सीबीडीटी बना आला पुलिस अफसरों का सुरक्षा कवच

सीबीडीटी

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। एक समय सरकार के निशाने पर रहने वाले चार पुलिस अफसरों पर करीब दो साल बाद भी कोई कार्रवाई शुरु ही नहीं हो सकी है। यह चारों अफसर पहले भाजपा सरकार के बेहद करीबी थे, लेकिन सरकार बदलते ही वे कांग्रेस के बेहद करीबी हो गए थे। इन चारों अफसरों के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने जांच शुरु कर दी थी , लेकिन उसे छापे में मिले दस्तावेजोंं का आज भी इंतजार उसे बना हुआ है। इन दस्तावेजों के लिए ईओडब्ल्यू द्वारा अब तक किए गए प्रयास बेमानी साबित हो रहे हैं। इसकी वजह है सीबीडीटी यानि की केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा अब तक कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। इसकी वजह से कहा जा रहा है कि सीबीडीटी इन चारों पुलिस अफसरों के लिए बतौर सुरक्षा कवच का काम कर रहा है। यही वजह है कि बीते ढाई साल में तीन आईपीएस समेत चार अधिकारियों आईपीएस  सुशोभन बनर्जी, संजय माने, वी मधुकुमार और राप्रसे  के अधिकारी अरुण मिश्रा के खिलाफ एफआइआर तक दर्ज नहीं हो पा रही है। इनमें से दो अधिकारी संजय माने और बी मधुकुमार अब सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं। दरअसल एफआईआर करने के लिए ईओडब्ल्यू ने सीबीडीटी  को 10 से अधिक बार पत्र न केवल लिखे हैं , बल्कि इसके लिए कई बार जांच अधिकारियों को भी जानकारी लेने के लिए भेजा गया है , लेकिन इसके बाद भी कोई जानकारी नही दी गई है। यह हाल तब है जबकि केन्द्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा उक्त अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे। इन अधिकारियों पर चुनाव के लिए कालाधन एकत्र  करने का आरोप था।
कालेधन  के मिले थे संकेत
छापे में मिले दस्तावेज और फोन काल से 2019 के लोकसभा चुनाव में कालेधन के उपयोग के संकेत मिले थे। इस कारण सीबीडीटी ने निर्वाचन आयोग को दस्तावेजों के साथ पत्र लिखा था। आयोग ने राज्य शासन को पत्र लिखकर इन अधिकारियों के विरुद्ध एफआइआर दर्ज करने को कहा था। राज्य शासन के कहने पर ईओडब्ल्यू ने दिसंबर 2020 में पीई दर्ज की थी। इसके बाद से ही सीबीडीटी से दस्तावेजों की मांग की जा रही है, ताकि एफआईआर की जा सके।
यह है मामला
मध्य प्रदेश के चार अफसरों के खिलाफ केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की जांच रिपोर्ट में लोकसभा चुनाव के दौरान कालेधन का लेनदेन करने का आरोप लगा था। सीबीडीटी की रिपोर्ट में बताया गया है कि लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान बेहिसाब नगदी का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया था, जिसे आयकर अधिनियम 1961 की धारा 132 के तहत आयकर नियमों के खिलाफ माना गया है। इसके बाद राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी और प्रमुख सचिव ने इन चारों अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए थे।
10 करोड़ से अधिक का था लेनदेन
दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश में आयकर विभाग ने कांग्रेस के बेहद करीबी लोगों और उनके कई रिश्तेदारों के यहां छापामार कार्रवाई की थी। छापामार कार्रवाई में करीब 10 करोड़ रुपए की नगदी जब्त हुई थी। इसके बाद प्रदेश से लेकर दिल्ली तक में कांग्रेस में भू चाल की स्थिति बन गई थी। यही नहीें उस समय समूची भाजपा हमलावर भी हो गई थी, लेकिन इसके बाद से इस मामले में कुछ भी होता नहीं दिख रहा है।

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