संगठन में भी जाति का कार्ड खेलेगी कांग्रेस!

  • जिले की जातियों से तय होंगे जिलाध्यक्ष
  • विनोद उपाध्याय
कांग्रेस

कांग्रेस मप्र में भी संगठन में बिहार का फार्मूला लागू करने की तैयारी की जा रही है। इससे सामन्य वर्ग को किनारे कर जिलों में जातियों की बहुलता के हिसाब से जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां की जाएंगी। इसके संकेत राहुल गांधी द्वारा गुजरात में दिए गए बयानों से साफ मिल रहे हैं। इसके तहत जिन जिलों में दलित, आदिवासी, ओबीसी, माइनॉरिटी की संख्या अधिक हैं उन जिलों में इन्ही जातियों के जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां की जाएंगी। दो दिन पहले पटना में पलायन रोको-रोजगार दो रैली में राहुल गांधी के बयान ने संगठन को इसी दिशा में ले जाने का संकेत दिया है। राहुल के इस भाषण से मध्यप्रदेश में कांग्रेस संगठन में होने वाली नियुक्तियों को लेकर कयास लगाए जाने लगे हैं। राहुल ने कहा- पहले बिहार में हमारे जिला अध्यक्षों की लिस्ट में दो तिहाई अपर कास्ट के लोग थे। अब जिला अध्यक्षों की नई लिस्ट में दो तिहाई ईबीसी, ओबीसी, दलित, माइनॉरिटी के हैं। उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब प्रदेश में नए सिरे से कांग्रेस जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां होनी हैं। उनके इस बयान से साफ है कि मप्र में कांग्रेस जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में दलित, आदिवासी, ओबीसी, महिलाओं और अल्पसंख्यक वर्गों के नेताओं को मौका दिया जाएगा। फिलहाल मप्र में कांग्रेस के 72 संगठनात्मक जिलों में से 34 जिला अध्यक्ष सामान्य वर्ग से हैं। जबकि 6 पद रिक्त हैं। रिक्त पद वाले जिलों में  कटनी, रायसेन, रतलाम ग्रामीण, बैतूल शहर, खंडवा शहर, खंडवा ग्रामीण शामिल हैं। बैतूल में पिछले साल ही शहर और ग्रामीण को अलग किया गया था। रायसेन में तो डेढ़ साल से जिला अध्यक्ष का पद रिक्त बना हुआ है।
आदिवसी बाहुल्य जिलों का हो सकता है अलग फार्मूला
पार्टी सूत्रों का कहना है कि आदिवासी बहुल जिलों में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए अलग फॉर्मूला अपनाया जा सकता है। झाबुआ, अलीराजपुर और बड़वानी जैसे जिलों में जहां सभी विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, वहां सामान्य और ओबीसी वर्ग के नेताओं को कमान देकर राजनीतिक संतुलन बनाया जा सकता है।
अभी इन जिलों में सामान्य वर्ग को कमान
अभी जिन जिलों में सामान्य वर्ग के पास पार्टी की कमान है, उनमें मुरैना ग्रामीण मधुराज सिंह तोमर, मुरैना शहर दीपक शर्मा, श्योपुर अतुल सिंह चौहान, भिंड शहर डॉ राधेश्याम शर्मा, ग्वालियर शहर देवेन्द्र शर्मा, शिवपुरी विजय चौहान, सागर राजकुमार पचौरी, दमोह रतन चंद जैन, रीवा शहर लखन लाल खंडेलवाल, रीवा ग्रामीण राजेन्द्र शर्मा, मऊगंज पद्येश गौतम, सतना ग्रामीण दिलीप मिश्रा, मैहर धर्मेश घई, सीधी ज्ञान प्रताप सिंह, सिंगरौली शहर अरविंद सिंह चंदेल, सिंगरौली ग्रामीण ज्ञानेन्द्र द्विवेदी, शहडोल सुभाष गुप्ता, उमरिया अजय सिंह, जबलपुर शहर सौरभ नाटी शर्मा, जबलपुर ग्रामीण डॉ नीलेश जैन, कटनी ग्रामीण करण सिंह, मंडला राकेश तिवारी, नरसिंहपुर नरेन्द्र राजपूत, सिवनी राजकुमार खुराना, नर्मदापुरम गुड्डन पांडेय, भोपाल शहर प्रवीण सक्सेना, राजगढ़ प्रकाश पुरोहित, देवास शहर मनोज राजानी, रतलाम शहर महेन्द्र कटारिया, शाजापुर नरेश्वर प्रताप सिंह, मंदसौर विपिन जैन, इंदौर शहर सुरजीत चड्डा , झाबुआ प्रकाश रांका और खरगोन मे ंरवि नाइक शामिल हैं।  
टिकट बांटने में होगी जिलाध्यक्षों की भूमिका
अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने साफ कहा है कि हमने और राहुल जी ने एक प्रोसेस किया। ग्राउंड लेवल से इनपुट लिया। हम भविष्य में किसी भी इलेक्शन के कैंडिडेट सिलेक्शन की प्रोसेस में जिलाध्यक्षों को इन्वॉल्व करने की तैयारी में हैं। मप्र की बात करें तो मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद हुए उपचुनावों में कांग्रेस को डेढ़ दर्जन सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। इसकी वजह ये थी कि विधायकों के साथ कांग्रेस के जिला, ब्लॉक और बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हो गए थे। उसके बाद लगातार हुए दलबदल के बाद कांग्रेस का संगठन कमजोर होता चला गया। पार्टी संगठन के भीतर हुए मंथन के बाद तय हुआ कि विधायक या विधानसभा चुनाव लडऩे वाले नेताओं की पसंद के कार्यकर्ता को पद देने के बजाय संगठन में जिला अध्यक्ष की पसंद से नियुक्तियां हों। ऐसे में यदि विधायक या हारे हुए कैंडिडेट पार्टी छोड़ देते हैं तो भी विचारधारा से जुड़े पदाधिकारी और कार्यकर्ता पार्टी छोडक़र नहीं जाएं।

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