एक दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ने से पीछे नहीं हैं कांग्रेसी

कांग्रेसी
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  • विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी नहीं ले रहे सबक

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जिन खामियों की वजह से विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेताओं को करारी हार का सामना करना पड़ा है, उनमें सुधार करने की जगह हारे हुए कांग्रेसी नेता एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। हद तो यह है कि कुछ नेता तो अपनी हार की वजह दूसरे बड़े नेताओं को बताते हुए दिल्ली तक शिकायतें कर रहे हैं। हाल ही में विधानसभा चुनाव हारने वाले भोपाल के एक कांग्रेसी नेता ने इसी तरह की कुछ शिकायत की है।
इसमें कहा गया है कि उन्हें जिले के एक बड़े नेताजी ने चुनाव हरवाया है, नहीं तो वे कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारते। जबकि वास्तविकता कुछ अलग है। असल में चुनाव हारने वाले नेताजी से उनके समाज के साथ ही क्षेत्र के लोग भी नाराज थे। नाराजगी की वजह नेता जी का स्वभाव परिवर्तित तो होना ही है, साथ ही उनके परिजनों की कार्यशैली ने भी आग में घी का काम किया है।  दरअसल नेताजी के परिजनों द्वारा कुछ लोगों को तरह-तरह से परेशान किया जाता रहा है। दरअसल उनके क्षेत्र के लोगों का कहना है कि उनके नेता जी अब बड़े नेता बन गए हैं, उन्हें क्षेत्र से अब कोई मतलब नहीं रहा। यही वजह है कि वे चुनाव हार गए हैं। अब तो लोग कहने लगे हैं कि अगर नेताजी के पैर अब भी जमीन पर नहीं रहेंगे तो उन्हें किसी भी चुनाव में जीत नहीं मिल सकेगी। यही वजह है कि इस वास्तविकता का पता चलते ही नेता जी अब किसी भी तरह से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनने से बचना चाह रहे हैं। यह बात अलग है कि उन पर लोकसभा चुनाव लड़ने का पार्टी का भारी दबाव है। यही वजह है कि अब चुनाव लडऩे से बचने के लिए नेताजी बीच का रास्ता निकाल रहे हैं कि उनके परिवार के किसी व्यक्ति को टिकट दे दिया जाए। ताकि उन्हें एक और हार का सामना न करना पड़े। इसी तरह से एक नेता जी अपने रिश्तेदार को चुनाव जिताने के प्रयासों में खुद ही हार गए। यह बात अलग है कि उन्होंने अपनी हकीकत को स्वीकार कर लिया है और वे अब पार्टी के निर्देशों का पालन कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि अब पार्टी उन्हें लोकसभा चुनाव प्रत्याशी बनाने जा रही है। यह नेता जी भी चुनाव लड़ने के लिए उत्साहित बताए जा रहे हैं। अब उनका फोकस इस बात पर है कि बसपा उनके खिलाफ किसी सजातीय और क्षेत्र का न हो। वहीं विधानसभा चुनाव हारने कांग्रेस पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता प्रत्याशी बनाए जाने और हार की संभावना को देखते हुए अभी से कहने लगे हैं कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। यहीं नहीं वे  लोकसभा टिकट के लिए पार्टी में अपने धुर विरोधी का खुलकर सपोर्ट करते देखे जा सकते हैं। यह बात अलग है कि उनके विरोधी युवा नेता जानते हैं कि राममय माहौल में इस बार लोकसभा चुनाव जीतना बेहद मुश्किल है। वे जानते हैं कि चुनाव में उतरे तो सिर्फ आर्थिक नुकसान ही होगा। दरअसल पार्टी विधानसभा चुनाव में हारने वाले अपने सभी दिग्गज नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है। इसके उलट कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज नेता इस समय के माहौल को देखते हुए लोकसभा चुनाव से दूरी बनाना चाहते हैं। यही वजह है कि इस बार अभी से वरिष्ठ नेता खुद की जगह दूसरों के नाम प्रत्याशी के लिए सुझा रहे हैं। अब इस मामले में सभी की निगाहें पार्टी हाईकमान पर लगी हुई हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि भले ही पार्टी ने प्रदेश में नए चेहरे को कमान  दे दी हो , लेकिन पार्टी नेताओं में अब भी कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है। दरअसल कांग्रेस हाईकमान या तो नेताओं की वास्तविकता समझना नहीं चाहता है या फिर उसकी समझ में आता नहीं हैं। यही वजह है कि केवल शिकायतों को ही सही मान लेता है। अगर यही स्थिति रही तो फिर प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान होना तय है।
हरल्ले नेताओं को ही दिया जाता है महत्व…
कांग्रेस में दूसरा अहम सवाल बना हुआ है कि जो नेता खुद चुनाव नहीं जीत पाते हैं, उन्हें पार्टी संगठन से लेकर प्रत्याशी जिताने तक का जिम्मा सौंप देता है। यही नहीं हारने वाले कई नेताओं को तो लगातार प्रत्याशी तक बनाया जाता है। इसकी वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं में न केवल निराशा बढ़ती जाती है, बल्कि कार्यकर्ताओं को भी मौका न मिलने से वे सक्रियता दिखाने में भी रुचि नहीं लेते हैं। हालांकि अब प्रदेश को नया अध्यक्ष मिलने के बाद माना जा रहा है कि संगठन में इस बार कोई बड़ा परिवर्तन हो सकता है।

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