- भ्रष्टों को प्रभार देकर किया जा रहा उपकृत

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
मप्र में बड़ी-बड़ी योजनाओं-परियोजनाओं के निर्माण का कार्य किया जा रहा है। ऐसे में लोक निर्माण विभाग में प्रभार का खेल चल रहा है। भ्रष्टाचार में लिप्त जिन इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए उन्हें विभागीय मंत्री और अधिकारी प्रभार देकर जमकर उपकृत कर रहे हैं।
गौरतलब है कि लोक निर्माण विभाग प्रभारियों के भरोसे है। यानी लोक निर्माण विभाग में अभी कोई स्थाई प्रमुख अभियंता नहीं है। इसका असर विभिन्न जिलों में चल रहे हजारों करोड़ रुपए के सडक़, बिल्डिंग, ब्रिज से लेकर अन्य निर्माण कार्यों पर पड़ रहा है। वहीं लोक निर्माण विभाग के मंत्री एवं अधिकारियों की कथनी और करनी में जमीन और आसमान का अंतर दिखाई दे रहा है। भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, घटिया निर्माण करने वाले इंजीनियरों पर कार्यवाही की जाएगी। यह सब अब एक जुमला बनकर रह गया है। निर्माण में गुणवत्ता लाने के लिए नित्य नए प्रयोग कर कोरी वाह-वाही लूटी जा रही है। मंत्री और अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त अपने करीबी इंजीनियरों को प्रभार देकर निरंतर उपकृत कर रहे है।
भ्रष्टाचारियों को संरक्षण
शासन और प्रशासन में बैठे मंत्री और अधिकारियों की नीति और नीयत में अंतर है। नीति भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की है तो नीयत भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने की है। लोक निर्माण विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इस विभाग को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के बड़े-बड़े दावे मंत्री द्वारा किए जाते हैं। लेकिन इसके बाद भी स्थिति में सुधार होने का नाम नहीं दिख रहा है। बल्कि भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। इसका कारण विभागीय मंत्री और अधिकारियों के द्वारा भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देना है। विभाग में दर्जनों ऐसे इंजीनियर पदस्थ हैं, जिनके खिलाफ गंभीर अनियमितता के आरोप हैं। उनके खिलाफ लोकायुक्त, आर्थिक अपराध एवं विभागीय जांच चल रही है। इन सबके बाद भी इन मंत्रियों को मलाईदार पदों पर पदस्थ किया गया है। इस पदस्थापना का कारण क्या है।
दागी को मुख्य अभियंता की जिम्मेदारी
लोक निर्माण विभाग ने गंभीर आरोपों में घिरे इंजीनियर जीपी वर्मा अधीक्षण यंत्री को मुख्य अभियंता सेतु की जिम्मेदारी सौंप रखी है। यह वही इंजीनियर है, जिन्होंने पीआईयू इंदौर मुख्य अभियंता रहते हुए फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र और टर्न ओवर की अनदेखी कर करोड़ों के काम मेसर्स एरकॉन इंफा लिमिटेड को देने के मामले में दोषी पाया था। जिसकी जांच न्यायालय के आदेश के बाद चल रही है। यह वही इंजीनियर है जो कि दतिया में कार्यपालन यंत्री रहते हुए जांच के घेरे में रहे। यही नहीं वर्तमान में रीवा पीआईयू के मुख्य अभियंता एससी वर्मा पर भी जाति प्रमाण पत्र का आरोप था। लेकिन वे इस आरोप से बच गए। इसी तरह गुना में पदस्थ अधीक्षण यंत्री को ग्वालियर में अधीक्षण यंत्री को ब्रिज का भी प्रभार दिया गया है। उनके विरुद्ध भी जांच विचाराधीन है। उधर, इंदौर के अधीक्षण यंत्री एमएस रावत के पास दो प्रभार हैं। इनके द्वारा किए गए एक घोटाले में इनसे चार करोड़ की रिकवरी की जा रही है। यह वही अधिकारी है जो व्यापम घोटाले में जेल तक जा चुके हैं। इन पर इंदौर में कार्यपालन यंत्री रहते हुए लोकायुक्त ने छापा मारा था। लोकायुक्त जांच में इन्हें दोषी पाया गया था। लोकायुक्त ने इनके विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति के लिए शासन को लिखा था। लेकिन शासन ने अभियोजन स्वीकृति नहीं दी। मामला अभी भी लोकायुक्त के पाले में है। इसी तरह ग्वालियर में पदस्थ प्रभारी मुख्य अभियंता के यहा भी 2010 में आर्थिक अपराध ने छापा मारा था। मामला आज भी विचाराधीन है।
अविनेंद्र पर मंत्री की विशेष कृपा
लोक निर्माण विभाग में अपात्र और भ्रष्ट इंजीनियरों पर सबसे अधिक मेहरबानी नजर आ रही है। लोक निर्माण विभाग के नेशनल हाईवे संभाग में पदस्थ कार्यपालन यंत्री अविनेंद्र सिंह को प्रभारी अधीक्षण यंत्री मंडल एक भोपाल का प्रभारी बनाया गया है। यह वहीं कार्यपालन यंत्री है जिन्होंने कोलार सिक्सलेन का निर्माण कराया था, जिसकी विधिवत शुरुआत से पहले ही जगह-जगह टूटने लगा है। जिसकी कई बार शिकायत विभिन्न स्तर पर भी की जा चुकी है। इसके बाद भी मंत्री इस अधिकारी पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान है। इसका उदाहरण यह है कि हाल ही में लोक निर्माण संभाग से हटाने के बाद भी इन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग संभाग में पदस्थ करने के साथ ही प्रमुख अभियंता के कार्यालय का दायित्व भी सौंपा गया है। इस अधिकारी के पावर और प्रभाव के पीछे का कारण यह बताया जाता है कि इनके बड़े भाई जबलपुर में कार्यपालन यंत्री है। जहां से इस विभाग के मंत्री आते हैं।