हरल्लों पर ही दांव लगाएगी कांग्रेस

  • लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू …
  • विनोद उपाध्याय
 कांग्रेस

मप्र विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखने के बाद कांग्रेस ने अब लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए जहां कांग्रेस आलाकमान ने संगठन में बड़ा बदलाव कर राज्यों के प्रभारियों में बड़ा बदलाव किया गया है, वहीं मप्र में कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अनुषांगिक संगठनों की समीक्षा शुरू कर दी है। लेकिन पार्टी के सामने सबसे बड़ी समस्या जिताऊ उम्मीदवार की है। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार मप्र कांग्रेस में फिलहाल ऐसे चेहरों की कमी हैं जो लोकसभा चुनाव लड़ने का कद रखते हैं। ऐसे में कांग्रेस पिछला लोकसभा चुनाव हारे या फिर इस विधानसभा चुनाव में हारे दिग्गज नेताओं पर दांव लगा सकती है।
मप्र में सत्ता के सेमीफाइनल में भले ही भाजपा ने सुनामी के साथ जीत हासिल की हो, लेकिन लोकसभा के फाइनल मैच में कुछ सीट ऐसी भी हैं, जो भाजपा के लिए चुनौती साबित हो सकती है। बीते विधानसभा चुनावों में छह लोकसभा सीटें पर कांग्रेस का वोटिंग परसेंटेज बढ़ा है, तो दूसरी ओर भाजपा इस बार प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों पर कमल खिलाने का दावा कर रही है। बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को मप्र की कुल 210 विधानसभाओं से पक्ष में वोट मिले। इस बार के विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि मुरैना लोकसभा सीट पर भाजपा को खासी मशक्कत करनी होगी। इसको देखते हुए कांग्रेस ने अभी से चुनावी तैयारी शुरू कर दी है।
कई सीटों पर उम्मीदवारों का टोटा
मप्र में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के पास कुछ सीटों पर उम्मीदवारों का टोटा है। सागर, दमोह, खजुराहो, भिंड, रीवा, सतना, शहडोल आदि सीटों पर  कांग्रेस पार्टी या तो विधानसभा चुनाव हारे या विधानसभा चुनाव जीते कुछ उम्मीदवारों पर दांव लगा सकती है। विधानसभा चुनाव हारे दिग्गज कांग्रेस नेताओं में डॉ. गोविन्द सिंह को मुरैना, सीडब्ल्यूसी सदस्य कमलेश्वर पटेल को सीधी, तरूण भनोत को जबलपुर, संजय शर्मा को होशंगाबाद, लक्ष्मण सिंह को राजगढ़, आलोक चतुर्वेदी को खजुराहो, नीलांशु चतुर्वेदी को सतना से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। कांग्रेस कठिन चुनौतियों को देखते हुए अन्य दलों के कुछ वरिष्ठ नेताओं को पार्टी में शामिल कर चुनाव मैदान में उतार सकती है। प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस हाईकमान ने जिन नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है, उन्हें फ्री हैंड काम करने का अवसर दिया जाए। ताकि संगठन को भी मजबूत किया जा सके। देखना है कि लोकसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस की नई टीम कितना जोर मार पाती है। उधर, नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह 26 दिसंबर को भोपाल में प्रदेश पदाधिकारियों, जिला कांग्रेस अध्यक्ष व प्रभारियों के साथ बैठक करेंगे। इसके बाद पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जनवरी में भोपाल आएंगे। प्रदेश के 29 लोकसभा क्षेत्रों में से केवल एक छिंदवाड़ा में ही कांग्रेस 2019 में जीती थी। पार्टी नेताओं का मानना है कि भले ही विधानसभा चुनाव में हार मिली हो पर दस लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां कांग्रेस ने भाजपा पर बढ़त बनाई है।
नई टीम के सामने चुनौतियों का पहाड़
मप्र में आलाकमान ने नई टीम को कमान तो सौंप दी है, लेकिन उसके सामने चुनौतियों का पहाड़ है। सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था ही है। जो उम्मीदवार हैं भी उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि लोकसभा चुनाव लड़ने का खर्च नहीं उठा सकते। कांग्रेस पार्टी भी लोकसभा उम्मीदवारों को ज्यादा आर्थिक मदद करने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस पार्टी की भी अपनी सीमाएं हैं, उन्हें पूरे देश में चुनाव लड़ना है। कमलनाथ सरकार के पन्द्रह माह का समय यदि छोड़ दिया जाए तो पिछले बीस साल से कांग्रेस पार्टी मध्यप्रदेश में सत्ता से बाहर है। इस कारण नेता और कार्यकर्ता भी आर्थिक रूप से टूट गए हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की नई टीम के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना और उन्हें लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगाना है। कांग्रेस पार्टी जिस राज्य में तीन बार से अधिक बार हारी वहां धीरे धीरे समाप्त हो गई। गुजरात उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, उड़ीसा, असम आदि राज्य इसके उदाहरण है। मध्यप्रदेश में थोड़ी सी स्थिति अलग इस कारण है कि यहां अभी कोई तीसरा दल नहीं है। लेकिन उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे जिलों में बसपा व सपा के कारण कांग्रेस पार्टी को काफी नुकसान हो रहा है। चुनाव से पहले यदि कांग्रेस पार्टी छोटे-छोटे दलों से समझौता कर लेती तो शायद यह स्थिति नहीं बनती जो हालात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हुई है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी छोटे-छोटे दलों से समझौता न करने का मामला उठाया था। शायद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी इंडिया गठबंधन में चुनाव लड़े।
बदलाव क्या असर दिखाएगा
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने मप्र में बड़े बदलाव करते हुए युवाओं के हाथ कमान सौंप दी है। कमलनाथ के स्थान पर पिछड़े वर्ग के युवा नेता जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया है। वही विधानसभा की जिम्मेदारी आदिवासी नेता उमंग सिंघार को सौंपी गई है। उप नेता प्रतिपक्ष युवा ब्राह्मण नेता दूसरी बार के विधायक हेमंत कटारे को बनाया गया है। यही नहीं प्रभारी महासचिव रणदीप सुरजेवाला के स्थान पर राजस्थान के भंवर जितेन्द्र सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस तरह कांग्रेस पार्टी ने पिछड़ा, आदिवासी, ब्राह्मण तथा राजपूत को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपकर जातीय समीकरण साधने का प्रयास किया है। आगामी लोकसभा चुनाव में यह जातीय समीकरण कितना सफल होगा यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन बड़ी बात यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी के पास उम्मीदवारों का टोटा है।

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