20 दिन बाद भी लागू नहीं हुआ कंपाउंडिंग और टीडीआर

  • 15 जनवरी तक लागू करने का सीएम ने दिया था निर्देश

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के नगरीय निकायों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 19 जनवरी को निर्देश दिया था कि अवैध निर्माण को वैध करने के लिए कंपाउंडिंग की सीमा को 30 प्रतिशत तक बढ़ाने और ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट्स (टीडीआर) लागू किया जाए। इसके लिए 15 जनवरी तक का समय सीमा तय की गई थी। लेकिन , तकरीबन 20 दिन बाद भी प्रदेश के नगरीय निकायों के साथ ही इनमें रहने वाले लोगों के फायदे के लिए फैसले अब तक अमल में नहीं आ पाए हैं। अनुमति के अतिरिक्त 30 फीसदी तक निर्माण को वैध करने की राहत नहीं मिल पाई है और न ही ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट्स (टीडीआर) लागू हो पाए हैं। गौरतलब है कि नगरीय निकायों को खराब आर्थिक स्थिति से उबारने के लिए मुख्यमंत्री ने नगरीय विकास विभाग के आला अफसरों से चर्चा के बाद कुछ महत्वपूर्ण बदलाव करने का फैसला लिया था। उन्होंने मकानों-भवनों में कंपाउंडिंग की सीमा फिर 10 प्रतिशत से बढ़ा कर 30 फीसदी करने के साथ ही सडक़ों , फ्लाय ओवर जैसे प्रोजेक्ट्स में जमीन की अड़चन दूर करने के लिए टीडीआर नियम लागू करने के निर्देश दिए थे। इसके साथ ही प्रमुख मार्गों, मेट्रो कॉरीडोर के पास पैसा लेकर अतिरिक्त 0.5 एफएआर और मास्टर प्लान व 24 मीटर से चौड़े रोड मिश्रित भू उपयोग देने के लिए नियमों में संशोधन करने का निर्णय लिया गया था। तब आला अधिकारियों ने टीडीआर व 30 प्रतिशत कंपाउंडिंग जैसे बदलाव 15 जनवरी से लागू करने का भरोसा दिलाया था। ध्यान देने लायक बात यह है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में पिछले साल दिसंबर में हुई बैठक में यह निर्णय लिए गए थे और अधिकांश पर अमल के लिए 15 जनवरी की समय सीमा तय की गई थी।
टीडीआर के नियम बने एक साल से अधिक समय बीता
जानकारी के अनुसार ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राइट्स के नियम बने एक साल से अधिक समय बीत चुका है। अब तक किसी भी प्रोजेक्ट में इसका फायदा नहीं मिल पाया है। इसका नुकसान यह हुआ कि कई मास्टर प्लान रोड का निर्माण शुरू नहीं हो पाया है। वजह यह रही कि सडक़ बनाने के लिए निजी भूमियों का अधिग्रहण किया जाना था। इससे लागत काफी बढ़ गई और संबंधित विकास एजेंसी के पास इतना बजट उपलब्ध नहीं था। इस परेशानी से बचाने के लिए ही टीडीआर नियम बनाए गए थे। इसमें अधिग्रहित जमीन के एवज में भूस्वामी को कहीं ओर अतिरिक्त निर्माण का अधिकार दिया जाएगा। इसे खरीदा और बेचा भी जा सकेगा। यानी जमीन के मालिक को अधिग्रहण के एवज में राशि नही देना पड़ेगी। भोपाल समेत प्रदेश का कोई भी छोटा-बड़ा शहर ऐसा नहीं होगा जहां मकानों, बिल्डिंग में अनुमति से ज्यादा निर्माण न किया गया हो। कंपाउंडिंग की लिमिट फिर 30 फीसदी होने पर यह मकान मालिक अवैध हिस्से को नियमित करा सकेंगे। उन्हें कार्रवाई का डर नहीं रहेगा और निकायों को समझौता शुल्क के तौर पर अच्छी राशि मिल सकेगी।

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