चुका है सवर्ण दबदबा
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सियासत लंबे समय तक सवर्ण वर्ग का दबदबा रहा है। इस वर्ग के ठाकुर और ब्राह्मणों का नेतृत्व प्रदेश में रहा है।
कांग्रेस के अर्जुन सिंह, विद्याचरण और श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेताओं के सामने भाजपा के सुंदरलाल पटवा और कैलाश जोशी जैसे नेता रहे हैं। कांग्रेस की सत्ता के समय प्रदेश में ओबीसी वर्ग की उपेक्षा की गई, परिणामस्वरुप 2003 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने भाजपा ने ओबीसी वर्ग से आने वाली उमा भारती को आगे किया तो प्रदेश की सत्ता भाजपा के हाथों में आ गई।
ओबीसी आरक्षण पर रोक जारी
मप्र एमपी हाईकोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने पर स्थगन आदेश को बरकरार रखा है। अगली सुनवाई 20 सितंबर को होगी। राज्य सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा स्थगन आदेश हटाने या अंतरिम आदेश देने की मांग को चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक ने खारिज कर दिया। उन्होंने कहा- ढाई साल से मामला चल रहा है। अब प्रकरण आखिरी दौर में है। इतना आगे बढ़ने के बाद कोर्ट स्टे हटाने या अंतरिम आदेश जारी नहीं करेगी। बल्कि जब फायनल हियरिंग पूरी होगी उसके बाद ही मामले पर सीधे अंतिम फैसला सुनाया जाएगा। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण मामले पर फायनल हियरिंग के लिए 20 सितंबर की तारीख तय की है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 19 मार्च 2019 को एमपी में 14 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने पर रोक लगाई थी।
चौहान का नारा और सपाक्स से मुसीबत
आरक्षण को लेकर कौन है माई का लाल वाला बयान और सपाक्स द्वारा किया जाने वाला विरोध भाजपा के लिए मुश्किल बनता जा रहा है। विधानसभा चुनाव 2018 के समय माई के लाल बाला बयान भाजपा को भारी पड़ चुका है। अब ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के मामले में सपाक्स ने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया है। इस मामले में राजनीतिक तौर पर सामान्य वर्ग को लेकर गठित की गई सपाक्स पार्टी ने तय किया है कि प्रदेश की 4 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में वह अपने उम्मीदवार खड़ा कर जातिगत आरक्षण को मुद्दा बनाएगी।
भाजपा में सीएम से लेकर पीएम तक ओबीसी वर्ग से
भाजपा ऐसा दल है जिसकी मप्र में सत्रह सालों से सरकार है। इन सरकारों की कमान पिछड़ा वर्ग के नेताओं में ही बनी हुई है। इनमें मौजूदा मुख्यमंत्री से लेकर उमा भरती और बाबूलाल गौर तक शामिल हैं। यही नहीं देश के मुखिया नरेन्द्र मोदी भी इसी वर्ग से ही आते हैं। इसके अलावा उनकी कैबिनेट हो या फिर शिव सरकार की दोनों में ही करीब-करीब एक तिहाई मंत्री भी इसी वर्ग से आते हैं। मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर ओबीसी की आबादी पचास फीसदी से अधिक है। इसकी वजह से दोनों ही दल इस वर्ग को लेकर कोई खतरा मोल लेने की स्थिति में नही हैं। प्रदेश में भाजपा द्वारा इस वर्ग को लगातार महत्व देने की वजह से ही भाजपा को अब तक चाहे लोकसभा हो या फिर विधानसभा का चुनाव सभी में बढ़त मिलती रही है। इसके उलट कांग्रेस के पास इस वर्ग के बड़े चेहरों की कमी बनी हुई है। यही वजह है कि कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता में वापसी करने के बाद मार्च, 2020 में ओबीसी को आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसद करने का फैसला लेकर भाजपा के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी। अब इस मामले में श्रेय लेने के लिए ही दोनों दलों में घमासान मचा हुआ है।
कांग्रेस की ओर से इंद्रा जयसिंह व अभिषेक मनु सिंधवी रखेगें पक्ष
मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को लेकर चल रही सियासत का मामला अब जबलपुर हाईकोर्ट में है। इस मामले में जहां शिवराज सरकार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को खड़ा किया है, जो वहीं कांग्रेस की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह व अभिषेक मनु सिंघवी को पैरवी के लिए खड़ा करने की तैयारी कर ली गई है। इसके लिए हाल ही में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ दिल्ली में दोनों वरिष्ठ वकीलों से मुलाकात कर चुके हैं। फिलहाल, प्रदेश के दोनों ही दल इस मामले में जमकर राजनीति कर रहे हैं।
02/09/2021
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