- निगम-मंडलों का होगा आर्थिक सर्वेक्षण
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार पर लगातार बढ़ते कर्ज के बोझ और वित्तीय असंतुलन तथा अनियमितता को देखते हुए अब सरकार का जोर वित्त प्रबंधन पर है। सूत्रों का कहना है कि मुख्य सचिव अनुराग जैन ने प्रदेश को कर्ज के बोझ से उबारने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले उन संस्थानों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है, जो अपने बजट का उपयोग समय पर नहीं कर पा रहे हैं और जो घाटे में चल रहे हैं। इसके तहत वित्त विभाग ने सभी निगम, मंडलों और प्राधिकरणों के बैंक खातों की जानकारी तलब की है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि निगम, मंडलों के खातों की जानकारी आने के बाद उनका बारीकी से परीक्षण किया जाएगा। इस दौरान देखा जाएगा कि किस निगम, मंडल के खाते में कितनी राशि उपलब्ध है। यह राशि किस मद में खर्च की जानी है। किस मद में कितनी राशि खर्च की गई।
गौरतलब है कि एक तरफ सरकार योजनाओं-परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए हर महीने कर्ज ले रही है, वहीं कई ऐसे विभाग और निगम-मंडल हैं जो आवंटित बजट का समय पर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में सरकार ने निगम-मंडलों के बैंक खातों की जानकारी मांगी है ताकि वास्तविक वित्तीय स्थिति का आंकलन किया जा सके। वित्त विभाग पड़ताल करेगा कि जिस प्रयोजन के लिए निगम, मंडल को राशि प्रदान की गई थी, उसे उसमें खर्च किया गया या नहीं। यदि किसी निगम, मंडल के खाते में राशि बची है, तो उसका स्रोत क्या है? क्या वह राशि उसने स्वयं के स्रोत से जनरेट की है या फिर शासन से प्राप्त राशि ही खाते में है। इससे निगम, मंडलों की वास्तविक वित्तीय स्थिति का आंकलन किया जा सकेगा। अधिकारियों का कहना है कि इससे पहले वर्ष 2019 में जब अनुराग जैन वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव थे, तब भी उन्होंने निगम, मंडलों के बैंक खातों की जानकारी मांगी थी। हालांकि तब निगम, मंडलों के खातों का ठीक से परीक्षण नहीं किया जा सका था। इसके पांच साल बाद अब एक फिर निगम, मंडलों के बैंक खातों की जानकारी मांगी गई है।
वर्तमान स्थिति के अनुसार बजट में प्रावधान…
मुख्य सचिव अनुराग जैन के आते ही प्रदेश में वित्त प्रबंधन पर नए सिरे से काम शुरू हो गया है। दरअसल, सरकार का आगामी वित्त वर्ष में लिए जीरो बेस बजटिंग पर फोकस है। मुख्य सचिव की मंशा है कि विभागों और संस्थाओं को अगली बार उतना ही बजट दिया जाए जितने की जरूरत है। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि निगम, मंडलों की वित्तीय स्थिति के आधार पर बजट में उनके लिए राशि का प्रावधान किए जाने समेत उन्हें चालू या बंद करने के संबंध में सरकार निर्णय लेगी। प्रदेश में 70 से ज्यादा निगम, मंडल व प्राधिकरण अस्तित्व में है। इनमें सरकार अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति करती है। निगम, मंडल के अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री और उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त रहता है। उन्हें मानदेय, गाड़ी, सरकारी आवास, तीन कर्मचारियों का स्टाफ, चिकित्सा सुविधा, दूरभाष की सुविधा समेत अन्य सुविधाएं मिलती है। सभी निगम, मंडलों के कार्यालयों में अधिकारी-कर्मचारी पदस्थ हैं। उनके वेतन, भत्ते व अन्य खर्च सरकार वहन करती है। अधिकतर निगम, मंडल घाटे में चल रहे हैं। निगम, मंडलों का आवंटित राशि का क्या और कैसे उपयोग हो रहा है, शासन को इसकी जानकारी नहीं है।
वित्तीय स्थिति की सही जानकारी आ सकेगी सामने
अधिकारियों का कहना है कि बैंक खातों के परीक्षण से निगम, मंडलों की वित्तीय स्थिति की सही जानकारी सामने आ सकेगी। यही वजह है कि वित्त विभाग ने निगम, मंडलों के खातों की जानकारी मांगी है। गौरतलब है कि डॉ. मोहन यादव सरकार ने गत 13 फरवरी को एक आदेश जारी कर निगम, मंडल, प्राधिकरणों के 46 अध्यक्ष, उपाध्यक्षों को पद से हटा दिया था। मप्र का वित्तीय वर्ष 2025-26 का बजट जीरो बेस बजटिंग प्रक्रिया के आधार पर तैयार किया जा रहा है। इसमें विभागों को वर्तमान में चल रही सभी योजनाओं, नई योजनाओं के मूल्यांकन एवं विश्लेषण सूक्ष्मता से करने के लिए कहा गया है। वित्त विभाग ने बजट निर्माण की तैयारियां तेज कर दी हैं। इसके लिए उप सचिव स्तर की बैठकें शुरू हो गई हैं, तो 29 नवंबर तक चलेगी। विगत दिन उप सचिव वित्त रूपेश पठवार ने खनिज विभाग के अफसरों के साथ बजट की तैयारियों पर चर्चा की। इस दौरान एक-एक मद के लिए राशि आवंटन पर चर्चा हुई। जीरो बेस बजटिंग में बजट अनुमान शून्य से शुरू किए जाते हैं। शून्य आधारित बजट में गत वर्षों के व्यय संबंधी आंकड़ों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है। इस प्रणाली में कार्य इस आधार पर शुरू किया जाता है कि अगली अवधि के लिए बजट शून्य है। शून्य आधार बजटिंग प्रक्रिया के अंतर्गत विभाग द्वारा ऐसी योजनाओं को चिह्नांकित किया जा सकेगा, जो वर्तमान में अपनी उपयोगिता खो चुकी हैं और जिन्हें समाप्त किया जा सकता हो।