प्रक्रिया के बीच चुनावों पर संकट के बादल

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  • आरक्षण मामले में हाईकोर्ट ने दिया शासन को नोटिस

इंदौर/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश की 317 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सीटों पर राज्य सरकार रोटेशन प्रक्रिया का पालन किए बगैर आरक्षण करने का मामला  न्यायालय में उलझता दिख रहा है। इसकी वजह से चुनावी प्रक्रिया पर एक बार फिर से संकट के बादल मंडराते नजर आने शुरू हो गए हैं। दरअसल मप्र उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ इन दिनों राज्य के 317 निकाय में चुनाव के मद्देनजर किए गए एससी-एसटी की सीटों के आरक्षण को लेकर दायर दो याचिकाओं की सुनवाई कर रही है। वेकेशन बेंच ने इससे पहले राज्य शासन के जिम्मेदारों को अवमानना याचिका पर एक नोटिस जारी किया था। इसी विषय को लेकर दायर एक दूसरी याचिका में भी न्यायालय ने दो दिन पहले शासन और याचिकाकर्ता की दलील सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बीते रोज एकलपीठ ने आदेश जारी करते हुए जिम्मेदारों से पूछा कि जब आपने विधि का उल्लंघन करते हुए आरक्षित सीटों को तय कर दिया है, तब क्यों न आपकी आरक्षण प्रक्रिया को हम निरस्त कर दें। एकलपीठ ने मामले में आगामी सुनवाई 15 जून को मुकर्रर की है। उल्लेखनीय है कि इस मामले में न्यायालय के फैसले से राज्य की 317 एससी-एसटी सीट पर निर्धारित चुनाव कार्यक्रम प्रभावित हो सकती है। इस मामले में दोनों याचिकाएं यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयेश गुरनानी ने दायर की हैं । उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में पंचायत और निकाय चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के साथ कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण नोटिफाई कराने और इलेक्शन कराने का नोटिफिकेशन जारी करने को कहा था। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि आरक्षण किसी भी स्थिति में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने इससे पहले मध्यप्रदेश में 3 साल से अटके नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव बिना आरक्षण के बिना ही कराने के निर्देश दिए थे। इसके बाद शिवराज सरकार ने आरक्षण देने के लिए 12 मई की देर रात सुप्रीम कोर्ट में संशोधन याचिका एप्लिकेशन फॉर मॉडिफिकेशन दाखिल की थी। इसके बाद यह फैसला दिया गया था। एप्लीकेशन फॉर मॉडिफिकेशन पर सुप्रीम कोर्ट में 17 मई को भी सुनवाई हुइ थी। सरकार ने आरक्षण देने के लिए 2011 की जनसंख्या के आंकड़े प्रस्तुत किए थे। इसके अनुसार प्रदेश में ओबीसी की 51 प्रतिशत आबादी बताई गई थी। सरकार का मानना था कि इस आधार पर ओबीसी को आरक्षण मिलता है तो उसके साथ न्याय हो सकेगा।
आयोग की रिपोर्ट को दे सकेंगे चुनौती
त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को कुल 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा में मिलेगा। आरक्षण 2022 के परिसीमन के आधार पर लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण की दूसरी संशोधित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। सभी आवेदकों ने बताया कि यह रिपोर्ट ट्रिपल टेस्ट के अनुपालन करने वाली एक व्यापक रिपोर्ट है। इसमें कुल 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा ओबीसी को आरक्षण देने पर फोकस किया गया। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि हमें यह नहीं समझा जा सकता है कि हमने कथित रिपोर्ट्स की वैधता और शुद्धता पर किसी भी तरह से अंतिम राय व्यक्त की है। जब कभी इन रिपोर्टों को चुनौती दी जाती है, तो उस पर अपने गुण-दोषों और कानून के अनुसार विचार किया जा सकता है। फिलहाल, हम मध्यप्रदेश राज्य चुनाव आयोग को इस तारीख को राज्य सरकार द्वारा पहले से जारी परिसीमन अधिसूचनाओं को ध्यान में रखते हुए संबंधित स्थानीय निकायों के लिए चुनाव कार्यक्रम अधिसूचित करने की अनुमति देते हैं।

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