कैपा फंड: 3 साल में अरबों रुपए की कर डाली गड़बड़ी

कैपा फंड
  • वन विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। वन विभाग में कैपा फंड का खर्च गड़बडिय़ों का प्र्याय बन चुका है। इसकी वजह से अब इस फंड को लेकर ही गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं। अहम बात यह है कि इस फंड में होने वाले बड़े पैमाने में गड़बड़ी पर भी संबंधित अफसरों पर कार्रवाई करने की जगह विभाग उन पर मेहरबान बना हुआ है। इसका खुलासा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) की ऑडिट रिपोर्ट मे किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते वित्त वर्ष में अकेले 17 वन मंडलों में ही 364 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी की गई है।
अहम बात यह है कि  अगर सभी 63 वनमंडलों का ऑडिट किया जाता तो इसका आंकड़ा  कई गुना तक बढ़ जाएगा। इससे ही समझा जा सकता है कि कैंपा फंड में कितने बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। उल्लेखनीय है कि पंरपरा के मुताबिक कैंपा फंड से संबंधित राशि का उपयोग संरक्षण शाखा द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन इसके वित्तीय अधिकार पर पीसीसीएफ कैंपा ने अपना अधिकार जमा रखा है। हाल ही में जारी कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कैंपा फंड की राशि में हुई गड़बडिय़ों का विस्तार से विवरण दिया गया है।  इस रिपोर्ट में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि क्षतिपूर्ति वनीकरण के मामले में गड़बड़ी की गई है। कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2017 से लेकर 2019 में 17 वनमंडल अनूपपुर, पूर्वी छिंदवाड़ा, खरगोन, खंडवा, इंदौर, रतलाम, भोपाल, सिंगरौली, दक्षिण शहडोल, उत्तर सागर दक्षिण सागर, नौरादेही होशंगाबाद, ग्वालियर, छतरपुर उत्तर बैतूल और वन विकास निगम में क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए कैंपा फंड से करीब 839.88 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। कैग ने इसमें से ऑडिट में 364.83 करोड़ रुपए की उपयोगिता पर सवाल खड़े किए हैं। अहम बात यह है कि इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी इसी अवधि में वन का घनत्व बढ़ने की जगह कम हो गया है। इस दौरान क्षतिपूर्ति वनीकरण के नाम पर हुए पौधारोपण के लिए स्थल के चयन से लेकर वृक्षारोपण तक में गड़बडिय़ां की गई हैं।   रोपित किए गए पौधों की जीवितता के प्रतिशत का मानक 75 फीसदी है , लेकिन कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि वनीकरण क्षतिपूर्ति के नाम पर बताए गए पौधारोपण की जीवतता का प्रतिशत भी बेहद कम पाया गया है।
तय लक्ष्य से कम किया वृक्षारोपण
प्रतिवेदन में खुलासा किया गया है कि तीन मंडलों के तहत 201.08 हेक्टेयर के क्षेत्र में वृक्षारोपण के लिए डीपीआर तैयार की गई थी, जिसके तहत 3,02,363 पौधों को रौपा जाना था, लेकिन उनमें से महज 2 लाख 31 हजार 90 पौधे ही रोपे गए हैं। इसे महज एक उदाहरण के रुप में बताया गया है। इस तरह से यानी 71273 पौधों कम रोपे गए। ऑडिट में पाया गया है कि अनूपपुर उत्तर सागर और ग्वालियर वन मंडलों में प्रतिपुरक वनीकरण का काम पांच स्थानों पर  2010 से 2014 के बीच किया गया, लेकिन उन जगहों पर रोपे गए 2,79, 790 में से केवल 1 लाख 2 हजार 320 ही बच पाए।
गलत स्थानों का भी किया गया चयन
रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान वृक्षारोपण के लिए ऐसे स्थलों का चयन किया गया , जो वनीकरण के अनुकूल ही नहीं थे। प्रतिपूरक वृक्षारोपण के लिए अनूपपुर, सिंगरौली , होशंगाबाद और दक्षिण शहडोल में 18 स्थानों पर 875 हेक्टेयर वन भूमि का चयन किया गया। प्रतिवेदन के अनुसार चयनित स्थलों में कैनोपी का घनत्व 40 फीसदी से अधिक था। जबकि चयनित वृक्षारोपण स्थल की कैनोपी घनत्व 0.1 से 0.4 होनी चाहिए थी। कैग के प्रतिवेदन में खुलासा किया गया है कि सिंगरौली वन मंडल में 16.40 करोड़ की लागत से जिन आठ स्थानों पर वृक्षारोपण के लिए स्वीकृति दी गई थी, वहां पर पहले से ही या तो घने जंगल थे या फिर दूसरी योजनाओं के तहत वृक्षारोपण किया गया था। यानी 17 करोड़ से अधिक राशि को व्यर्थ खर्च कर दिया गया।
इस तरह से किया गया इस मद का दुरुपयोग
लेखा परीक्षा ने कैंपा के दस्तावेजों की जांच में पाया कि 163.83 करोड़ की धनराशि ऐसे कामों में खर्च कर दी गई , जो इस मद के तहत ही नहीं आते हैं। यह राशि करीब 53.29 करोड़ है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि इस मद से अनुभूति कार्यक्रम पर 5.88 करोड़, वन भवन निर्माण पर 20 करोड़, कृषि समृद्धि योजना पर 20 करोड़ , रेंजर और राज्य वन सेवा के अधिकारियों के प्रशिक्षण पर 5.94 करोड, वन स्टाफ के प्रशिक्षण पर 4.87 करोड़ और एसएफआरआई के अनुसंधान गतिविधि पर 4 करोड़ 59 लाख रुपए खर्च किए गए हैं, जो अनियमितता के दायरे में आता  है।

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