कांग्रेस के कई नाम तय… भाजपा में असमंजस

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भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों की घोषणा के साथ ही कांग्रेस ने आधा दर्जन नगर निगमों के लिए अपने प्रत्याशी तय कर लिए हैं। माना जा रहा है की पार्टी जल्द ही इन नामों की घोषणा कर देगी, जबकि भाजपा में अभी भी प्रत्याशियों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। यही नहीं कांग्रेस में शेष 10 नगर निगमों के लिए भी पैनल तैयार कर उन पर मंथन का काम भी  अंतिम दौर मे है।
भाजपा में माना जा रहा है की राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का दौरा समाप्त होने के बाद ही भाजपा द्वारा नगर निगमों के महापौर पद के प्रत्याशियों के नामों को तय करने का काम शुरू हो सकेगा। उधर अब दोनों ही दलों में पार्षद, महापौर और अध्यक्ष का टिकट पाने के प्रयासों में दावेदार तेजी से लग गए हैं।  अगर भोपाल की बात की जाए तो यहां पर महापौर का पद ओबीसी महिला के लिए पहले ही आरक्षित हुआ है, जिसकी वजह से प्रमुख दावेदारों के तौर पर भाजपा से विधायक कृष्णा गौर, पूर्व पार्षद मालती राय और राजो मालवीय के नाम चर्चा में हैं , जबकि कांग्रेस से पूर्व महापौर व प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष विभा पटेल और पूर्व पार्षद संतोष कंसाना चुनौती देने को तैयार हैं। उधर कांग्रेस ने अब तक जिन नगर निगमों के प्रत्याशियों के नाम तय कर लिए हैं उनमें इंदौर से विधायक संजय शुक्ला, उज्जैन से तराना विधायक महेश परमार, ग्वालियर से विधायक सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार, सागर से निधि जैन, और जबलपुर से जगत बहादुर सिंह का नाम बताया जा रहा है। इसी तरह से रीवा से भी अजय मिश्रा का नाम लगभग तय माना जा रहा है।
गौर पर पहले से दोहरी जिम्मेदारी
कृष्णा गौर को बेहद मजबूत उम्मीदवार माना जाता है , लेकिन उन पर पहले से ही दोहरी जिम्मेदारी है। यही उनके टिकट में दिक्कत है। वे अभी विधायक के साथ ही भाजपा अन्य पिछड़ा वर्ग मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी सम्हाल रहीं हैं। ऐसे में अगर वो महापौर का चुनाव जीत जाती हैं तो उनके पास तीन पद हो जाएंगे। भाजपा में ऐसा होना मुश्किल है। मालती राय का नाम भी चर्चा में है। वो सुनील सूद के महापौर कार्यकाल में पार्षद रह चुकी हैं। इसके अलावा राजो मालवीय पूर्व में भी महापौर की प्रत्याशी रह चुकी हैं। वे महापौर का चुनाव बहुत कम अंतर से हारी थीं। वहीं सीमा यादव पार्षद रही हैं। वो विधायक कृष्णा गौर की समर्थक मानी जाती हैं।
विभा पटेल या कंसाना
महापौर रह चुकी विभा पटेल का पार्टी में कद बड़ा है और राजधानी में परिचय को मोहताज नहीं है। वह महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष हैं और पार्टी के हर कार्यक्रम में सक्रिय रहती हैं और लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं। इधर पूर्व पार्षद संतोष कंसाना की छवि तेज तर्रार महिला नेत्री की है। नगर निगम परिषद में वो जनहित से जुड़े मुद्दों को मुखरता से उठाती रही हैं। कार्यकाल खत्म होने के बाद भी लोगों से जुड़ी समस्याओं, महंगाई आदि को लेकर खुलकर सड़कों पर खिलाफत करती हैं। इनके अलावा मोना साहू का नाम भी चल रहा है। उनके पति कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं।
युृवाओं पर भाजपा का जोर
भाजपा में पीढ़ी परिवर्तन और गैर परिवारवाद का असर निकाय चुनाव में भी देखने को मिलेगा। यह बात अलग है की इसके एक दो अपवाद दिख जाएं। भाजपा संगठन प्रदेश में पार्टी के नेताओं की दूसरी पंक्ति तैयार की जा सके। यही वजह है की पार्टी इस बार निकाय चुनाव में 50 साल से कम आयु वाले कार्यकर्ताओं व नेताओं पर दांव लगाने की रणनीति बना चुकी है। इसके अलावा पार्टी ने तय किया है की वह लगातार चुनाव लड़ने  वाले नेताओं को भी इस पर प्रत्याशी नहीं बनाएगी। इस बार भाजपा ने परिवारवाद से भी दूरी बनाने का तय कर लिया है। इसकी वजह से उन नेताओं को भी टिकट मिलना नामुमकिन है, जो अपने परिजनों को चुनाव लड़ाने की हसरत पाले हुए थे। खास बात यह है की बीते रोज इस मामले में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पूरी तरह से स्थिति साफ कर चुके हैं।
कांग्रेस ने बनाई बढ़त
कांग्रेस को पता है की भाजपा का जनाधार शहरी इलाकों में अधिक है, जिसकी वजह से ही प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने इस बार संगठन स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों में तेजी दिखाते हुए प्रत्याशी चयन से लेकर समितियों के गठन तक में भाजपा पर बढ़त बना रखी है। इंदौर सहित कई शहरी इलाकों में संभावित प्रत्याशियों को पहले ही चुनाव के लिए तैरूार रहने को कह दिया गया था, जिससे की वे इलाके में सक्रियता बढ़ाकर पकड़ मजबूत कर सकें।

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