
प्रदेश सरकार को कड़े वित्तीय अनुशासन के साथ ही खर्चों पर नियंत्रण और आय में बढ़ोत्तरी के प्रयास करना होंगे
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र द्वारा बीते वर्ष राज्यों को दी गई राजकोषीय घाटे की लिमिट में कमी करते हुए उसे चार फीसदी तक सीमित कर दिया है। इसकी वजह से अब राज्यों को बीते साल की तुलना में कम कर्ज मिल सकेगा। यही नहीं इस तय की गई नई लिमिट के अंदर रहने के लिए अब प्रदेश सरकार को राजकोषीय घाटे में लगातार कमी करनी होगी। इसके लिए कड़े वित्तीय अनुशासन का पालन करना होगा।
दरअसल बीते साल कोरोना महामारी के चलते पूरी तरह से लगाए गए लॉकडाउन की वजह से राज्यों को अतिरिक्त कर्ज लेने की पात्रता प्रदान की गई थी। इसके लिए केन्द्र सरकार ने राज्यों की कर्ज सीमा में वृद्धि करते हुए राजकोषीय घाटे की लिमिट को 5 फीसदी तक कर दिया था, यह छूट सशर्त दी गई थी। इसी लिमिट को अब केंद्र सरकार कम कर रही है। इसके तहत अब मप्र को केंद्र सरकार ने इस वित्तीय वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे की सीमा को 4 फीसदी तक रखने के निर्देश दिए हैं। इसकी वजह से अब मप्र सरकार को कड़े वित्तीय अनुशासन का पालन करना होगा। इसके तहत प्रदेश सरकार को खर्च पर नियंत्रण और आमदनी में बढ़ोतरी के कदम उठाने होंगे। इसकी वजह से ही अब मप्र में वित्त अधिनियम 2021 जारी किया गया है। इसके माध्यम से लगातार राजकोषीय घाटा को कम करने की व्यवस्था तय की गई है।
बीते साल केन्द्र सरकार द्वारा तय की गई राजकोषीय घाटे और कर्ज की लिमिट वृद्धि की वजह से मप्र की राज्य सरकार ने रिकॉर्ड लगभग 40000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। यह अब तक के इतिहास का एक साल में लिया गया सर्वाधिक कर्ज है। इसकी वजह रही है पलायन और लॉकडाउन के चलते व्यापारिक गतिविधियों के साथ ही औद्योगिक प्रतिष्ठानों में उत्पादन का बंद होने से सरकार को होने वाली आय भी पूरी तरह से बंद हो गई थी। इसकी वजह से प्रदेश को आर्थिक मोर्चे पर बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा। यही नहीं सरकार के दूसरे बड़े आय के स्रोत आबकारी की दुकानों को लेकर बनी विवाद की स्थिति की वजह से भी सरकार की आय प्रभावित हुई थी।
राजकोषीय घाटा कम करने की बड़ी चुनौती
राजकोषीय घाटा कम करने की अब राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। केन्द्र द्वारा दी गई छूट केवल एक वर्ष के लिए ही थी। अब केन्द्र के निर्देश के चलते ही राज्य सरकार को राजकोषीय घाटे में अंकुश लगाने के लिए अधिनियम में प्रावधान करना पड़ा है। केन्द्र के निर्देशों अब वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 की अवधि में राजकोषीय घाटा 4 फीसदी और फिर 3.5 फीसदी रखना होगा। इसी तरह वित्तीय वर्ष 2023 ,2024-25, 2025-26 की अवधि में राजकोषीय घाटे को सीमित करते हुए 3 फीसदी पर रखना होगा। हालांकि 21-22 से लेकर 24-25 की अवधि तक बिजली क्षेत्र में सुधार करने पर राजकोषीय घाटे में उस वर्ष के जीएसपीडी के हिसाब से बढ़ोतरी की जा सकेगी। लेकिन बिजली क्षेत्र में सुधारों को पूरी तरह लागू नहीं कर पाने पर यह आधा फीसदी की रियायत नहीं मिलेगी।