- 15 साल बाद भी 100 सीटें नहीं आ सकीं….
- लक्ष्मण सिंह
राजनीति अर्थात राज करने की नीति आदिकाल से प्रचलित है और प्रशासन चलाने हेतु प्रयोग में लाई जा रही है। जब मनुष्य वानर रूप से मनुष्य रूप में आया तो उसकी बुद्धि का विकास भी हुआ और उसमें नार आविष्कार करने की क्षमता भी बढ़ी और उसने कई आविष्कार भी किए, आज भी कर रहा है। सर्वप्रथम उसने आग जलाना सीखा और फिर आदम और हौवा की शीर्षक कहानी के अनुसार प्रजनन करना शुरू किया और मनुष्य की दुनिया बनती गई, उसका विस्तार होता गया और वह शनै: शनै: वन्य प्राणियों और वन्य क्षेत्र से दूर होता गया। ‘मोगली’ नामक कथा इसका उदाहरण है, जो आज भी अत्यंत लोकप्रिय है। फिर आया लालच जिसने अपनों को अपनों से दूर कर दिया और मनुष्यों में युद्ध, गृह कलह जैसी विसंगतियां प्रारंभ होती गईं, जो आज चरम सीमा पर पहुंच गई हैं। अगर हम प्राचीन भारत की राजनीति की चर्चा करें तो वह केवल राजा या कुटुंब के मुखिया से प्रारंभ होकर वहीं समाप्त हो जाती थी। बाकी सब उनके आदेशों का पालन करते थे। अगर किसी को कोई कष्ट होता था तो सब मिलकर उसकी मदद करते थे और युद्ध के समय सब मिलकर लड़ते थे। जब तक यह व्यवस्था रही, भारतवर्ष एक बहुत ही शक्तिशाली देश के रूप में जाना जाता रहा और महान ज्योतिष आर्यभट्ट ने ‘शून्य’ का आविष्कार किया और दुनिया को गिनती सिखाई। भारतवर्ष को सोने की चिडिय़ा के रूप में भी जाना जाता था। विद्वान लगातार साजिश का शिकार प्रभु श्रीराम, श्रीकृष्ण ने इस भूमि पर जन्म लिया। प्रभु श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण और श्रीकृष्ण से जुड़ी ‘भगवद् गीता’ जैसे वग्रंथ आज भी दुनिया के अधिकांश देशों में पढ़े जाते हैं। भारत में ऐसे बहुत से महान संत और विद्वानों हुए हैं जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया और भारत की एक अलग पहचान बनी। धीरे-धीरे राजा महाराजाओं के समीप लोभी-लालची लोगों की संख्या बढ़ने लगी और उन्होंने अपना वर्चस्व बढ़ाने हेतु उनके परिवारों में फूट डालना शुरू किया और उनके करीब आते रहे। राजतंत्र और राजगद्दी के उन्माद में राजा भी अपने परिवार के सदस्यों पर विश्वास नहीं कर, उन चापलूसों पर विश्वास करने लगे। छोटी-छोटी बातों पर राजा आपस में युद्ध करने लगे। ऐसे विषय जिन्हें वार्तालाप के जरिए सुलझाया जा सकता था, युद्ध में परिवर्तित होते गए और सारी दौलत हथियार खरीदने में और चलाने में व्यय होने लगी। जो राजा के कान भरने वाले थे उनकी जेब भरने लगी, और देश कमजोर होता गया। उस समय जो विद्वान या गुरु थे उन्हें भी षड्यंत्र के माध्यम से इन ‘लालची’ लोगों ने राजा से दूर कर दिया और परिणाम यह हुआ कि विदेशियों ने आक्रमण कर भारत पर अपना राज जमा लिया। कई राजा शहीद हुए, कई बंदी बनाए गए और कई समझौते की ‘राजनीति’ कर उनके गुलाम बने रहे। भारतवर्ष आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कमजोर होता गया और भारत से ‘इंडिया’ बन गया। ‘इंडिया’ शब्द अंग्रेजों ने दिया जिससे महान भारतवर्ष की पहचान एक टापू के रूप में बना दी गई। जिसे विदेश से आए हमलावरों ने खोजा और उस पर राज किया। कई वर्षों तक यही इतिहास स्कूलों में पढ़ाया भी गया, जिसे अब सही रूप में दिखाने का प्रयास हो रहा है।
‘कनखजूरा तत्व’ भाजपा में भी…
1947 में कांग्रेस पार्टी ने एक कड़े संघर्ष के पश्चात देश को आजादी दिलाई। इस लड़ाई में असंख्य सेनानियों ने अहिंसा के रास्ते पर चलकर बलिदान भी दिया। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे कई वीरों ने और वीरांगनाओं ने देशवासियों का मार्गदर्शन किया और अंग्रेजों को खदेडक़र, स्वतंत्र भारत की स्थापना की। बाबा साहेब ने संविधान की रचना को और भारत एक स्वतंत्र, गणतंत्र वाला देश कहलाने लगा। संयुक्त राष्ट्र में भारत को एक सम्मानजनक स्थान भी प्राप्त हुआ। आज भारत विश्व के मजबूत देशों में गिना जाता है। हमारे देश में बहुत सारे राजनीतिक दल हैं, परंतु प्रमुख दल दो ही हैं, भाजपा और कांग्रेस। कई वर्षों तक कांग्रेस पार्टी ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर राज किया और देश की सेवा की और कई महान वैज्ञानिक, इतिहासकार, कवि, लेखक, कलाकार, सेनानी देश को दिए। फिर वही ‘लालची’ लोग और कान भरने वाले जिन्हें मैं ‘कनखजूरा’ की संज्ञा देता हूं (‘कनखजूरा वह कीड़ा है जो कान से खून निकाल कर ही छोड़ता है’) ने कांग्रेस के नेताओं को घेरना शुरू कर दिया और कांग्रेस का पतन शुरू हो गया। यह तत्व भाजपा में भी हैं, जिसका परिणाम वह भी देख रहे हैं और आगे भी देखेंगे।
(लेखक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं)