
- सिंचाई विभाग की लापरवाही पड़ रही है भारी …
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सरकार ने नहरों का जाल बिछा दिया है। लेकिन सिंचाई विभाग की लापरवाही से करीब 15 हजार किमी से अधिक लंबी नहरें नाला बन गई हैं। दरअसल, ये नहरे कच्ची हैं और इनमें जगह-जगह रिसाव हो रहा है। इस कारण इन नहरों में सप्लाई होने वाला 30 प्रतिशत पानी बह जाता है। इससे जहां नहरों के किनारे के खेतों में पानी भरा रहता है, जिससे फसलें खराब हो जाती है। वहीं नहरों के दूसरे मुहाने पर स्थित खेतों तक पानी पहुंच नहीं पा रहा है। इससे किसान हैरान-परेशान हैं।
प्रदेश में अत्यंत जर्जर और छतिग्रस्त नहरों में मरम्मत कार्य करवाने के लिए जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने रिपोर्ट मांगी है। इसके तहत कछारवार पक्की, कच्ची, मुख्य माइनर सबमाइनर आदि का मेंटेनेंस हेतु डीपीआर बनाने के निर्देश दिए गए है। प्रदेश में वृहद, मध्यम और लघु सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से 39 हजार 866 किमी में नहरों का निर्माण किया गया है। इनमें से 23 हजार 120 किमी नहरें पक्की सीमेंटेड हैं और आज भी 15 हजार 607 किमी नहरें कच्ची यानि बिना सीमेंट वाली हैं। वैसे नए सिंचाई प्रोजेक्ट पाइप लाइन आधारित ही बनाए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी प्रदेश में 250 से अधिक बांधों में सिंचाई नहरों के जरिए ही की जाती है। राज्य सरकार की मानें तो जल संसाधन विभाग के माध्यम से वर्तमान में 41.10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो रही है। वहीं नर्मदा घाटी विकास विभाग द्वारा 8.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा रही है। इस तरह 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित है। जानकारी के अनुसार यमुना कछार की 4547 किमी नहरों में से 2395 किमी पक्की और 2152 किमी कच्ची हैं। वहीं नर्मदापुरम कछार की 4590 किमी नहरों में से 2056 किमी पक्की, 2534 किमी कच्ची, बैनगंगा कछार की 7769 किमी नहरों में से 2390 किमी पक्की और 5379 किमी कच्ची हैं।
पांच वर्ष में 23.66 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता
प्रदेश में निर्माणाधीन सिंचाई योजनाओं के पूर्ण होने पर सिंचाई क्षेत्र जल संसाधन विभाग का 23.66 लाख हेक्टेयर और नर्मदा घाटी विकास विभाग का 43.21 लाख हेक्टेयर बढ़ जाएगा। इन योजनाओं के आगामी 5 वर्ष में पूर्ण हो जाने पर प्रदेश की सिंचाई क्षमता 93 लाख हेक्टेयर से ज्यादा हो जाएगी। जबकि, नर्मदा घाटी प्राधिकरण द्वारा निर्मित परियोजनाओं से पिछले 15 सालों से 5 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई हो पा रही है। मप्र में पहली बार वल्र्ड बैंक के सहयोग से 2012 में 51 बांधों का सुदृढ़ीकरण और नहरों की सीमेंटेड लाइनिंग कार्य पर लगभग 2300 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई थी। वर्ल्ड बैंक का ये प्रोजेक्ट खत्म हो चुका है और 39 हजार 866 किमी नहरों में से 15 हजार 607 किमी आज भी सीमेंटेड नहीं हो सकी हैं। पूर्व ईएनसी पीके तिवारी के अनुसार, अगले पांच सालों में सिंचाई क्षमता एक करोड़ हेक्टेयर में पहुंचना संभव नहीं लगता। केन-बेतवा परियोजना, संशोधित पार्वती सिंध परियोजना और एनवीडीए की अन्य प्रस्तावित महत्वपूर्ण परियोजनाओं से प्रदेश में 19.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा बढ़ेगी। वर्तमान में केन-बेतवा के निर्माण में सात साल से अधिक समय लगेगा, क्योंकि इसके टेंडर की प्रक्रिया चल रही है।
बह जाता है 30 फीसदी पानी
प्रदेश में 15 हजार 607 किमी से अधिक नहरें कच्ची और सीमेंटेड नहीं हैं। जिनसे करीब 30 फीसदी पानी सीवेज के जरिए बह जाता है। बावजूद इसके, सरकार का दावा है कि अगले पांच सालों में सिंचाई क्षमता एक करोड़ हेक्टेयर हो जाएगी। जानकारों का मानना है कि सरकार का ये दावा फेल होता नजर आ रहा है, क्योंकि ऐसे में सिंचाई क्षमता तो विकसित हो जाएगी, लेकिन किसानों को टेल तक पानी मिलने की समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा। दरअसल, प्रदेश की अधिकांश कच्ची नहरों के ज्वाइंट्स में घास आदि पैदा हो गई है। जिसकी वजह से लाइनिंग में दरारें आ गई हैं। नहरों की साफ-सफाई और मरम्मत कार्य में दो माह का समय लगता है। केवल बारना परियोजना में ही 100 प्रतिशत लाइनिंग का कार्य हुआ। कोलार परियोजना में 1978-79 में ये कार्य हुआ था। पुरानी लाइनिंग होने की वजह से नहरें छतिग्रस्त हो गई हैं। जिनके मेंटेनेंस पर करोड़ों रुपए खर्च होंगे और सरकार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह कार्य जल्दी होने की संभावना कम है।