कांग्रेस को बरसों से एक अदद आदिवासी नेता की दरकार

आदिवासी नेता
  • आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद चल रहा लगातार रिक्त

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    प्रदेश में दो साल बाद होने वाले आम विधानसभा चुनाव की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस व भाजपा के नेताओं से लेकर रणनीतिकार सभी हर हाल में आदिवासी मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए लगातार प्रयासों में जुट गए हैं , लेकिन इस बीच कांग्रेस को एक ऐसा आदिवासी चेहरा नहीं मिल पा रहा है , जो उसके आदिवासी संगठन की कमान सम्हाल सके। कांग्रेस के सहयोगी के रुप में काम करने वाले अनुसूचित जनजाति विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद बीते तीन सालों से रिक्त चल रहा है। अगर इस समुदाय की बात की जाए तो देश में इनकी जनसंख्या करीब नौ फीसदी यानि की 10 करोड़ से अधिक है। यही वजह है कि कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के अलावा लोकसभा चुनावों में भी इस वर्ग के मतदाताओं का हारजीत में बड़ा रोल रहता है। इसके बाद भी कांग्रेस अलाकमान इस पद को भरने में कोई रुचि नही ले रहा है। अब मप्र की राजनीति के केन्द्र में भी यह वर्ग बना हुआ है। कांग्रेस हो या फिर भाजपा अपना पूरा फोकस आदिवासी वोट बैंक पर किए हुए हैं। आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा अभी से दिन- रात एक कर रही है।
    भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी इस काम में प्रदेश सरकार सरकार और संगठन की मदद कर रहा है। इसी तरह से मप्र कांग्रेस भी आदिवासी वोट बैंक को साधने की रणनीति बनाने में लगी हुई है, लेकिन उसे केंद्रीय नेतृत्व का सहयोग मिलता अब तक नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान अब तक अपने आदिवासी संगठन की कमान तक किसी को नहीं दे पा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह बना हुआ है कि कांग्रेस मप्र के साथ ही देश के अन्य राज्यों में आदिवासी हितों की लड़ाई कैसे लड़ेगी और उन्हें चुनावों में साधने की रणनीति कैसे बनाएगी? इस पद को भरने के लिए बीते दिनों पीसीसी मे हुई पार्टी के अनुसूचित जनजाति विभाग की बैठक में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की मौजूदगी में नेताओं ने तीन सालों से आदिवासी विभाग में राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं होने का मामला उठाया था। पूर्व मंत्री व विधायक ओमकार सिंह मरकाम का कहना था कि भाजपा के केंद्रीय  नेतृत्व की तरह मप्र में भी हमारी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अजजा के चुनाव प्रचार अभियान को लीड करें, लेकिन आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद तीन साल से खाली है। बैठक में अजजा नेताओं ने सर्वसम्मति से तीन दिन में आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति किए जाने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन फिर भी अब तक पार्टी नेतृत्व द्वारा इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया जा सका है। इस वर्ग के कांग्रेस नेताओं ने यहां तक कहा था कि प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस का जनाधार तेजी से कम हो रहा है। इसके उलट भाजपा लगातार  आदिवासी इलाकों में माइक्रो प्लानिंग पर काम कर रही है। अगर कांग्रेस को भी जीत हासिल करनी है तो उसे मिनी माइक्रो प्लानिंग करना पड़ेगी।
    मप्र में बेहद अहम है आदिवासी वोट बैंक
    अगर मप्र के संदर्भ देखा जाए तो प्रदेश की कुल आबादी करीब 7.26 करोड़ है। इनमें से 1.53 करोड़ आबादी आदिवासियों की है, जो कुल आबादी का 21.08 प्रतिशत है। प्रदेश में विधानसभा की 230 में से 47 सीटें इसी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों के अलावा राज्य में विधानसभा की 84 सीटें ऐसी हैं, जिन पर जीत और हार का फैसला आदिवासियों के मतों से तय होता है। इसकी वजह से ही कांग्रेस व भाजपा आदिवासी वोट बैंक को साधने में जुट गई हैं। बीते चुनाव में कांग्रेस को आदिवासियों का साथ मिलने की वजह से ही उसे डेढ़ दशक बाद सत्ता में आने का मौका मिल सका था।
    किस चुनाव में किस दल को मिली कितनी सीटें
    मप्र में 2018 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा को 16 और कांग्रेस को 30 , जबकि एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी। इसके पहले 2013 के चुनाव में इस वर्ग की सीटों में से भाजपा को 31 और कांग्रेस को 15 सीटें मिली थीं। अगर 2008 में परिसीमन के बाद हुए विधानसभा चुनाव में देखें तो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटें 41 से बढ़कर 47 हो गई थीं। तब भाजपा को 29 तो कांग्रेस को 17 सीटों पर और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी।
    फिर भी कांग्रेस में नहीं की जा रही नियुक्ति
    देश के सर्वाधिक आदिवासी बाहुल्य प्रदेशों में शामिल छत्तीसगढ़ में इन दिनों कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस में कई बड़े नेता आदिवासी समुदाय से आते हैं इसके बाद भी किसी नेता को अनुसूचित जनजाति विभाग की कमान नहीं दी जा रही है। कांग्रेस में इस वर्ग के कई आदिवासी सांसद भी हैं। इसके अलावा इस संगठन में अध्यक्ष के अलावा कई अन्य पदों पर भी पार्टी कार्यकतार्ओं की नियुक्ति कर उन्हें एडजस्ट किया जा सकता है।
    देश में नौ फीसदी का हिस्सा
    अनुसूचित जनजाति का देश की आबादी में लगभग 9 फीसदी हिस्सा है। इनके लिए लोकसभा की 41 सीटें और देश की 3961 विधानसभा सीटों में से 527 सीटें आरक्षित हैं। यह वर्ग उड़ीसा , मप्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बहुतायत संख्या में है। इन राज्यों में जिस दल को भी इस वर्ग का साथ मिलता है उसकी न केवल प्रदेश में सरकार बनती है , बल्कि उन प्रदेशों की लोकसभा सीटों पर भी उसी दल की जीत होती है। इसके अलावा आधा दर्जन अन्य प्रदेश भी ऐसे हैं, जिनमें वे हारजीत में महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। इनमें गुजरात , महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे वे प्रदेश भी शामिल हैं, जिनमें कांग्रेस लगातार सत्ता से बाहर है। इसके बाद भी कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर से इस वर्ग को पार्टी से जोड़े में बेरुखी दिखाई जा रही है।

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