जैविक खेती के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वालों पर दर्ज होगा प्रकरण

जैविक खेती
  • केन्द्रीय जनजाति आयोग ने लिखा कलेक्टर को पत्र

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश का कृषि महकमा जो करे वह कम है। इस विभाग के अफसर अपनी मनमानी करने में पीछे नहीं रहते हैं, फिर मामला राज्य का हो फिर केन्द्रीय योजनाओं का। अब कृषि विभाग द्वारा अपनी कार्यशैली के अनुसार केन्द्र के जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा आदिवासी परिवारों को सक्षम बनाने के लिए मंजूर की गई   जैविक खेती योजना को ही बदल दिया गया है। इसकी शिकायत मिलने के बाद अब केंद्रीय जनजाति आयोग ने दोषियों पर प्रकरण दर्ज करने व पूरे मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
इस संबंध में आयोग द्वारा एक पत्र 15 दिसंबर 2021 को मंडला कलेक्टर को लिखा गया है, जिसमें पात्र हितग्राहियों की पहचान करने के साथ ही पूरे मामले की जांच कराने को कहा गया है। अब इस पत्र के बाद जांच के लिए कलेक्टर द्वारा एक समिति का गठन किया गया है। यह समिति कलेक्टर हर्षिका सिंह ने सात जनवरी को जिला पंचायत के सीईओ सुनील दुबे की अध्यक्षता में गठित की है। इसमें कृषि विभाग की प्रभारी उप संचालक मधु अली को बतौर सचिव और नायब तहसीलदार राजेंद्र नाथ प्रजापति को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है।
इस समिति से 15 दिन में रिपोर्ट अनुसूचित जनजाति आयोग को देने के लिए तैयार करने को कहा गया है। दरअसल इस योजना में किए गए फर्जीवाडे की शिकायत आरटीआई एक्टिविस्ट पुनीत टंडन द्वारा आयोग को की गई थी। गौरतलब है कि 2016-17 में मंजूर इस योजना में 15 पीवीटीजी जिले (विशेष जनजाति समूह वाले जिले) के अलावा 20 अन्य आदिवासी जिलों के लिए 110 करोड़ रुपए जारी किए गए थे।
योजना का क्रियान्वयन कृषि विभाग द्वारा किया गया। इसमें नियम विरुद्ध क्रियान्वयन ही बदल दिया गया। वर्मी कम्पोस्ट किट के साथ ही जैविक खाद बनाने हितग्राहियों को सक्षम बनाना था, पर कृषि विभाग ने वर्मी कम्पोस्ट की जगह बीज किट मुहैया करा दिए गए। यही नहीं विभाग के अफसरों ने खेल करने के लिए हितग्राहियों को राशि उनके बैंक खातों में डालने की जगह नकद वितरण कर दी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2018 में कांग्रेस सरकार के दौरान विधानसभा में भी यह मामला उठाया जा चुका है। उस समय तत्कालीन विस अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने सात विधायकों की जांच समिति बनाई थी। हालांकि सरकार बदलने के बाद ये मामला पूरी तरह से ठंडे बस्ते में चला गया।
इस तरह की भी गड़बड़ियां
आरटीआई में पता चला कि पीवीटीजी वाले जिलों में संरक्षित जनजाति बैगा, सहरिया और भारिया जनजाति के लोगों के अलावा अन्य जनजाति और सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को लाभ दिया गया। पीवीजीटी क्षेत्र के लोगों की सूची एवं अन्य आदिवासी हितग्राहियों की सूची लगभग एक जैसी है। सूचियों में थोड़ा बदलाव किया गय। मंडला के कुन्द्रा गांव की सूची में कई अन्य जातियों के लोगों को लाभ देने का पता चला है।

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