ब्यूरोक्रेट्स हो रहे प्रमोट… कर्मचारियों को फैसले का इंतजार

  • मप्र में पदोन्नति में भेदभाव
  • विनोद उपाध्याय
ब्यूरोक्रेट्स

मप्र में पिछले 8 सालों से अफसरों और कर्मचारियों के प्रमोशन पर रोक लगी है। आठ सालों में इस साल रिटायर होने वाले कर्मचारियों की संख्या मिलाकर 1 लाख कर्मचारी बगैर प्रमोशन के रिटायर हो जाएंगे। प्रदेश में पहली बार यह स्थिति बनी है ,जब पदोन्नतियां रुकी हैं, जिसमें सभी वर्गों के अधिकारी और कर्मचारी प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन विडंबना यह है कि इस दौरान ब्यूरोक्रेट्स (आईएएस, आईपीएस और आईएफएस)को समय पर पदोन्नति मिल रही है। एक ही प्रदेश में पदोन्नति में भेदभाव की इस नीति से कर्मचारियों में असंतोष है।
दरअसल, प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण का मामला ऐसा उलझा है कि पिछले साढ़े पांच साल से कर्मचारी पदोन्नति के लिए मुंह ताक रहे हैं , जबकि आईएएस, आईपीएस और आईएफएस को समय पर पदोन्नति मिल रही है। कर्मचारियों का आरोप है कि अधिकारियों की पदोन्नति प्रभावित नहीं होने के कारण ही कर्मचारियों की सशर्त पदोन्नति का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। चार साल में करीब 80 हजार कर्मचारी बगैर पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो गए हैं। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल, 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया था। राज्य सरकार इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट चली गई और न्यायालय ने यथास्थिति (स्टेटस को) रखने का आदेश दे दिया और प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है। राज्य सरकार तब से सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख रही है और प्रमोशन में आरक्षण के अंतिम निर्णय के इंतजार में हैं।
हाई कोर्ट कह चुका है प्रमोशन न रोकें
प्रदेश में कर्मचारियों के प्रमोशन को लेकर हाईकोर्ट तीन मामलों में कह चुका है की प्रमोशन न रोकें। 15 दिसंबर 2022 को वेटरनरी डॉक्टरों के मामले में ग्वालियर हाई कोर्ट ने सरकार को पदोन्नति करने के लिए निर्देशित किया था। इस मामले में सरकार सिंगल बेंच, डबल बेंच और फिर रिव्यू में गई लेकिन फैसला डॉक्टरों के पक्ष में आया। फिर पशुपालन विभाग के प्रमुख सचिव ने मप्र लोक सेवा आयोग को पदोन्नति के लिए पत्र भी लिखा, लेकिन इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। रिव्यू पिटीशन में कोर्ट ने प्रमोशन न करने पर संबंधित अफसर पर कार्रवाई करने का आदेश दिया। मामले को लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट गई और अफसर पर कार्रवाई न करने का आग्रह किया। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को निर्देशित किया कि प्रमुख सचिव व अन्य पदोन्नति के लिए जिम्मेदार अफसरों पर अंतिम आदेश पारित न करने पर स्टे दिया जाए। 21 मार्च 2024 को हाई कोर्ट जबलपुर ने नगरीय निकायों में कार्यरत असिस्टेंट इंजीनियर्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए 2 महीने में प्रमोशन का आदेश दिया। कोर्ट ने 18 अप्रैल 2023 को असिस्टेंट इंजीनियर राजकुमार गोयल की पिटीशन पर फैसला दिया। राज्य सरकार के द्वारा पदोन्नति पर रोक लगाए जाने से नगरीय निकायों में भी पदोन्नति पर रोक लगी हुई है। 22 मार्च 2024 को हाई कोर्ट ने रिट पिटीशन 19210-2022 में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रामबहादुर सिंह समेत अन्य कर्मचारियों के प्रमोशन किए जाने के निर्देश दिए। 22 मार्च को पारित इस आदेश में 60 दिन के भीतर प्रमोशन किए जाने के आदेश दिए गए हैं। उधर, सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति में आरक्षण के मामले में अर्जेंट हियरिंग भी हो चुकी है, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका है। इधर, कर्मचारियों का कहना है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में सही तरह से अपना पक्ष नहीं रख पा रही है, जिसके चलते अब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ। इस बीच, सरकार द्वारा कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यवाहक का प्रभार सौंपकर संतुष्ट किया जा रहा है। पुलिस, जेल और वन विभाग के वर्दी वाले पदों पर यह व्यवस्था लागू की गई है। सरकार ने पदोन्नति के नए नियमों का प्रारूप तैयार किया है। इस पर निर्णय लेने के लिए मंत्री समूह की समिति बनाई गई। इसकी बैठक आठ माह पहले हुई थी, जिसमें आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी नेता शामिल हुए थे। नए बनाए गए नियमों से अनारक्षित वर्ग सहमत नहीं है। उनका कहना है कि इसमें क्रीमीलेयर सहित कई प्रविधान नहीं किए गए। नए नियम एक तरह से पुराने नियमों को नए कलेवर में प्रस्तुत करना ही है। इस कारण अब तक सहमति नहीं बन पाई और सरकार ने इसे भी लंबित रखा है।
जहां मामला सुप्रीम कोर्ट में, वहां भी प्रमोशन जारी
मप्र देश का इकलौता राज्य है, जहां पदोन्नति पर पूरी तरह से रोक लगी है। सुप्रीम कोर्ट में 5 राज्यों के प्रमोशन में आरक्षण के मामले की सुनवाई होनी है। इसमें बिहार, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार में मेरिट कम सीनियरिटी के अनुसार प्रमोशन किए जा रहे हैं। मप्र में सुप्रीम कोर्ट में मामला विचाराधीन होने की वजह से राज्य सरकार ने प्रमोशन पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में प्रमोशन पर रोक नहीं है।अदालती फैसले भी कर्मचारियों के पक्ष में है जिसके अनुसार सरकार तो तुरंत डीपीसी आयोजित कर प्रमोशन करना चाहिए। दरअसल मप्र में 30 अप्रैल 2016 को हाई कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान खत्म कर दिया, लेकिन पदोन्नति पर रोक नहीं लगाई। इस तारतम्य में सीनियरिटी कम मेरिट के आधार पर प्रमोशन की जाना है। हाई कोर्ट के इस फैसले को मप्र सरकार ने 12 दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां कोर्ट ने को स्टेटस जो लोग प्रमोशन पा गए उन्हें रिवर्ट न किए जाने के अंतिम सुनवाई तक आदेश जारी कर दिए। इसके बाद से ही मप्र में पूरी तरह से पदोन्नति पर रोक लगी है। इसके बाद आठ सालों में इस साल रिटायर होने वाले कर्मचारियों की संख्या मिलाकर 1 लाख कर्मचारी बगैर प्रमोशन के रिटायर हो जाएंगे। प्रदेश में पहली बार यह स्थिति बनी है जब पदोन्नतियां रुकी हैं, जिसमें सभी वर्गों के अधिकारी और कर्मचारी प्रभावित हो रहे हैं।

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