- तोमर, पटेल, विजयवर्गीय सहित सभी कद्दावर नेताओं की सीट पर कांग्रेस बोलेगी हमला
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सात सांसदों सहित कई कद्दावर नेताओं को टिकट देकर अपनी जीत सुनिश्चित करने का संदेश दिया है। वहीं कांग्रेस ने चुनावों में अहम भूमिका निभाने वाले इन दिग्गज भाजपाईयों को उनके ही गढ़ में घेरे रखने की रणनीति बनाई है। इसके लिए कांग्रेस ने भाजपा के दिग्गज नेताओं की विधानसभा सीट पर आक्रामक प्रचार की रणनीति बनाई है। गौरतलब है कि भाजपा ने हर हाल में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कई दिग्गजों को मैदान में उतारा है। इसके पीछे पार्टी की सोच यह है कि वरिष्ठ नेता अपने विधानसभा क्षेत्र के अलावा जिले की अन्य सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाएंगे, लेकिन भाजपा के कई दिग्गज नेता कठिन मुकाबले में फंस गए हैं। जिससे के अपने क्षेत्र से बाहर निकल पाएंगे, इसकी संभावना कम है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, व प्रहलाद पटेल तथा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को छोडक़र अन्य वरिष्ठ नेता कठिन मुकाबले में फंसे हैं। उधर कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के दिग्गजों को उनके विधानसभा क्षेत्र में रोकने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इसी नीति के तहत पार्टी ने टिकट भी बांटे हैं।
दिग्गजों के सामने बड़ी चुनौती
गौरतलब है कि भाजपा ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को छोडक़र प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं को चुनाव मैदान में उतार दिया है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खिलाफ कांग्रेस ने वर्तमान विधायक रविंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा है। रविंद्र तोमर भाजपा के रथ को कितना रोक पाएंगे, यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन कांग्रेस के कई बड़े नेता मुरैना जिले की दिमनी क्षेत्र में डेरा डालेंगे। ताकि तोमर अपने क्षेत्र से बाहर निकलकर अन्य क्षेत्रों में प्रचार नहीं कर सकें। इसी तरह प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर में घेरने के लिए जातीय समीकरण को दृष्टिगत रखकर कांग्रेस नेताओं की ड्यूटी लगाई जा रही है। कैलाश विजयवर्गीय की विधानसभा इंदौर एक पर भी कांग्रेस पार्टी की नजर है। इस बात पर विचार किया जा रहा है कि किस तरह विजयवर्गीय को पूरे मालवा-निमाड़ में घूमने से रोका जाए। चर्चा है कि इन सीटों पर जल्द ही कांग्रेस पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता पहुंचेंगे। तोमर, विजयवर्गीय व पटेल के अलावा विधानसभा का चुनाव लड़ रहे सांसद खुद कठिन मुकाबले में उलझे हुए हैं। सीधी सांसद रीति पाठक के खिलाफ वर्तमान विधायक केदारनाथ शुक्ला ने बिगुल फूंक दिया है। शुक्ला निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला जिले की निवास विधानसभा क्षेत्र में कठिन मुकाबले में फंसे हैं। 2018 में फग्गन सिंह के छोटे भाई राम प्यारे कुलस्ते मंडला जिले की निवास विधानसभा सीट से 28 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार गए थे।कुलस्ते लगभग 30 साल बाद फिर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। जबलपुर सांसद अध्यक्ष राकेश सिंह इस बार जबलपुर पश्चिम से पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
बताया जाता है कि यह चुनाव उनके राजनैतिक जीवन का सबसे कठिन चुनाव है। यह सीट पिछले दो बार से कांग्रेस के खते में जा रही है। यहां से पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोत तीसरी बार मैदान में हैं। भाजपा ने गाडरवारा से सांसद राव उदय प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है। उनका लोकसभा क्षेत्र होशंगाबाद में जरूर गाडरवारा विधानसभा क्षेत्र में आता है, लेकिन इस क्षेत्र से विधानसभा चुनाव वे पहली बार लड़ रहे हैं। इसके पूर्व वे कांग्रेस पार्टी से तेंदूखेड़ा से विधायक थे। गाडरवारा का जातीय समीकरण भी उनके पक्ष में नहीं है। वहां कौरव व ब्राह्राण जाति के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। इसी कारण कांग्रेस व भाजपा इसी समाज के किसी व्यक्ति को टिकट देते रहे हैं। सिंह को भाजपा से टिकट दिए जाने से नाराज कौरव समाज के बड़े भाजपा नेता गौतम पटेल ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। ऐसी स्थिति में राव उदय प्रताप सिंह का चुनाव काफी संघर्षपूर्ण हो गया है। सतना सांसद गणेश सिंह भी सतना सीट पर कड़े मुकाबले में फंसे है। पहली बार सतना में भाजपा के साथ कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ कुशवाहा पिछड़ा वर्ग से हैं। ऐसे में सवर्ण मतदाताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है।भाजपा नेता शिवा चतुर्वेदी द्वारा बसपा से चुनाव लडऩे के कारण मुकाबला काफी रोचक हो गया है। अब देखना यह है कि कांग्रेस की इस रणनीति में दिग्गज नेता फंसकर अपने क्षेत्र में ही सीमित रहते हैं या प्रदेशभर में प्रचार के लिए निकलेंगे।